विषय- सुशांत सिंह राजपुत के मौत का क्या कारण है ???
दैनिक समाचार पत्र नवभारत टाइम्स के 16 जून, 2020 के अंक में एक आलेख छपा हुआ था, जो फिल्म निर्देशक अभिनव कश्यप के फेसबुक से लिया गया है, जिसके अनुसार…
“सुशांत की आत्महत्या ने इंडस्ट्री के उस बड़े प्रॉब्लम को सामने लाकर रख दिया है, जिससे हममें से कई लोग डील करते हैं। वैसे वास्तव में ऐसी कौन सी वजह हो सकती है जो किसी को आत्महत्या करने पर मजबूर कर दे? मुझे डर है कि उनकी मौत #metoo की तरह एक बड़े मूवमेंट की शुरुआत न हो। सुशांत सिंह राजपूत की मौत ने यशराज फिल्म्स के टैलंट मैनजमेंट एजेंसी की भूमिका पर सवाल खड़े कर दिए हैं, जिसने हो सकता है उन्हें आत्महत्या की तरफ धकेला हो, लेकिन ये जांच अधिकारियों को करनी है। ये लोग आपका करियर नहीं बनाते, आपके करियर को बर्बाद करके रख देते हैं। एक दशक से तो मैं खुद ये सब झेल रहा हूं। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि बॉलिवुड के हर टैलंट मैनजर और सभी टैलंट मैनेजमेंट एजेंसी कलाकारों के लिए मौत का फंदा होती हैं। ये सभी वाइट कॉलर्ड दलाल होते हैं और इनके साथ सभी इनवॉल्व रहते हैं। इनका एक ही सिंपल मंत्र है- हमाम में सब नंगे और जो नंगे नहीं हैं उनको नंगा करो क्योंकि अगर एक भी पकड़ा गया तो सब पकड़े जाएंगे।
सबसे पहले तो मुंबई से बाहर से आए टैलंट को इन कास्टिंग डायरेक्टर (टैलंट स्काउट) वगैरह का सामना करना पड़ता है, जो लोग अपने छोटे-मोटे कॉन्टैक्ट्स के बदले सीधे कमीशन मांगने लगते हैं। इसके बाद इन टैलंट को बॉलिवुड पार्टियों का लालच दिया जाता है और फिर ऐसे ही किसी रेस्ट्रॉन्ट लॉन्च वगैरह के बहाने उन्हें सिलेब्रिटीज से मिलवाया जाता है। सिलेब्रिटीज की चकाचौंध और इजी मनी का लालच का खेल शुरू हो जाता है, जिसके बारे में उसने कभी सोचा न था। बता दें कि ऐसी पार्टियों में वे सभी नजरअंदाज किए जाते हैं और उनके साथ बुरा व्यवहार होता है ताकि वे हतोत्साहित महसूस करें और उनका सेल्फ कॉन्फिडेंस चकनाचूर हो जाए।जब उनका कॉन्फिडेंस टूट जाता है तो ये कास्टिंग डायरेक्टर्स उन्हें कई सालों के कॉन्ट्रैक्ट का ऑफर देते हैं और इस फील्ड के दरिंदों से बचाने का प्रॉमिस कर या फिर छोटा-मोटा लालच देकर इसे साइन करने के लिए प्रेशर बनाते हैं। याद रखिए कि ऐसे कॉन्ट्रैक्ट्स को तोड़ने का मतलब है इन उभरते टैलंट के लिए भारी आर्थिक जुर्माना। ये स्काउट अपनी दादागीरी दिखाकर ऐसे टैलंट को यकीन दिला देते हैं कि उनके पास इसे साइन करने के अलावा कोई और ऑप्शन नहीं है। जैसे ही ये टैलंट इन एजेंसी के साथ डील साइन करते हैं उसके बाद करियर से जुड़े किसी भी फैसले को लेकर उनकी अपनी चॉइस का अधिकार खत्म हो जाता है। उन्हें बंधुआ मजदूर की तरह कम पैसों पर काम करवाया जाता है। …और यदि वह बहादुर है और मैनेजमेंट के हाथ से छूट भी जाता है तो फिर उन्हें सिस्टम जानबूझकर बॉयकॉट कर देता है और उसका नाम तब तक के लिए गायब हो जाता है जब तक वह अपने बेहतर कल की उम्मीद में किसी और एजेंसी का हाथ न थाम ले। लेकिन वह कल कभी नहीं आता। उसकी नई एजेंसी भी यही काम करती है। पिछले कई सालों से यही होता आ रहा है, किसी भी ऐक्टर के टैलंट को बार-बार तब तक तोड़ा जाता है जब तक कि वह या तो आत्महत्या न कर ले या फिर प्रॉस्टिट्यूशनय / एस्कॉर्ट सर्विस (मेल एस्कॉर्ट) का शिकार न हो जाए, जो अमीर और पावरफुल लोगों के ईगो और सेक्शुअल जरूरतों को पूरा करता हो। हालांकि, ऐसा केवल बॉलिवुड में ही नहीं बल्कि कॉर्पोरेट वर्ल्ड और पॉलिटिक्स में भी यही होता है।
मेरा अनुभव भी इन सब चीजों से अलग नहीं रहा और मैंने भी शोषण और दादागीरी को झेला है। ‘दबंग’ के समय अरबाज खान और उसके बाद से हमेशा। तो यहां मैं बता रहा हूं ‘दबंग’ के बाद के अगले 10 साल की कहानी। 10 साल पहले ‘दबंग 2’ की मेकिंग से मेरे बाहर निकलने की वजह यह थी कि अरबाज खान और सोहेल खान अपनी फैमिली से मिलकर मेरे करियर पर कंट्रोल करने की कोशिश कर रहे थे और मुझे काफी डराया-धमकाया गया। अरबाज ने मेरा दूसरा प्रॉजेक्ट भी बिगाड़ दिया जो कि श्री अष्टविनायक फिल्म्स का था, जिसे मैंने उसके हेट मिस्टर राज मेहता के कहने पर साइन किया था। उन्हें मेरे साथ काम करने पर गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी गई। मैंने श्री अष्टविनायक फिल्म्स को पैसे वापस दे दिए और फिर मैं Viacom पिक्चर्स में गया। उन्होंने भी ऐसा ही किया। बस इस बार नुकसान पहुंचाने वाला सोहेल खान थे और उन्होंने वहां के सीईओ विक्रम मल्होत्रा को धमकी दी। मेरा प्रॉजेक्ट खत्म हो चुका था और मैंने साइनिंग फीस 7 करोड़ रुपये 90 लाख इंटरेस्ट के साथ लौटाए। इसके बाद मुझे बचाने के लिए रिलायंस एंटरटेन्मेंट सामने आया हमने साझेदारी में फिल्म ‘बेशरम’ पर काम किया। इसके बाद सलमान खान और फैमिली ने फिल्म की रिलीज़ में रोड़े अटकाए ‘बेशरम’ की रिलीज़ से ठीक पहले उनके पीआरओ ने मुझपर खूब कीचड़ उछाले और मेरे खिलाफ नेगेटिव कैंपेन चलाया। हालात ये हो गए कि डिस्ट्रिब्यूटर्स मेरी फिल्म खरीदने से डर गए। खैर, रिलायंस इंडस्ट्री और मुझमें इस फिल्म को रिलीज करने की क्षमता थी, लेकिन यह लड़ाई शुरू हो चुकी थी। मेरे दुश्मन मेरे खिलाफ नेगेटिव कैंपेन चलाते रहे और फिल्म के बारे में बुरा कहते रहे ताकि यह बॉक्स ऑफिस पर ध्वस्त हो जाए, लेकिन यह जैसे-तैसे 58 करोड़ कमा गई। लेकिन उनकी लड़ाई जारी रही… उन्होंने फिल्म की सैटेलाइट रिलीज पर भी लगाया जो कि पहले ही Zee Telefilms के जयंती लाल को बेचा जा चुका था। हालांकि, रिलायंस के साथ अच्छे संबंध की वजह से सैटेलाइट राइट्स को लेकर नेगोशिएट हुआ, लेकिन काफी कम पैसों में।
इसके बाद कई सालो तक मेरे कई प्रॉजेक्ट्स अटक गए और मुझे मारने के साथ-साथ मेरे घर की फीमेल मेंबर्स के साथ रेप तक की धमकियां मिलीं। इस सबने मेरे और मेरी फैमिली के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा चोट पहुंचाया मेरा तलाक हो गया, मेरा फैमिली साल 2017 में पूरी तरह से बिखर गई। उन्होंने इस तरह की धमकियां अलग-अलग नंबर से टेक्स्ट मेसेज के जरिए दी थी। मैं सबूत के साथ साल 2017 में एफआईआर दर्ज करवाने पुलिस स्टेशन पहुंचा और उन्होंने इसे (non-cognizable complaint) रजिस्टर करने से इनकार कर दिया। जब ऐसी धमकियां आती रहीं तो मैंने पुलिस को फोर्स किया कि वे मेसेज भेजने वाले का पता लगाएं तो वे उन्हें (सोहेल खान- जिसपर मुझे मेसेज भेजने का शक था) ढूंढ नहीं पाए । मेरी शिकायत अब भी ओपन है जबकि मेरे पास पुख्ता सबूत हैं। मेरे दुश्मन काफी शातिर और चालाक है और हमेशा मुझपर छिपकर वार करते हैं, लेकिन अच्छी बात यह है कि मुझे इन 10 सालों में पता लग गया है कि कौन मेरे दुश्मन हैं। मैं आपको बता दूं कि ये हैं- सलीम खान, सलमान खान, अरबाज खान और सोहेल खान। वैसे तो छोटी-मोटी कई मछलियां हैं लेकिन सलमान खान का परिवार इस जहरीले तालाब का हेड है। वे किसी को भी डराने-धमकाने के लिए अपने पैसे, पॉलिटकल पावर और अंडरवर्ल्ड की ताकतों का मिलाकर इस्तेमाल करते हैं।
