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एक ऐसा कवि जो बम बनाना जानता था, एक अच्छा फोटोग्राफर था, साथ ही खोजी पर्यटक भी था। वह देशी विदेशी भाषाओं का अच्छा जानकार था, वो क्रान्तिकारी भी था। ऊंचे दर्जे का विद्वान था वो और हो भी क्यूँ ना आखिर वो शिक्षक, संपादक, निबंधकार और कथाकार भी तो था।

आप सोच रहे होंगे हम किसकी बात कर रहे हैं, तो मित्रों आज हम ऐसे ही बहुमुखी, बहुआयामी एवं एकांतमुखी प्रखर कवि सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन की बात करने वाले हैं। वैसे तो आपने भी उनका नाम सुना ही होगा, उनका साहित्यिक , सामाजिक परिचय ‘अज्ञेय’ है। प्रयोगवाद को साहित्य जगत में प्रतिष्ठित करने वाले ‘अज्ञेय’ का जन्म ७ मार्च, १९११ को उत्तरप्रदेश के कसया, पुरातत्व-खुदाई शिविर में हुआ था।

शुरू शुरू में उनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। संस्कृत, फारसी, अंग्रेजी और बांग्ला भाषा के साथ साहित्य का अध्ययन उनके पिताजी ने उन्हें घर पर ही कराया। मद्रास क्रिस्चन कॉलेज से विज्ञान में इंटर की पढ़ाई पूरी कर वे बी.एससी. करने के लिए लाहौर के फॅरमन कॉलेज चले गए। अंग्रेजी विषय से एम.ए करते करते वे क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेने लगे और विभिन्न जेलों में समय गुजरने लगा। जिस कारण उनकी पढ़ाई पूरी न हो सकी।

कालांतर में सैनिक और विशाल भारत नामक पत्रिकाओं का उन्होंने संपादन किया। कुछ समय ब्रिटिश सेना में रहे; इसके बाद इलाहाबाद से प्रतीक नामक पत्रिका निकाली और ऑल इंडिया रेडियो की नौकरी करने लगे। अज्ञेय यायावर थे, अतः उन्होंने देश-विदेश की यात्राएं कीं। जिसमें उन्होंने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में अध्यापन का कार्य किया और फिर वापस भारत आकर जोधपुर विश्वविद्यालय में अध्यापन करने लगे। दिल्ली लौटने के बाद दिनमान साप्ताहिक, नवभारत टाइम्स, अंग्रेजी पत्र वाक् और एवरीमैंस जैसी प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं का उन्होंने संपादन किया।

अज्ञेय की कृतियां…

कविता संग्रह…
भग्नदूत, चिन्ता,
हरी घास पर क्षण भर,
बावरा अहेरी,
इन्द्रधनुष रौंदे हुये ये,
अरी ओ करुणा प्रभामय,
आँगन के पार द्वार,
कितनी नावों में कितनी बार, इत्यलम् ,
क्योंकि मैं उसे जानता हूँ,
सागर मुद्रा,
पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ,
महावृक्ष के नीचे,
नदी की बाँक पर छाया,
प्रिज़न डेज़ एण्ड अदर पोयम्स।

कहानियाँ…
विपथगा,
परम्परा,
कोठरीकी बात,
शरणार्थी,
जयदोल।

उपन्यास…
शेखर एक जीवनी- प्रथम भाग(उत्थान), द्वितीय भाग(संघर्ष),
नदीके द्वीप,
अपने अपने अजनबी।

यात्रा वृतान्त…
अरे यायावर रहेगा याद?
एक बूँद सहसा उछली।

निबंध संग्रह…
सबरंग,
त्रिशंकु,
आत्मनेपद,
आधुनिक साहित्य: एक आधुनिक परिदृश्य,
आलवाल।

आलोचना…
त्रिशंकु,
आत्मनेपद,
भवन्ती,
अद्यतन।

संस्मरण…स्मृति लेखा।

डायरियां…भवंती, अंतरा और शाश्वती।

विचार गद्य…संवत्‍सर।

नाटक…उत्तरप्रियदर्शी

जीवनी…रामकमल राय द्वारा लिखित शिखर से सागर तक।

संपादित ग्रंथ…
आधुनिक हिन्दी साहित्य (निबन्ध संग्रह),
तार सप्तक (कविता संग्रह), दूसरा सप्तक (कविता संग्रह), तीसरा सप्तक (कविता संग्रह), नये एकांकी, रूपांबरा।

कृष्णदत्त पालीवाल ने अज्ञेय रचनावली के १८ खंडों में उनकी समस्त रचनाओं को संग्रहित करने का प्रयास किया है। जो निम्न हैं…

१. काव्य
२. काव्य
३. कहानियाँ
४. उपन्यास
५. उपन्यास
६. उपन्यास
७. भूमिकाएँ
८. यात्रा-वृत्त
९. डायरी
१०. निबन्ध
११. निबन्ध
१२. निबन्ध
१३. निबन्ध
१४. संस्मरण, नाटक, निबन्ध
१५. साक्षात्कार
१६. साक्षात्कार और पत्र
१७. अनुवाद
१८. अनुवाद

अज्ञेय के लगभग सभी काव्य सदानीरा नाम से दो खंड में संकलित हुए हैं तथा अन्यान्य विषयों पर लिखे गए सारे निबंध सर्जना और सन्दर्भ तथा केंद्र और परिधि नामक ग्रंथो में संकलित हुए हैं। प्रख्यात साहित्यकार अज्ञेय ने यद्यपि कहानियां कम लिखीं हैं। परंतु हिन्दी कहानी को आधुनिकता की दिशा में एक नया और स्थायी मोड़ देने का श्रेय उन्हीं को प्राप्त है। निस्संदेह ही वे आधुनिक साहित्य के ध्रुव तारा हैं जो सदा ही हिंदी साहित्य के आकाश पर चमकते रहेंगे। उन्होंने भारतेंदु हरिश्चंद्र के बाद दूसरे आधुनिक युग का प्रवर्तन किया है। उन्होंने जापानी हाइकु कविताओं का हिन्दी में अनुवाद भी किया था।

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