November 24, 2024

क्या आप जानते हैं कि भारतीय गणराज्य के प्रथम मुख्य निर्वाचन आयुक्त यानी मुख्य चुनाव आयुक्त कौन थे? जानते हैं तो बहुत अच्छी बात है और अगर नहीं जानते चिंता की कोई बात नहीं है, हम बताएंगे और इतना ही नहीं उनका पूरा परिचय आप से करवाएंगे। पद्म भूषण उपाधि से अलंकृत सुकुमार सेन भारत के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त थे, जिन्होंने २५ अक्टूबर, १९५१ से लेकर फ़रवरी, १९५२ के बीच पहला आम चुनाव संपन्न करवाया था।

परिचय…

सुकुमार सेन का जन्म २ जनवरी, १८९८ को बंगाल के गोटन में हुआ था। इनके पिता जी का नाम हरेन्द्र नाथ सेन तथा माता जी का नाम नाबालिनी देवी था। सुकुमार अपने तीन भाइयों में सबसे छोटे थे। इनके बड़े भाई का नाम अशोक कुमार सेन तथा एक भाई अमिय कुमार सेन था। ये गणित विषय में गोल्ड मेडलिस्ट थे। श्री सेन ने कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में पढ़ाई की। तत्पश्चात लंदन यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के लिए चले गए। महज २२ वर्ष की आयु में ही वह सिविल सेवा सर्विस में तैनात हो गए। यह वर्ष १९२१ की बात है। जिस समय भारत गुलामी की बेड़ियों से जकड़ा हुआ था। अपनी सेवा के दौरान सुकुमार सेन ने भारत के कई राज्यों और जिलों में काम किया। अपनी तेज-तर्रारी और गजब की मेधा की वजह से वर्ष १९४७ में सुकुमार सेन को पश्चिम बंगाल का प्रमुख शासन सचिव बनाया गया, जो कि ब्रिटिश भारत में आईसीएस अधिकारी की सबसे वरिष्ठ रेंक थी।

कार्य…

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि चुनाव प्रणाली का ढांचा कैसा हो? इस चुनौती का हल दिया सुकुमार सेन ने। उनकी वजह से ही भारत का पहला आम चुनाव संपन्न हो सका। इस तरह स्वतंत्र भारत में सुकुमार सेन भारत के सर्वप्रथम मुख्य चुनाव आयुक्त बने, जिन्होंने २५ अक्टूबर, १९५१ से लेकर फरवरी १९५२ के मध्य आम चुनाव संपन्न करवाया। उन्हीं की वजह पहली बार भारतीय अपने मताधिकार का सही इस्तेमाल कर पाए। उनकी प्रसिद्धि ही थी कि सूडान ने भी उन्हें अपने यहां चुनाव करवाने के लिए बुलाया था। इतना ही नहीं सुकुमार सेन की ही बदौलत भारत के दूसरे आम चुनाव में साढ़े चार करोड़ की बचत हो सकी। आज यह रकम कोई खास बड़ी नहीं जान पड़ती, मगर उस समय ये कितनी बड़ी होगी और भारत की उस समय की अर्थव्यवस्था के लिए यह रकम कितनी महत्वपूर्ण होगी इसका अंदाजा आज की पीढ़ी नहीं लगा सकती।

