एक दिन मेरी
गांधी से भेंट हो गई
चीरपरीचीत भाव से
यूं ही मुस्कुरा रहे थे
पहले से ही भड़का था
मुस्कुराता देख
मेरी तो आज हट गई…
मैंने गांधी से पूछ डाला
बापू बने फिरते हो
बाप का कौन सा फर्ज निभाया
तुमने किया क्या है?
‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ कहकर
ऐसा क्या किया?
जेलयात्रा करके
कौन सा बड़ा काम किया?
माना भारतवासियों से
‘करो या मरो’ कहा
लेकिन तुमने क्या किया?
नील सत्याग्रह किए,
डाण्डी यात्रा की।
नमक आंदोलन किए,
किसान सत्याग्रह भी की।
ये कोई काम है!
मेरी नजर में तो,
ये सारे बेकाम हैं।
तुमने विदेशी-बहिष्कार करके,
आधुनिकता को रोका है।
विदेशी माल का दाह कराके,
नई पौध के सपने को रौंदा है।
मद्यपान रोककर तुमने
कौन सा बड़ा तीर मारा है?
नवजीवन, यंग इण्डिया पत्र
निकाल तुम क्या करते थे
चर्खे और खादी का महत्व बता
हूँह स्वदेशी का प्रचार करते थे
महीनो तक रहे उपवास
यह कैसा बकवास
तुम ही कहो क्यूं ना हो
यूं तुम्हारा उपहास
जिन्हें कोई छूता ना हो,
उन अछूतो का उद्धार करते थे।
सर्वधर्म-समन्वय भाव रख,
हिन्दू-मुस्लिम एकता का
प्रचार करते थे।
तो कौन सा बड़ा काम करते थे।
अगर तुमने कुछ किया है
तो कहो यूं चुप ना रहो
सबकी बातें क्यूं
चुपचाप मान लेते हो
जो भी लोग कहते हैं
सब स्वीकार लेते हो
सच में कोई कमजोरी है
या यह सारी बातें कोरी हैं
जिसे नाहक हम मान देते हैं
अगर तुमने कुछ किया है
तो कहो यूं चुपचाप ना रहो
इतनी देर में पहली बार
उन्होने मुँह खोला
स्वीकार करता हूँ
आपके सारे इल्जाम
उन्होने धीरे सें बोला
मै क्या करूं?
या क्या कर सकता था?
आज भी कमजोर हूँ,
तब भी मैं कमजोर था।
हमसे व्यर्थ लड़ा नहीं जाता !
यह कह वो चुप हो गए।
जो भी कहना था शायद,
वो सब कह गए।
एक बार फिर वही
चीरपरीचीत भाव
शांत चीत चेहरा
और वो मुस्कुराहट
तब मुस्काये थे ऐसे,
जैसे कहते हों…
हमने कुछ नहीं किया,
यह सब तो तुम कहते हो।
अपने से, अपने आप से,
अपनो से, अपने सपनों से।
इस बार मुझमें
ना दंभ था, ना क्रोध
ना कोई सवाल और
ना पाने को कोई जवाब
अश्विनी राय ‘अरुण’