डॉ. नगेन्द्र

आज हम बात करने जा रहे हैं आधुनिक हिन्दी की आलोचना को समृद्ध करने वाले डॉ. नगेन्‍द्र जी के बारे में। वे एक सुलझे हुए विचारक और गहरे विश्लेषक थे, जिनका जन्म ९ मार्च, १९१५ को उत्तरप्रदेश के अलीगढ़ ज़िले के अतरौली नामक कस्बे में हुआ था। अपनी शिक्षा के अंतर्गत नगेन्द्र जी ने अंग्रेज़ी और हिन्दी विषयों में एमए किया था। इसके बाद उन्होंने हिन्दी में डीलिट की उपाधि भी प्राप्त की थी। नागेन्द्र जी का साहित्यिक जीवन कवि के रूप में वर्ष १९३६ में तब हुआ जब उनका पहला काव्य संग्रह ‘वनबाला’ प्रकाशित हुआ। इसमें विद्यार्थीकाल की गीत-कविताएँ संग्रहीत हैं। एमए करने के बाद वे दस वर्ष तक दिल्ली के कामर्स कॉलेज में अंग्रेज़ी के अध्यापक रहे। पाँच वर्ष तक ‘आल इंडिया रेडियो’ में भी कार्य किया। बाद में वे दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में अध्यक्ष पद से निवृत्त होकर वहीं रहने लगे थे।

कुछ प्रमुख कृतियाँ…

विचार और विवेचन (१९४४),
विचार और अनुभूति (१९४९),
आधुनिक हिंदी कविता की मुख्य प्रवृत्तियाँ (१९५१),
विचार और विश्लेषण (१९५५),
अरस्तू का काव्यशास्त्र (१९५७),
अनुसंधान और आलोचना (१९६१),
रस-सिद्धांत (१९६४),
आलोचक की आस्था (१९६६),
आस्था के चरण (१९६९),
नयी समीक्षाः नये संदर्भ (१९७०),
समस्या और समाधान (१९७१) आदि प्रमुख हैं।

हिन्दी साहित्य में अपना विशिष्ट योगदान देने वाले साहित्यकार डॉ. नगेन्द्र जी का निधन २७ अक्टूबर, १९९९ को नई दिल्ली में हो गया। जो हिंदी साहित्य के लिए कभी ना भरने वाली एक बहुत बड़ी खाई बन गई।

अब आप पूछेंगे कैसे तो आइए हम आज इनके बारे में जानेंगे…

नगेन्द्र जी दिल्ली विश्वविद्यालय से प्रोफ़ेसर तथा हिन्दी विभागाध्यक्ष के पद पर से सेवानिवृत्त होने के उपरान्त स्वतन्त्र रूप से साहित्य की साधना में संलग्न हो गये थे। उन्होंने ‘एमरिट्स प्रोफ़ेसर’ के पद पर भी कार्य किया था। वह ‘आगरा विश्वविद्यालय’, आगरा से “रीतिकाल के संदर्भ में देव का अध्ययन” शीर्षक शोध प्रबन्ध पर शोध उपाधि से अलंकृत हुए थे। भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों में डॉ. नगेन्द्र को प्राध्यापक, रीडर एवं प्रोफ़ेसर के पदों पर नियुक्ति के समय विशेषज्ञ नियुक्त किया जाता था।

लेखन कार्य…

नगेन्द्र जी ने अपनी प्रखर कलम के द्वारा हिन्दी निबन्ध साहित्य की गरिमा को अद्वितीय बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निर्वाहित की। उनके द्वारा कृत ‘मेरा व्यवसाय’ और ‘साहित्य सृजन’ शीर्षक इस निबन्ध लेखक की आत्मपरक शैली का प्रतीक है। इस रचना में नगेन्द्र जी ने अपने आपको अपनी ही दृष्टि से देखा तथा परखा है। यह निबन्ध अध्यापकों – अध्यापिकाओं के लिये विशेषतः उपादेय है। डॉ. नगेन्द्र का यह मानना था कि “अध्यापक वृत्तितः व्याख्याता और विवेकशील होता है। ऊँची श्रेणी के विद्यार्थियों और अनुसन्धाताओं को काव्य का मर्म समझाना उसका व्यावसायिक कर्तव्य व कर्म है।” उन्होंने यह भी लिखा है कि “अध्यापन का, विशेषकर उच्च स्तर के अध्यापन का, साहित्य के अन्य अंगों के सृजन से सहज सम्बन्ध न हो, परन्तु आलोचना से उसका प्रत्यक्ष सम्बन्ध है।” कक्षा के मंच पर अध्यापक किसी साहित्यिक समस्या को लेकर स्वयं निर्णय ले सके तथा शिक्षार्थी वर्ग की निर्णय शक्ति का विकास कर सके। यह निश्चय ही अध्यापक के धर्म की परिधि कहलाती है।