लोकसभा चुनाव…

वर्ष १९५२ : भारत के पहले आम चुनावों के दौरान सुदूर पहाड़ी गाँवों तक चुनाव प्रक्रिया को पहुँचाने के लिए नदियों के ऊपर विशेष रूप से पुल बनवाए गए। हिंद महासागर के छोटे-छोटे टापुओं तक मतदान सामग्री पहुँचाने के लिए नौसेना के जलयानों का सहारा लेना बेहद दुष्कर कार्य था। इस समस्या से भी बड़ी अन्य समस्या भी थी जो भौगोलिक कम और सामाजिक ज्यादा थी। उत्तर भारत की ज्यादातर महिलाओं ने संकोचकवश मतदाता सूची में अपना स्वयं का नाम न लिखाकर, अमुक की पत्नी या फलाँ की माँ इत्यादि लिखा दिया था। मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन इस बात से खासे नाराज थे। उनके विचार में यह प्रथा ‘अतीत का एक अजीबोगरीब और मूर्खतापूर्ण अवशेष’ था। उन्होंने चुनाव अधिकारियों को निर्देश दिए कि वे मतदाता सूची में सुधार करें और ऐसे ‘मतदाताओं के महज़ कौटुंबिक व्याख्या’ के स्थान पर उनका स्वयं का नाम अंकित करें। इसके बावजूद करीब २८ लाख से ज्यादा महिला मतदाताओं का नाम सूची से मजबूरन बाहर करना पड़ा। उनके नामों को हटाने से जो हंगामा खड़ा हुआ उसके बारे में सेन की राय थी कि यह अच्छा ही हुआ। इस विवाद से लोगों में जागरूकता आएगी और अगले चुनावों तक उनका यह पूर्वाग्रह दूर हो जाएगा। उस समय तक महिलाएँ अपने स्वयं के नामों के साथ मतदाता सूची में अंकित हो चुकी होंगी।

वर्ष १९५७ : श्री सेन ने पहले चुनाव को सफलता पूर्वक कराया तो दूसरे चुनाव में देश के करोड़ों रुपये बचा लिए। वहीं दूसरे आम चुनाव में पहली बार कांग्रेस के वर्चस्व को झटका लगा। केरल में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया ने राज्य की सत्ता पर क़ब्ज़ा किया। इसी चुनाव में तमिलनाडु में डीएमके का जन्म हुआ यानी पहली बार देश के भीतर अलग तमिल राष्ट्र की भावना का जन्म। हालांकि डीएमके ने चुनाव में बहुत अच्छा नहीं किया, लेकिन केंद्र के लिए ये एक खतरे की घंटी थी। इस चुनाव की भी सारी जिम्मेदारी मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुकुमार सेन के कंधों पर थी। श्री सेन ने पहले चुनाव के बाद तकरीबन पैंतीस लाख बैलेट बॉक्स को अच्छी तरह से बंद करके रखवा दिया था। एक बार फिर उन बैलेट बॉक्सेस को निकाला गया और दूसरे चुनाव में भी इस्तेमाल किया गया। जिससे दूसरे चुनाव में साढ़े चार करोड़ रुपये कम खर्च हुए। दरअसल वर्ष १९५७ के आम चुनाव में ४१९ लोकसभा सीटों के लिए मतदान हुआ। इसमें कांग्रेस को ३७१ सीटों पर सफलता हासिल हुई। अबतक के दोनों चुनाव पार्टी के लिए बहुत ही अच्छे रहे, लेकिन अगला चुनाव कांग्रेस और नेहरू के लिए एक बड़ी मुसीबत खड़ी करने वाला था। क्योंकि एक तो स्वतंत्रता आंदोलन की खुमारी उतर चुकी थी और दूसरा कांग्रेस के भीतर ही विरोध के स्वर उठने लगे थे।

पुरस्कार और सम्मान…

वर्ष १९५४ में सुकुमार सेन को प्रशासकीय सेवा क्षेत्र में ‘पद्म भूषण” से सम्मानित किया गया था। वह पद्म भूषण के नागरिक सम्मान के पहले प्राप्तकर्ताओं में शामिल थे।

निधन…

सुकुमार सेन का निधन १३ मई, १९६३ को ६५ वर्ष की आयु में हुआ।

इतिहास की नजर से…

महान इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने स्वतंत्र भारत की पहली आम चुनाव की ५०वीं वर्षगांठ पर वर्ष २००२ में इंग्लिश अख़बार ‘द हिंदू” में सुकुमार सेन के बारे में लेख लिखा था। जिसमे उन्होंने सुकुमार सेन के बारे में लिखते हुए यह भी लिखा था कि वे बर्दवान विश्वविद्यालय के पहले कुलपति थे, जो १५ जून,१९६० को शुरू हुआ था।

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