October 12, 2024

एक रहस्यमई कमरे में काला चोंगा और सर पर अजीब सी टोप पहने कुछ लोग एक घेरा बनाकर खड़े हैं। उनके मध्य में अग्नि प्रज्वलित है। वहीं धरती पर कुछ आड़े तिरछे चिन्ह बने हैं। पीछे कहीं बजता संगीत माहौल को और भी डरावना बना रहा है। अग्नि को घेर कर जो लोग खड़े हैं वो लैटिन भाषा में कुछ मंत्र दोहराए जा रहे हैं। क्या आपको नहीं लगता कि यह किसी सस्पेंस थ्रिलर या भूतिया फिल्म का कोई सीन है? मगर सच्चाई यह है कि नहीं यह कोई फिल्म की नहीं बल्कि सीक्रेट सोसायटी या ख़ुफ़िया संगठन की कार्य प्रणाली की शुरुआत होने की प्रक्रिया है।

अगर आप इंटरनेट पर ‘सीक्रेट सोसायटीज’ सर्च करें तो आपको एक नाम पढ़ने को मिलेगा, इल्युमिनाटी। यह नाम मार्वल कॉमिक्स या मार्वल सिनेमा में अक्सर सुनने को मिलता है, इसके अलावा कई अन्य फ़िल्मों, किताबों और ख़ुफ़िया कहानियों में भी कई बार सुना होगा। कांस्पीरेसी थियोरीज यानी षड्यंत्र के सिद्धांत की मानें तो इल्युमिनाटी दुनिया का सबसे खतरकन संगठन है। इंटरनेट पर खोजने से पता चला कि इसके सदस्यों में बिल गेट्स और ओपरा विनफ़्रे जैसे नाम शामिल हैं। इन थियोरीज के अनुसार अमेरिकी राष्ट्रपति केनेडी की हत्या से लेकर देशों के बीच युद्ध करवाने और सरकारों को गिराने में इस संगठन का हाथ रहा है। इन कांस्पीरेसी थियोरीज में कितनी सच्चाई है ये तो आप अपने विवेक से तय कर सकते हैं। लेकिन इतिहास की माने तो इल्युमिनाटी नाम का एक संगठन इतिहास में हुआ करता था। क्या था ये संगठन? क्या थे इसके सीक्रेट नियम और ये कैसे काम करता था? चलिए पता लगाते हैं।

(Illuminati)

इल्युमिनाटी का जन्म…

बात १७४८ की है, मध्य यूरोप में बवेरिया नामक एक राज्य हुआ करता था। बवेरिया के इंग्लोस्टाड नाम के एक शहर में एडम वाइसहाप्ट का जन्म हुआ। वाइसहाप्ट के पूर्वज यहूदी थे और बाद में उन्होंने ईसाई धर्म को अपना लिया था। एडम वाइसहाप्ट को धर्म और धार्मिक नियमों में बेहद रुचि थी, इसलिए बड़े होकर वो इंग्लोस्टाड की यूनिवर्सिटी में धार्मिक नियमों के प्रोफ़ेसर बन गए। वाइसहाप्ट के सामने एक दिक़्क़त थी कि वो खुद पादरी नहीं थे। जबकि यूनिवर्सिटी का प्रशासन पादरियों से चलता था। वो भी कोई आम पादरी नहीं, बल्कि ये सभी रोमन कैथलिक चर्च के विशेष सम्प्रदाय, जेसुइट्स का हिस्सा थे। जेसुइट्स ऑर्डर की स्थापना १६वीं सदी में हुई थी और इनका काम था, दुनिया भर में ईसाई धर्म का प्रचार करना। जानकारी के लिए बता दें कि वर्ष १५८० में जेसुइट्स ऑर्डर के दो पादरी मुगल बादशाह अकबर के दरबार में पहुंचे थे। अकबर ने खुश होकर लाहौर में उन्हें एक चर्च बनाने की इजाज़त भी दे दी थी। अब बात को आगे बढ़ाते हैं…