भाषा…

डॉ. नगेन्द्र के निबन्धों की भाषा शुद्ध, परिष्कृत, परिमार्जित, व्याकरण सम्मत तथा साहित्यिक खड़ी बोली है। गद्य भाषा की प्रमुख विशेषता यह है कि वह विषयानुरूप अपना स्वरूप बदलती चलती है। निबन्धों में सर्वत्र भाषा का रूप साफ सुथरा, शिष्ट, मधुर एवं समर्थ लक्षित होता है। भारत भूषण अग्रवाल ने ‘नये शब्दों के निर्माण की दृष्टि से डॉ. नगेन्द्र का अवदान सर्वोपरि माना है। नगेन्द्र जी सामान्यतः गम्भीर तथा चिन्तन-प्रधान निबन्धकार के रूप में जाने जाते हैं। साहित्यिक आलोचनात्मक निबन्ध लेखन के आधार पर उन्होंने साहित्य की प्रभूत सेवाएँ की हैं। उनके निबन्धों में विचार-गांभीर्य, चिन्तन की मौलिकता तथा शैली की रोचकता का सहज समन्वय लक्षित होता है।

शैली…

डॉ. नगेन्द्र की निबन्ध लेखन की शैली में भावों एवं विचारों को अभिव्यक्ति प्रदान करने की अद्भुत क्षमता लक्षित होती है। उनकी लेखन शैली अंग्रेज़ी साहित्य से प्रभावित रही है। इसका कारण यह है कि वह अंग्रेज़ी साहित्य से सम्पूर्णतः प्रभावित और प्रेरित होकर हिन्दी साहित्य की साधना के मार्ग पर चले थे। उनके ‘निबन्ध साहित्य’ में निम्नलिखित शैलियों का व्यवहार सम्यक रूपेण लक्षित होता है-

विवेचनात्मक शैली – नगेन्द्र जी मूलतः आलोचनात्मक एवं विचारात्मक निबन्धकार के रूप में समादृत रहे थे। इस शैली में लेखक तर्कों द्वारा युक्तियों को सुलझाता हुआ चलता है। वह अत्यन्त गम्भीर एवं बौद्धिक विषय को अपनी कुशल विवेचना पद्धति के द्वारा सरल रूप में स्पष्ट कर देता है तथा विवादास्पद विषयों को अत्यन्त बोधगम्य रीति से समझाने की चेष्टा करता है। उनका ‘आस्था के चरण’ शीर्षक निबन्ध संकलन इस शैली का अच्छा उदाहरण है।

प्रसादात्मक शैली – इस शैली का प्रयोग डॉ. नगेन्द्र के निबन्ध साहित्य में सर्वत्र देखा जा सकता है। इस शैली के द्वारा लेखक ने विषय को सरल तथा बोधगम्य रीति से प्रस्तुत करने का कार्य किया है। यह भी एक तथ्य है कि कि डॉ. नगेन्द्र का मन सम्पूर्णतः प्राध्यापन व्यवसाय में ही रमण करता रहा। इसीलिए लिखते समय वह इस बात का ध्यान रखते थे कि जो बात वह कह रहे हैं, उसमें कहीं किसी प्रकार की अस्पष्टता न रह जाए।

गोष्ठी शैली – ‘हिन्दी उपन्यास’ नामक निबन्ध में नगेन्द्र जी ने “गोष्ठी शैली” का व्यवहार किया है। सही अर्थों में वे अपनी प्रतिभा के बल पर ही निबन्ध साहित्य में ‘गोष्ठी शैली’ की सृष्टि करने में सफल रहे थे।

सम्वादात्मक शैली – ‘हिन्दी साहित्य में हास्य की कमी’ शीर्षक रचना में इस शैली का प्रयोग देखा जा सकता है। इस शैली में जागरुक अध्येताओं को स्पष्टता एवं विवेचना दोनों ही बातें लक्षित हो जाएंगी।

पत्रात्मक शैली – ‘केशव का आचार्यत्व’ नामक रचना में डॉ. नगेन्द्र ने पत्रात्मक शैली का प्रयोग किया गया है। उल्लेखनीय बात तो यह है कि डॉ. विजयेन्द्र स्नातक कृत ‘अनुभूति के क्षण’ नामक रचना भी सम्पूर्णतः पत्रात्मक शैली की ही निबन्ध रचना है।

प्रश्नोत्तर शैली – डॉ. नगेन्द्र के लेखन में ‘प्रश्नोत्तर शैली’ का सौन्दर्य भी लक्षित हो जाता है। इस शैली में निबन्धकार स्वयं ही प्रश्न करता है तथा उसका उत्तर भी स्वयं ही देता है। डॉ. नगेन्द्र कृत ‘साहित्य की समीक्षा’ शीर्षक निबन्ध को इस शैली का अन्यतम उदाहरण माना जा सकता है।

