April 26, 2024

बात वर्ष १९६४ बनी फ़िल्म ‘वो कौन थी’ के जबरदस्त कामयाबी के बाद की है, हुआ यूं कि निर्माता एन.एन.सिप्पी ने जब ‘वो कौन थी’ फिल्म देखी तो उन्होंने भी अपनी एक फिल्म के निर्देशन के लिए राज खोसला से बात की। कहानी थी फ़िल्म ‘गुमनाम’ की लेकिन राज खोसला को गुमनाम की कहानी में कोई कसावट नजर नहीं आई और नाही उसमें कोई दम ही नज़र नहीं आया, तो उन्होंने उस फिल्म को करने से साफ इंकार कर दिया। कई और निर्देशकों के दरवाजे से बैरंग वापस लौटने पर एन.एन.सिप्पी के मन में दो बातें चल रही थीं, पहली यह कि इस कहानी पर फिल्म बनाना बेकार है, इसे बंद कर देना ही अच्छा रहेगा और दुसरी बात यह कि गुमनाम के निर्देशन की ज़िम्मेदारी राजा नवाथे को सौंप दी जाए।

गुमनाम के टीम का चयन…

१. निर्देशक राजा नवाथे किसी समय में राजकपूर के असिस्टेंट हुआ करते थे और उनके साथ फिल्म ‘आग’, ‘बरसात’ और ‘आवारा’ में सहायक के रूप में काम कर चुके थे। उसके बाद उन्होंने स्वतंत्र रूप से फिल्म ‘आह’ से अपने करियर की शुरआत की और उसके बाद ‘बसंत बहार’ और ‘सोहनी महिवाल’ जैसी उन्होंने फिल्में बनाई और तब जाकर नंबर आया गुमनाम का।

२. पहले तो राजा नवाथे ने श्री सिप्पी से विचार विमर्श करके फिल्म ‘वो कौन थी’ के कास्ट को लेने की मंशा बनाई, मगर मनोज कुमार के अलावा कोई और इस फिल्म के साथ नहीं जुड़ा। तब साधना की जगह नंदा को लिया गया। इसके अलावा फिल्म में उस समय के मंजे हुए कलाकार प्राण, मदनपुरी, हेलेन, महमूद, धूमल और तरुण बोस जैसे कलाकारों को लिया गया।

महमूद पर विशेष चर्चा…

फिल्म की स्क्रिप्ट में महमूद वाले कैरेक्टर का कहीं भी कोई जिक्र नहीं था, परंतु फ़ायनेंसरों के दबाव की वजह से महमूद के लिए भी फिल्म में एक जगह निकाला गया। इसके पीछे कारण यह था कि उन दिनों महमूद बहुत बड़े स्टार थे, उनका फिल्म में होना हिट का फार्मूला था। मगर इसमें एक अड़चन भी थी, जहां फिल्मकार महमूद को फिल्म में लेना चाहते थे, वहीं कोई भी बड़ा कलाकार उनके साथ फिल्म करना नहीं चाहता था। वो डरते थे कि फिल्म में महमूद उन पर हावी न हो जाएं। इन सभी स्टार्स की कोशिश होती थी कि महमूद को फिल्म से निकलवा दें लेकिन निर्माता-निर्देशकों पर फ़ायनेंसरों का दबाव होता था कि फिल्म में महमूद के लिए अलग से एक रोल लिखवाया जाए। और अंत में इस फिल्म के कास्ट के साथ भी ऐसा ही हुआ।

मनोज कुमार और प्राण दोनों ने ही फिल्म में महमूद को लिए जाने का विरोध किया किंतु फ़ायनेंसरों और एन.एन.सिप्पी की जिद की वजह से उनकी एक ना चली और फिल्म में महमूद के लिए रोल लिखवा लिया गया। मनोज कुमार को सबसे ज्यादा परेशानी तब हुई जब उन्हें पता चला कि फिल्म में महमूद पर एक गीत भी फ़िल्माया गया है, उन्होंने यह कहकर गीत को हटवाने की पूरी कोशिश की कि इस घटिया गीत से फिल्म का स्तर गिर रहा है। मनोज कुमार राज खोसला के काफी नजदीक थे इसलिए अपनी बात के समर्थन के लिए उन्होंने राज खोसला के लिए फिल्म गुमनाम का एक स्पेशल शो रखवाया। राज खोसला ने भी उस गीत को फिल्म से हटाने को कहा, लेकिन एन.एन.सिप्पी ने मनोज कुमार और राज खोसला की सलाह पर ध्यान नहीं दिया। मनोज कुमार ने तो यहां तक कह दिया कि फिल्म ३ हफ्ते भी नहीं चल पाएगी, लेकिन २४ दिसम्बर, १९६५ को जब फिल्म रिलीज़ हुई तो इस फिल्म ने कामयाबी के कई रेकॉर्ड बनाए और महमूद का रोल और उनपर फ़िल्माया गया गीत ‘हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं’ को लोगों ने बेहद पसंद किया ये गीत आज भी महमूद की पहचान बना हुआ है फिल्म का बेहतरीन गीत ‘हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं महान कॉमेडियन महमूद पर फिल्माया गया जिसे रफ़ी साहब ने अपना मधुर स्वर दिया था।

कहानी…

गुमनाम वर्ष १९६५ में बनी एक सस्पेन्स थ्रिलर फ़िल्म थी जिसे बहुत ही अधिक सफलता मिली थी। कहानी इतनी दिलचस्प थी कि इसमें अन्त तक पता नहीं चलता कि असली खूनी कौन है। फिल्म की कहानी कुछ इस तरह की थी कि एक क्लब में सात लोगों की एक टीम, जिसमे पाँच पुरुष और दो महिलाएँ थीं, को इनाम के तौर पर एक प्राइवेट विमान से फ्री हॉलिडे के लिए विदेश भेजे जाने का ऐलान हुआ। लेकिन विमान में गड़बड़ी की वजह से, वो सभी लोग एक छोटे से द्वीप में जा उतरते हैं। आवास की तलाश में उन्हें एक हवेली मिल तो जाती है, पर जब वो अन्दर जाते हैं तो चौंक जाते है क्योंकि वहाँ मौजूद चौकीदार को उन सब के बारे में पूरी जानकारी है और वो जैसे कि उन्हीं लोगों का इन्तज़ार भी कर रहा था। कहानी यहीं से शुरु होती है, एक के बाद खून के ना रुकने वाले सिलसिले से।

मगर खूनी कौन है?

कौन बचाएगा, कौन नहीं?

कौन यहां से बच कर निकलेगा?

यह फिल्म वर्ष १९३९ में अगाथा क्रिस्टी के इंग्लिश मे छपी मशहूर मिस्ट्री उपन्यास ‘And Then There Were None’ पर आधारित थी।

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