१८वीं सदी के मध्य में जेसुइट्स ऑर्डर के तारे गर्दिश में चल रहे थे। कारण- यूरोप के देशों की जहां-जहां कोलोनियां थीं। वहां सारा काम शोषण और गुलामी से चलता था। गुलामों को बुरी हालत में रखा जाता था। जेसुइट्स गुलामी के खिलाफ तो नहीं थे, लेकिन गुलामों के साथ बेहतर बर्ताव की वकालत करते थे। ये यूरोपियन साम्राज्यों के हितों के खिलाफ था। इसलिए जेसुइट्स पादरियों पर लगाम लगाने के लिए उन पर प्रतिबंध लगा दिए गए। जेसुइट्स ख़तरे में थे। इसलिए वे उन सभी को शक की नजर से देखते थे, जो उनके ऑर्डर का हिस्सा नहीं थे। एडम वाइसहाप्ट भी जेसुइट्स का हिस्सा नहीं था। इसलिए उसको भी दबाने की कोशिश हुई। इस बात से खीजकर वाइसहाप्ट ने ऐसे दूसरे संगठनों की खोज शुरू कर दी। जहां उसके विचारों को आज़ादी मिले।

वाइसहाप्ट धार्मिक नियमों और तौर तरीकों में बदलाव चाहते थे। उसका मानना था कि धर्म को विज्ञान के साथ चलना चाहिए। इन विचारों को बढ़ावा देने के लिए उन्हें साथी चाहिए थे। इसलिए उन्होंने फ़्रीमेसन्स नाम के एक समुदाय से जुड़ने की कोशिश की। फ़्रीमेसन्स स्वतंत्र विचारधारा के लोगों की एक बिरादरी थी। जिसके सदस्य दर्शन और धर्म पर चर्चा करते थे। फ़्रीमेसन्स दुनिया के सबसे पुराने संगठनों में एक है और २१वीं सदी में भी अस्तित्व रखता था, जिसके सदस्य के रूप में स्वामी विवेकानंद भी अपने शुरुआती दिनों में जुड़े हुए थे। फ़्रीमेसन्स उदार ख़्यालों के लोग थे। लेकिन उनमें पर्याप्त क्रांतिकारी सोच नहीं थी, ऐसा एडम वाइसहाप्ट का मानना था। इसलिए उन्होंने तय किया कि वो अपना अलग संगठन बनाएंगे।

इल्युमिनाटी के नियम…

१ मई १७७६ के रात के अंधेरे में वाइसहाप्ट और उसके चार छात्र इंग्लोस्टाड के पास एक जंगल में इकट्ठा हुए। टॉर्च की रौशनी में इन पांच लोगों ने प्रतिज्ञा ली। प्रतिज्ञा ये कि वो अपने संगठन को खुफिया रखेंगे और अपनी पहचान किसी से जाहिर नहीं करेंगे। उन्होंने अपने खुफिया नाम रखे और अपने संगठन को नाम दिया इल्युमिनाटी। संगठन के कुछ नियम तय किए गए। मसलन वर्ष से अधिक उम्र का कोई भी व्यक्ति संगठन का सदस्य नहीं बन सकता था। उन्होंने उल्लू को अपने इल्युमिनाटी का प्रतीक बनाया। रोमन परम्परा के अनुसार उल्लू ज्ञान की देवी मिनरवा का सहायक होता है। इसलिए इसे ज्ञान, विवेक और न्याय का प्रतीक माना जाता है।

जल्द ही इल्युमिनाटी अपने शुरुआत के साथ ही तेजी से फैलने लगा। इसके सदस्य अय्यारो और जासूसों जैसा व्यवहार करते थे, दूसरे संगठनों जैसे फ़्रीमेसन्स में घुसपैठ कर उनके सदस्यों को अपने संगठन में शामिल करते थे। शामिल करने का भी एक नियम था। अगर आपने कभी इल्युमिनाटी का नाम सुना होगा तो उसके साथ एक तस्वीर देखी होगी। एक पिरामिड जिसके ऊपर एक आंख बनी होती है। ये पिरामिड इल्युमिनाटी के निर्माण को दर्शाता है। इल्युमिनाटी में सदस्यता के १३ तरह के स्तर थे जो तीन भाग में बंटे थे।

