images (1)

क्या आप जानते हैं कि भारत में अंग्रेज़ी औपनिवेशिक शक्ति के खिलाफ लड़ने वाली पहली वीरांगना कौन थी? नहीं ना! कोई बात नहीं, आज हम आपको, आपके अपने ही इतिहास की उस महिला शाखा की एक विरांगना, शिवगंगा रियासत की रानी वेलु नचियार से मिलाने जा रहे हैं, जिन्हें तमिलनाडु में “वीरमंगई” नाम से भी जाना जाता है।

परिचय…

वेलु नचियार रामनाथपुरम राज्य की राजकुमारी व रामनाद साम्राज्य के राजा चेल्लामुतहू विजयाराघुनाथ सेतुपति और रानी सक्धिममुथल सेतुपति की एकमात्र संतान थी। जिनका जन्म ०३ जनवरी, १७३० को तमिलनाडु के रामनाथपुरम में हुआ था। वह चोलो के कश्यपगोत्रम की तरह सुर्यवाम्सम की वंशज थी। उनका पालन-पोषण बिलकुल राजकुमारों की तरह किया गया था। उन्होंने बचपन से ही घुड़सवारी, तीरंदाजी, तलवारबाजी और मार्शल आर्ट्स की शिक्षा विधिवत ली थी। अस्त्र-शस्त्र के साथ ही उन्हें अनेक भाषाओं का भी ज्ञान था जैसे; फ्रेंच, अंग्रेज़ी, उर्दू, तमिल आदि। उनका विवाह शिवगंगा के राजा मुथुवादुग्नाथापेरिया उदायियाथेवर से हुआ था, जिनसे उनकी एक पुत्री भी थी।

महिला सेना का निर्माण…

वर्ष १७८० में मैसूर के सुल्तान, हैदर अली की सहायता से बनाई गयी सेना के साथ उन्होंने अंग्रेजो से लोहा लिया। नचियार ने अंग्रेज़ी “ईस्ट इंडिया कंपनी” के शिकंजे से अपने राज्य को बहुत ही पराक्रम से निकला था। रानी वेलु नचियार वह पहली महिला क्रन्तिकारी रानी थी जिन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी थी। उसके बाद उन्होंने अंग्रेज़ी शक्तियों से लड़ने के लिए व अपनी पुत्री की याद में एक सशक्त महिला सेना तैयार की थी जिसका निधन अंग्रेजो से लड़ाई के दौरान हो गया था। ऐसा माना जाता है कि मानव बम का उपयोग सबसे पहले उन्होंने ही किया था। उन्होंने करीब दस वर्षों तक अपने राज्य पर शासन किया और २५ दिसम्बर, १७९६ में बीमारी की वजह से उनका निधन हो गया।

इतिहास जो बस कहानी बन कर रह गया…

वर्ष १७७२ की बात है, अर्कोट के नवाब और ईस्ट इंडिया कंपनी की संयुक्त सेनाएं दुर्भाग्य बनकर शिवगंगा आयीं और वेलु नचियार से उसका पति और शिवगंगा राज्य दोनों छीन लिए। जहां कभी उसके पति राजा मुथु वडुगनाथ पेरिया राज किया करते थे। शिवगंगा अंग्रेजों के हाथों चले जाने पर, रानी वेलु अपनी दुधमुहीं बच्ची को बांहों में छिपाये जंगल में निकल गईं, एक दिन वापस आने के लिए। रानी ने एक बार किले की तरफ देखा, उस समय उनकी आंखों में पीड़ा और प्रतिशोध की आग थी। वीर मरुदु भाइयों ने और वीरांगना उदियाल ने उनकी रक्षा की। परंतु दुर्भाग्यवश एक दिन उदियाल पकड़ी गयी और फिर मार दी गयी। लेकिन उसने रानी का पता नहीं बताया। रानी वेलु ने कसम खाई कि अपने पति और उदियाल की मौत का बदला लेकर रहेगी। साथ ही मातृभूमि को पुन: स्वतंत्र करा कर रहेगी।

काफी दिन रानी ने डिंडीगुल और आसपास के जंगलों में बिताये। फिर मैसूर के शासक हैदर अली की मदद से सेना खड़ी करनी शुरू कर दी। रानी ने वीर स्त्रियों की एक सेना बनाई ‘उदियाल सेना’। इसके सभी सदस्यों को उन्होंने कड़ा सैन्य प्रशिक्षण दिया। साथ ही मरुदु भाईयों ने स्थानीय स्वामिभक्त लोगों की एक सेना एकत्रित की। फिर रानी ने शिवगंगा के अपने प्रदेश को एक एक कर वापस जीतना प्रारंभ कर दिया। और संघर्षपूर्ण आठ वर्षों के बाद वेलु की सेना शिवगंगा के किले तक आ पहुंची थी जिसमें अंग्रेज सुरक्षित बैठे थे। परंतु किले को भेदना आसान नहीं था, उसके लिए विशेष तोपें और गोला बारूद चाहिए था जोकि रानी के पास नहीं था।

अत: युक्ति के अनुसार ‘उदियाल सेना’ की वीर कमांडर कुयिली अपनी चुनिंदा महिला सैनिकों के साथ ग्रामीण महिलाओं के वेश में किले में प्रवेश कर गयी। भीतर मौका पाते ही अंग्रेजों पर धावा बोल दिया। हतप्रभ अंग्रेज संभल पाते कि इन वीरांगनाओं ने द्वार रक्षकों को मारकर किले का दरवाजा खोल दिया। रानी वेलु अपनी सेना के साथ प्रलय बनकर शत्रु पर टूट पड़ीं। उनकी तलवारें बिजली बनकर शत्रु पर गिरने लगीं। इसी दौरान कुयिली को अंग्रेजों के गोला-बारूद भंडार का पता चला। उस वीर नारी ने मंदिर में पूजा हेतु रखे घी को अपने शरीर पर उड़ेल लिया और स्वयं को आग लगा दी। फिर आग बरसाती कुयिली तलवार से सिपाहियों को काटती हुई अंग्रेजों के गोला-बारूद भंडार में घुस गयी और उसे जलाकर नष्ट कर दिया। मातृभूमि की रक्षा में इस तरह का आत्मबलिदान देने की संभवत: यह पहली घटना है। आखिरकार अंग्रेजों ने घुटने टेक दिये। वर्ष १७८० को शिवगंगा दासता की बेड़ियों से मुक्त हो चुकी थी। रानी वेलु नचियार भारत की पहली रानी थीं, जिन्होंने अंग्रेजों का अभिमान मिट्टी में मिलाकर अपना राज्य वापस हासिल कर एक दशक तक राज भी किया।

About The Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *