आज मैंने ‘८३’ देख ली, कहां देखी कैसे देखी यह मत पूछना। बस इतना जान लो देख ली बस। दिल भर आया, एक अजीब सा आनंद मेरे अंतर्मन में छाया था। यह फिल्म की प्रस्तुति का कमाल था या उस सच्चाई का जो उस समय के सभी देशवासियों के दिल से निकली होगी, उसका। फिल्म की समीक्षा लिखने से पूर्व मेरे मन में एक बाद घुमड़ रही है उसे आप से बांटना चाहता हूं, उसके बाद फिल्म पर आयेंगे। कपिल सर का विश्व कप और धोनी के विश्व कप में होंगी हजारों समानताएं अथवा बिसमताएं, मगर इस फिल्म के माध्यम से मुझे एक समानता दिखाई पड़ी, जानते हैं क्या?
कपिल सर की टीम में द ग्रेट लिटिल मास्टर सुनील गावस्कर जी थे, जो अब रिटायरमेंट के दरवाजे पर खड़े थे और धोनी की टीम में मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर थे, जो अपना अंतिम विश्व कप खेल रहे थे। दोनों महान बल्लेबाजो को उनके कैरियर का बेस्ट गिफ्ट उनके साथियों ने दिया। अब आते हैं ‘८३’ पर…
पहले कलाकार एवं किरदार के माध्यम से अपनी टीम बनाते हैं…
रणवीर सिंह (कपिल देव), साहिल खट्टर (सय्यद किरमानी), ताहिर राज भसीन (सुनील गावस्कर), सकीब सलीम (मोहनिंदर अमरनाथ), जतिन सरना (यशपाल शर्मा), चिराग पाटिल (संदीप पाटिल), हार्डी संधू (मदन लाल), एमी विर्क (बलविंदर संधू), आदिनाथ कोठारे (दिलीप वेंगसरकर), धैर्य करवा (रवि शास्त्री), निशांत दहिया (रॉजर बिन्नी) और दिनकर शर्मा (कीर्ति आजाद)। इसके बाद अन्य जैसे दीपिका पादुकोण (रोनी भाटिया), पंकज त्रिपाठी (पी आर मान सिंह), नीना गुप्ता (राजकुमारी निखंज), बोमन ईरानी (फारुख इंजीनियर) आदि।
रेटिंग्स: ४ स्टार्स
कहानी…
वैसे तो वर्ष १९८३ में भारत की ऐतिहासिक जीत की कहानी के बारे में सभी जानते हैं, लेकिन निर्देशक कबीर खान ने फिल्म के माध्यम से इस कहानी को बेहद खूबसूरती और दिल से बनाया है। फिल्म शुरू में ही इस बात का एहसास कराती है कि १९८३ में भारत की जीत से पहले तक भारतीय क्रिकेट टीम अपनी पहचान और सम्मान के लिए संघर्ष कर रही थी। तमाम दुश्वारियों, नकारात्मकताओं और चुनौतियों के बावजूद कपिल देव के नेतृत्व में टीम इंडिया ने लंदन की ओर रुख किया जहां उन्हें कई बार हार और फिर उसकी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा। यह बात शायद हमें पता नहीं चलती अथवा उस तड़प को हम कभी महसूस नहीं कर पाते अथवा उस आनंद के पल को कभी जान ही नहीं पाते, जो भारतीय टीम ने अपने दृढ़ निश्चय और लगन से हर परिस्थिति का सामना करते हुए देश को पहला विश्व कप दिलाया था।
अभिनय…
अगर रणवीर सिंह की बात करें तो इस फिल्म में कहां थे रणवीर सिंह? हमें तो नहीं दिखे। अगर दिखे तो अंतर्मुखी और सौम्य स्वभाव वाले कपिल पा। इससे ज्यादा और क्या कहूं,रणवीर सिंह के बारे में? कपिल देव के चालढाल और लहजे को उन्होंने जितनी बारीकी से पकड़ा है, उससे कहीं भी ये महसूस नहीं होता कि ये रणवीर हैं। फिल्म में एक लीडर के रूप में वो अपने किरदार के साथ पूरी तरह न्याय करते नजर आए। क्रिकेट विश्वकप के दौर होने वाले उतार-चढ़ाव में किस तरह से रोनी भाटिया कपिल देव को सपोर्ट करती हैं, उसे दीपिका पादुकोण ने बेहद इमोशनल ढंग से निभाया है। अगर बात करें द ग्रेट पंकज त्रिपाठी की तो पी.आर. मान सिंह के लुक्स से लेकर बोलचाल तक, उनके अंदाज को उन्होंने बखूबी पकड़ा तथा उसे बारीकी से प्रस्तुत भी किया है। रही बात अन्य कलाकारों की, तो इस पर क्या कहें, कुछ समझ नहीं आ रहा। आखिर बात करते समय १९८३ के सभी खिलाड़ियों के साथ तुलना करना पड़ेगा और १९८३ में हम मात्र तीन बरस के थे। इसलिए कपिल सर की भाषा में जबरदस्त।
फिल्म मेकिंग…
फिल्म के जो स्ट्रॉन्ग पॉइंट्स हैं, उनमें एक है रिसर्च। ऐसा लगता है कि १९८३ विश्वकप के हर एक मैच को बार-बार देखा गया है और हर सीन को फिल्माने से पहले मैच के वीडियोज देखे गए हैं। वहीं हर किरदार में कलाकार जिस तरह ढले हैं उससे साफ जाहिर है क्रिएटिव टीम ने जबरदस्त होमवर्क किया है। सीन ऐसे रचे गए हैं कि सभी ११ खिलाड़ी अपनी पूरी अहमियत रखते हैं, इवेन ताहिर राज भसीन (सुनील गावस्कर) भी।
म्यूजिक…
आपकी जानकारी के लिए इतना बताना ही काफी है कि भारत के मशहूर फिल्म स्कोर कंपोजर जूलियस पैकिअम ने इसके बैकग्राउंड म्यूजिक पर काम किया है। वहीं प्रीतम चक्रवर्ती ने इसके गाने कंपोज किए हैं। हर फिल्म की भांति इस फिल्म में भी एक थीम सॉन्ग है, ‘लहरा दो’ बेहद जोश और जज्बे से भरा है। वहीं इसके बाकी के गानों की बात की जाए तो इसमें कई ऐसे गानें है जो इसकी पटकथा के साथ सरलता से घुल जाते हैं, जैसे पानी में चीनी घुल जाता है।
और अंत में…
ये फिल्म केवल क्रिकेट प्रेमियों, खेल प्रेमियों को ही नहीं बल्कि हर उस भारतीय के दिल को छुएगी जिसे प्रेरणा और आत्मविश्वास से भरी कहानियां पसंद है। इस फिल्म में जिस तरह से दिखाया गया है कि भारतीय टीम लगातर नीचा दिखाए जाने के बावजूद स्वयं को किस तरह साबित किया है, यह देखकर आप भी गर्व से भर जाएंगे। क्रिकेट पर आधारित होने के चलते कहानी का ज्यादतर हिस्सा मैदान पर ही फिल्माया गया है और खिलाड़ियों की निजी जिंदगी पर फोकस कम ही रखा गया है। देश के उस परिस्थिति को दिखाती, प्रेम को जगाती और मोटिवेशन से तैयार यह फिल्म हर किसी को जरूर देखनी चाहिए।
क्या कमी रह गई…?
‘८३’ को देशभर के कुल ३७४१ स्क्रीन्स और विदेशों इसे १५१२ स्क्रीन्स पर रिलीज किया गया है। रिपोर्ट की अगर मानें तो इसका बजट करीब १२५ करोड़ रुपए है। फिल्म हिन्दी, तमिल, तेलुगू, मलयालम और कन्नड़ भाषाओं में रिलीज किया गया है। समीक्षकों ने फिल्म की कहानी से लेकर कलाकारों के अभिनय तक की पुरजोर तारीफ की है। जिसकी वजह से काफी उम्मीदें लगाई गईं थी कि यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कमाई के नए नए कीर्तिमान बनाएगी, मगर जब शुक्रवार कलेक्शन के आंकड़े सामने आए तो हैरान करने वाले थे। उसके अगले दिन कमाई ज्यादा हुई लेकिन उतनी नहीं जितनी उम्मीद लगाई जा रही थी।