संस्मरणात्मक शैली – ‘अप्रवासी की यात्राएँ’ नामक कृति ‘यात्रावृत्त’ की विधा की एक प्रमुख कृति है। यह रचना डॉ. नगेन्द्र की संस्मरणात्मक शैली के सौन्दर्य का उदाहरण प्रस्तुत करती है। ‘दद्दा- एक महान् व्यक्तित्व’ शीर्षक संस्मरणात्मक निबन्ध में इस शैली का व्यवहार लक्षित होता है।

आत्मसाक्षात्कार की शैली – ‘आलोचक का आत्म विश्लेषण’ नामक रचना में डॉ. नगेन्द्र का लेख इस शैली का प्रयोग करता हुआ लक्षित होता है। वस्तुतः निबन्ध की विधा में वे ऐसे शैलीकार के रूप में सामने आते हैं, जो रचना में आद्योपान्त अपनी रचना प्रक्रिया पर प्रकाश डालते हुए चलता है।

अश्विनी रायhttp://shoot2pen.in
माताजी :- श्रीमती इंदु राय पिताजी :- श्री गिरिजा राय पता :- ग्राम - मांगोडेहरी, डाक- खीरी, जिला - बक्सर (बिहार) पिन - ८०२१२८ शिक्षा :- वाणिज्य स्नातक, एम.ए. संप्रत्ति :- किसान, लेखक पुस्तकें :- १. एकल प्रकाशित पुस्तक... बिहार - एक आईने की नजर से प्रकाशन के इंतजार में... ये उन दिनों की बात है, आर्यन, राम मंदिर, आपातकाल, जीवननामा - 12 खंड, दक्षिण भारत की यात्रा, महाभारत- वैज्ञानिक शोध, आदि। २. प्रकाशित साझा संग्रह... पेनिंग थॉट्स, अंजुली रंग भरी, ब्लौस्सौम ऑफ वर्ड्स, उजेस, हिन्दी साहित्य और राष्ट्रवाद, गंगा गीत माला (भोजपुरी), राम कथा के विविध आयाम, अलविदा कोरोना, एकाक्ष आदि। साथ ही पत्र पत्रिकाओं, ब्लॉग आदि में लिखना। सम्मान/पुरस्कार :- १. सितम्बर, २०१८ में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा विश्व भर के विद्वतजनों के साथ तीन दिनों तक चलने वाले साहित्योत्त्सव में सम्मान। २. २५ नवम्बर २०१८ को The Indian Awaz 100 inspiring authors of India की तरफ से सम्मानित। ३. २६ जनवरी, २०१९ को The Sprit Mania के द्वारा सम्मानित। ४. ०३ फरवरी, २०१९, Literoma Publishing Services की तरफ से हिन्दी के विकास के लिए सम्मानित। ५. १८ फरवरी २०१९, भोजपुरी विकास न्यास द्वारा सम्मानित। ६. ३१ मार्च, २०१९, स्वामी विवेकानन्द एक्सिलेन्सि अवार्ड (खेल एवं युवा मंत्रालय भारत सरकार), कोलकाता। ७. २३ नवंबर, २०१९ को अयोध्या शोध संस्थान, संस्कृति विभाग, अयोध्या, उत्तरप्रदेश एवं साहित्य संचय फाउंडेशन, दिल्ली के साझा आयोजन में सम्मानित। ८. The Spirit Mania द्वारा TSM POPULAR AUTHOR AWARD 2K19 के लिए सम्मानित। ९. २२ दिसंबर, २०१९ को बक्सर हिन्दी साहित्य सम्मेलन, बक्सर द्वारा सम्मानित। १०. अक्टूबर, २०२० में श्री नर्मदा प्रकाशन द्वारा काव्य शिरोमणि सम्मान। आदि। हिन्दी एवं भोजपुरी भाषा के प्रति समर्पित कार्यों के लिए छोटे बड़े विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा सम्मानित। संस्थाओं से जुड़ाव :- १. जिला अर्थ मंत्री, बक्सर हिंदी साहित्य सम्मेलन, बक्सर बिहार। बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन, पटना से सम्बद्ध। २. राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य सह न्यासी, भोजपुरी विकास न्यास, बक्सर। ३. जिला कमिटी सदस्य, बक्सर। भोजपुरी साहित्य विकास मंच, कलकत्ता। ४. सदस्य, राष्ट्रवादी लेखक संघ ५. जिला महामंत्री, बक्सर। अखिल भारतीय साहित्य परिषद। ६. सदस्य, राष्ट्रीय संचार माध्यम परिषद। ईमेल :- ashwinirai1980@gmail.com ब्लॉग :- shoot2pen.in

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