रामायण एक बहुत ही सफ़ल भारतीय टीवी श्रृंखला थी या यूं कहें तो है, ७८-कड़ियों के में प्रसारित रामायण अप्रत्याशित रूप से लोकप्रिय था, जिसके लगभग १० करोड़ दर्शक थे। प्रारम्भ में कुछ कम लोकप्रियता के साथ बाद में इस धारावाहिक की लोकप्रियता उस स्तर तक पहुँच गई जहाँ पर सम्पूर्ण भारत एक आभासी ठहराव में आ जाता था और प्रत्येक व्यक्ति जिसकी टीवी तक पहुँच थी, अपना सब कामकाज छो़ड़कर इस धारावाहिक को देखने के लिए रुक जाता था। इस दृग्विषय को जिसे समाचार पत्रिका इण्डिया टुडे ने “रामायण फ़ीवर” का नाम दिया, सभी धार्मिक क्रियाकलापों (हिन्दू और अहिन्दू) को पुनर्नियत किया गया ताकी लोग इस धारावाहिक को देख सकें। यह रामायण की लोकप्रियता ही थी कि रेलगाडियाँ, बसें इत्यादि इस धारावाहिक के प्रसारण के दौरान रुक जाया करते थे और गावों में भी अगर कहीं भी टीवी होती तो लोग उसके सामने इसे देखने के लिए एकत्रित होते थे।
इसके प्रसारण के दौरान, रामायण, भारत और विश्व टेलिविज़न इतिहास में सबसे अधिक देखा जाने वाला कार्यक्रम बन गया और यह तब तक रहा जब तक बी आर चोपड़ा द्वारा वर्ष १९८९ में महाभारत का प्रसारण नहीं होने लगा साथ ही वर्ष १९९३-१९९६ के कृष्णा (टीवी धारावाहिक) तक यह खिताब इसके पास ही रहा। बाद में रामायण के पुनः प्रसारण और वीडियों प्रोडक्शन के कारण इसने फिर लोकप्रियता प्राप्त की। लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में जून २००३ तक यह “विश्व के सर्वाधिक देखे जाने वाले पौराणिक धारावाहिक” के रूप में सूचीबद्ध था। धारावाहिक का मूल प्रसारण दूरदर्शन पर २५ जनवरी १९८७ से ३१ जुलाई १९८८ तक रविवार के दिन सुबह ९:३० बजे किया गया।
अब जानने योग्य बात यह है कि इस महान पौराणिक धारावाहिक का निर्माण, लेखन और निर्देशन रामानन्द जी के द्वारा किया गया था। आज हम इनके बारे में बात करते हैं…
परिचय…
रामानंद सागर जी का जन्म लाहौर के नजदीक असल गुरु नामक स्थान पर २९ दिसम्बर, १९२७ को एक धनाढ्य परिवार में हुआ था। मगर लालन पालन उनकी नानी ने किया था क्यूंकि उन्होंने उन्हें गोद ले लिया था। पहले उनका नाम चंद्रमौली था लेकिन नानी ने उनका नाम बदलकर रामानंद रख दिया। जब वे १६ वर्ष की अवस्था में थे तो उनकी गद्य कविता श्रीनगर स्थित प्रताप कालेज की मैगजीन में प्रकाशित होने के लिए चुनी गई। जब वे बड़े हुए तो अपने विवाह के मुद्दे पर उन्होंने दहेज लेने का विरोध किया जिसके कारण उन्हें घर से बाहर कर दिया गया।
इसके साथ ही उनका जीवन संघर्ष आरंभ हो गया। उन्होंने पढ़ाई जारी रखने के लिए ट्रक क्लीनर और चपरासी की नौकरी की। वे दिन में काम करते और रात को पढ़ाई। मेधावी होने के कारण उन्हें पंजाब विश्वविद्यालय [आज का पाकिस्तान] से स्वर्ण पदक मिला और फारसी भाषा में निपुणता के लिए उन्हें मुंशी फज़ल के खिताब से नवाजा गया। इसके बाद सागर एक पत्रकार बन गए और जल्द ही वह एक अखबार में समाचार संपादक के पद तक पहुंच गए। इसके साथ ही उनका लेखन कार्य भी चलता रहा।
बंटवारे के समय वर्ष १९४७ में वे भारत आ गए। भारत में वह फिल्म क्षेत्र से जुड़े और वर्ष १९५० में खुद की प्रोडक्शन कंपनी सागर आर्ट्स बनाई जिसकी पहली फिल्म मेहमान थी। वर्ष १९८५ में वह छोटे परदे की दुनिया में उतर गए। उनके द्वारा निर्मित सर्वाधिक लोकप्रिय धारावाहिक रामायण ने लोगों के दिलों में उनकी छवि एक आदर्श व्यक्ति के रूप में बना दी।
लेखन…
उन्होंने २२ छोटी कहानियां, तीन वृहत लघु कहानी, दो क्रमिक कहानियां और दो नाटक लिखे। उन्होंने इन्हें अपने उपनाम चोपड़ा, बेदी और कश्मीरी के नाम से लिखा लेकिन बाद में वह सागर के साथ हमेशा के लिए रामानंद सागर बन गए। बाद में उन्होंने अनेक फिल्मों और टेलिविजन धारावाहिकों के लिए भी पटकथाएँ लिखी।
उन्होंने कुछ फिल्मों तथा कई टेलिविजन कार्यक्रमों और धारावाहिकों का निर्देशन और निर्माण किया। उनके द्वारा बनाए गए प्रसिद्ध टीवी धारावाहिकों में विक्रम और बेताल, दादा-दादी की कहानियां, रामायण, कृष्णा, अलिफ लैला और जय गंगा मैया, आदि बेहद लोकप्रिए धारावाहिक शामिल है। साथ ही कुछ फिल्में भी बनाए एवं लिखे।