दुर्भाग्य से सच्चाई मेरी तरफ है और मैं सुशांत सिंह राजपूत की तरह हथियार नहीं रखने वाला। मैंने घुटने टेकने से इनकार कर दिया और तब तक लडूंगा जब तक कि या तो वे या फिर मैं खत्म न हो जाएं। बहुत हो गया बर्दाश्त, अब समय लड़ने का है। और यह धमकी नहीं है, यह ओपन चैलेंज है। सुशांत सिंह राजपूत आगे निकल गए और उम्मीद करता हूं कि वह जहां भी होंगे ज्यादा खुश होंगे, लेकिन मैं यकीन दिलाता हूं कि अब कोई इनोसेंट बॉलिवुड में सम्मान के साथ काम न मिलने पर अपनी जान नहीं देगा। मुझे उम्मीद है कि जो आर्टिस्ट इस सच को झेल चुके हैं वे मेरे पोस्ट को अलग-अलग सोशल प्लैटफॉर्म पर रीशेयर करेंगे।—Abhinav Singh Kashyap”
अभिनव कश्यप की दुखती आत्मा से निकली यह चीत्कार साफ साफ यह कह रही है की कहीं ना कहीं उजली और चमकती इन्डस्ट्री काजल की कोठरी है। ऐसा नहीं की यह सिर्फ सुशांत के साथ ही हुआ है अथवा अभिनव ही सिर्फ शिकार है, इससे पहले कई फिल्म स्टार ऐसे ही दुनिया से विदा हो गए हैं जिन्हें हम आसानी से जानते और पहचानते थे जैसे; प्रत्यूषा बनर्जी, सेजल शर्मा, राहुल दीक्षित, गजनी और निःशब्द फेम जिया खान, कुलजीत रंधावा, कुशल पंजाबी, शिखा जोशी जैसे बिल्कुल नए और प्रतिभाशाली नाम। इनके अलावा पुराने नामों में से जैसे; द लीजेंड गुरुदत्त, महान फिल्मकार मनमोहन देसाई, दिव्या भारती, सिल्क स्मिता के नाम से मशहूर वीजयालक्छ्मी, डिंपल कपाड़िया की छोटी बहन रिम कपाड़िया, नफीसा जोसेफ, परवीन बॉबी जैसे नाम भी आत्महत्या कर चुके हैं। कहीं कुछ तो ऐसा है जो इन्हें ऐसे आत्महत्यारा बनने पर मजबूर कर रहा है… इसी विषय को लेकर महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने सुशांत सिंह राजपूत की मौत पर फिल्म इंडस्ट्री में बिजनस राइवलरी के एंगल से जांच होने की बात कही है वहीं दूसरी ओर फिल्म मेकर अभिनव कश्यप ने भी सरकार से इस मामले की तह तक छानबीन की अपील की है।
अश्विनी राय ‘अरूण’
[…] https://shoot2pen.in/2020/06/16/cinema/सुशांत सिंह की आत्महत्या के बाद बॉलीवुड में नेपोटिज्म को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। इसका मतलब साफ है की चर्चा पहले भी थी लेकिन थोड़ी धीमी और दबी जबान में। ना तो सुशांत के मरने से पहले कोई शांति थी और नाहीं उनके मरने के बाद कोई शांति रहने वाली है। भाई भतीजावाद का मुद्दा तो सिर्फ बात की रुख को दूसरी ओर मोड़कर असली बात से जनता को बहकाने का साधन मात्र है, यहाँ असल बात कुछ और है। आप सोच रहे होंगे की पैसा तो जरूर होगा, तो नहीं जनाब यहाँ यह मुद्दा भी पूरी तरह सही नहीं है क्यूंकि पैसे के कीचड़ में जन्में ये किटाणुँ सिर्फ अपने गढ्ढे से आगे की नहीं सोचते। यहाँ बात है पावर की, अपने हुकूमत की तथा काले पैसे के छुपाने के साधन की। अगर इन तीनों के साथ पैसा, यौन शोषण, सेक्स, वंशवाद, भाई भतीजावाद, क्षेत्रवाद, अमीरी गरीबी, सीनियर जूनियर आदि जब जुट जाते हैं तो सीधी सी बात है, कोढ़ पर खाज होना तो तय है। एक बात तो मैं यहाँ कहना भूल ही गया की यह चमकती दुनिया सिर्फ कालिख की कोठरी ही तो है क्यूंकि यहाँ अंडरवर्ल्ड और माफिया अपने फायदे के लिए एक कम्युनिटी को पूरी तरह से बिठाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। […]
[…] चमकते सिनेमा का काला सच […]