सबसे नीचे का तल उन लोगों का होता था, जो नए-नए संगठन में जुड़े होते थे। इन्हें मिनरवल कहा जाता था। सदस्य बनने के बाद ही ये लोग लीडर से ऑर्डर ले सकते थे। और समूह की मीटिंग में शामिल हो सकते थे। मिनरवल चार भागों में बंटा होता था…

१) इनिशिएट
२) नोविस
३) मिनरवल
४) इल्युमिनाटस माइनर

मिनरवल के बाद आता था दूसरा तल। इनका काम नए सदस्यों को शामिल करना और उन्हें समूह के तौर तरीक़ों की जानकारी देना होता था। इस भाग में पांच प्रकार के सदस्य होते थे…

५) अप्रेंटिस
६) फ़ेलो
७) मास्टर
८) इल्युमिनाटस मेजर
९) इल्युमिनाटस डीरिजंस

तीसरा और सबसे ऊपरी चरण था समूह के सबसे ताकतवर लोगों का। ये वो लोग थे जो समूह के कार्यकलाप निर्देशित करते थे। इनमें भी अलग अलग चरण होते थे…

१०. प्रीस्ट
११. प्रिंस
१२. मैगस
१३. किंग

इल्युमिनाटी का काम…

जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है, ये लोग उदारवादी थे। जिन्हें अंग्रेज़ी भाषा में लिबरल कहा जाता है। ये सत्ता में सुधार के हिमायती थे और चाहते थे कि लोग धार्मिक किताबों के बजाय तर्क संगत विचारों को प्राथमिकता दें यानी ये समाज में परिवर्तन लाना चाहते थे। मगर ये ऐसा कर नहीं पाए…

शुरुआत में इल्युमिनाटी को सफलता मिली। कुछ ही वर्षों में इसके सदस्यों की संख्या ५ से बढ़कर ढाई हज़ार हो गई। वर्ष १७७७ का समय इल्युमिनाटी के लिए सबसे अच्छा था। उस वर्ष चार्ल्स थियोडोर बवेरिया के राजा बने, जो खुद उदारवाद के समर्थक थे। उन्होंने परिवर्तन की कोशिश की। लेकिन जल्द ही बवेरिया के रईस उनके ख़िलाफ़ खड़े हो गए। अतः चार्ल्स थियोडोर को पीछे हटना पड़ा। इसी के साथ इल्युमिनाटी की भी उल्टी गिनती शुरू हो गई। संगठन के ठिकानों पर रेड पड़नी शुरू हो गई। इन ठिकानों से सरकार को संगठन के कई खुफिया दस्तावेज मिले, जिनके अनुसार इल्युमिनाटी सच में दुनिया पर राज करने, और दुनिया को अपने बस में करने की ख्वाहिश रखता था। एडम वाइसहाप्ट ने खुद को संगठन के राजा का दर्जा दिया हुआ था और वो खुद को स्पार्टकस के नाम से बुलाता था। ये सब बातें जब बाहर आई, इंग्लोस्टाड के ड्यूक ने इल्युमिनाटी पर प्रतिबंध लगा दिया और एडम वाइसहाप्ट को देश निकाला दे दिया गया। माना जाता है कि इसके बाद इल्युमिनाटी पूरी तरह ख़त्म हो गया। मगर सब ऐसा नहीं मानते। कई लोग मानते हैं कि इल्युमिनाटी इसके बाद भी जिंदा रहा। वर्ष १७९७ में बवेरिया के एक सम्मानित व्यक्ति, जॉन रॉबिनसन ने इल्युमिनाटी पर एक रिपोर्ट लिखी। जिसके अनुसार इसके सदस्य फ़्रीमेसन्स और जैकोबिंस से जा मिले थे और यहां भी इन्होंने अपने विचारों की घुस पैठ करा दी। जैकोबिंस के साथ नाम जुड़ने के कारण इल्युमिनाटी का नाम जिन्दा रहा। क्योंकि जैकोबिंस फ़्रांस का एक राजनैतिक क्लब था, जिसने फ़्रेंच क्रांति को अंजाम देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यहां से इल्युमिनाटी का नाम एक मिथक बन गया क्योंकि ऐसा माना जाने लगा कि जो संगठन फ़्रांस जैसे ताकतवर साम्राज्य में क्रांति करवा सकता है, वो बाक़ी जगह भी ऐसा कर सकता है। वर्ष १७९८ में इल्युमिनाटी का भूत अमेरिका भी पहुंचा, जब अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज वॉशिंगटन ने एक चिट्टी में इल्युमिनाटी के ख़तरे की बात कही थी। यहां तक कि अमेरिका के तीसरे राष्ट्रपति थॉमस जेफरसन पर इल्युमिनाटी का सदस्य होने का आरोप भी लगा था।

अभी तो फिल्म बाकी है मेरे दोस्त, २१वीं सदी में भी कई लोग हैं जो मानते हैं कि इल्युमिनाटी आज भी जिन्दा है और इसके ताकतवर सदस्य पर्दे के पीछे से दुनिया को कंट्रोल करते हैं। हम कहेंगे इल्युमिनाटी एक मिथक है, जो १८वीं सदी के एक छोटे से संगठन का नाम हुआ करता था। लेकिन फिर हमारे ऐसा कहने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता क्योंकि जो लोग इल्युमिनाटी में विश्वास रखते हैं, वो ये भी मानते हैं कि इल्युमिनाटी का कोई सदस्य ऐसी ही बात कहेगा।

सुनी सुनाई बात…

इल्युमिनाटी से जुड़े लोगों को लेकर माना जाता है कि ये लोग शैतानों के पुजारी होते हैं। इल्युमिनाटी ब्रेफोमैट, लूसिफर जैसे शैतान को अपना भगवान मानते हैं। कहा जाता है कि जो लोग इल्युमिनाटी के सदस्य हैं वे अपनी आत्मा शैतान को बेच देते हैं और बदले में उन्हें शोहरत और तमाम वो चीजें मिलती हैं जो वे चाहते हैं। इसके साथ ही जो लोग इस संस्था के सदस्य है वो समय समय पर प्रतीकों के माध्यम से यह दर्शाते हैं कि वो इल्युमिनाटी को फॉलो करते हैं। इनके प्रतीक चिह्नों में हाथो से ट्रायंगल बनाना, आँख का चिह्न, ६६६ नंबर और हाथ से बेफोमैट के चिह्न को बनाना।

बहुत से विशेषज्ञों और कलाकारों ने माना है कि वे इल्युमिनाटी जैसा संगठन वास्तव में है और ये अदृश्य होकर अपना एजेंडा चला रहा है। माना जाता है कि कई सेलिब्रिटी जिन्होंने बहुत कम समय में शोहरत हासिल की हो वास्तव में वो इल्युमिनाटी की ही देन है। वहीं कहा तो यह भी जाता है कि कई सेलिब्रिटी ने कबूला है कि वो इसके मेंबर भी हैं।

वहीं इल्युमिनाटी को लेकर बहुत से लोग इसका फायदा उठाकर लोगो में गलत सन्देश दे रहे हैं। इंटरनेट पर इल्युमिनाटी की वेबसाइट भी है जहां लोगो को मेंबर बनाया जाता है और उनसे चंदा भी लिया जा रहा है। हालांकि इल्युमिनाटी का अस्तित्व है या नहीं यह कहा नई जा सकता, बस अंदाजा लगाया जा सकता है। हां! अगर बात में सच्चाई है तो इतना जान लें कि पूरे विश्व की सारी संपत्ति का ९९ फीसदी हिस्सा इसी के सदस्यों के पास है। यानी इसके पास है, यानी ब्लैक रॉक इसके सामने कहीं भी नहीं ठहरता।

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