April 23, 2025

बाबू गुलाबराय भारत के प्रसिद्ध साहित्यकार, निबंधकार और व्यंग्यकार थे। वे हमेशा सरल साहित्य को प्रमुखता देते थे, जिससे हिन्दी भाषा जन-जन तक पहुँच सके। गुलाबराय जी ने दो प्रकार की रचनाएँ की हैं- दार्शनिक और साहित्यिक। उनकी दार्शनिक रचनाएँ उनके गंभीर अध्ययन और चिंतन का परिणाम हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में शुद्ध भाषा तथा परिष्कृत खड़ी बोली का प्रयोग अधिकता से किया है। आधुनिक काल के निबंध लेखकों और आलोचकों में बाबू गुलाबराय का स्थान बहुत ऊँचा है। उन्होंने आलोचना और निबंध दोनों ही क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा और मौलिकता का परिचय दिया है।

जन्म तथा शिक्षा…

बाबू गुलाबराय का जन्म १७ जनवरी, १८८८ को इटावा (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। उनके पिता भवानी प्रसाद धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। उनकी माता भी भगवान श्रीकृष्ण की उपासिका थीं। वे सूरदास और कबीर के पदों को तल्लीन होकर गाया करती थीं। माता-पिता की इस धार्मिक प्रवृत्ति का प्रभाव बाबू गुलाबराय पर भी पड़ा। गुलाबराय की प्रारंभिक शिक्षा मैनपुरी में हुई थी। अपनी स्कूली शिक्षा के बाद उन्हें अंग्रेज़ी शिक्षा के लिए ज़िले के विद्यालय में भेजा गया। गुलाबराय ने ‘आगरा कॉलेज’ से बी. ए. की परीक्षा पास की। इसके पश्चात् ‘दर्शनशास्त्र’ में एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करके गुलाबराय जी छतरपुर चले गए।

व्यावसायिक जीवन…

छतरपुर में गुलाबराय की प्रथम नियुक्ति महाराजा विश्वनाथ सिंह जूदेव के दार्शनिक सलाहकार के रूप में हुई। कुछ समय बाद उन्हें महाराज का निजी सहायक बना दिया गया। बाबू गुलाबराय अपने राजकीय कर्तव्य के पालन में सदैव सचेत रहते थे। वह राज्य के धन को ऐसी सावधानी से व्यय करते थे, जैसे वह उनका निजी धन हो। इस संबंध में अनेक प्रसंग भरे पड़े हैं। राज्य में जितना सामान ख़रीदा जाता था, वह महाराज के सहायक द्वारा ही क्रय किया जाता था। एक बार एक बड़े सौदागर से गुलाबराय ने कई हज़ार रुपये का सामान ख़रीदा। सौदागर ने उनको कमीशन ले लेने का संकेत किया। गुलाबराय ने पूछा- ‘कितना बनता है’। फिर उस सौदागर से कहा कि बिल में लिख दीजिए। उनकी इस मितव्ययिता तथा राजनिष्ठा से महाराज बड़े प्रभावित हुए। बाबू गुलाबराय ने छतरपुर दरबार में १८ वर्ष व्यतीत किए और राज दरबार के न्यायाधीश की भी भूमिका निभाई।

पशु-पक्षी प्रेमी…

बाबू गुलाबराय को पशु-पक्षियों से भी बहुत प्रेम था। जब महाराज का निधन हुआ, तब वे छतरपुर राज्य की सेवा छोड़कर आगरा वापस आ गये और अपने पालित पशु-पक्षियों को भी साथ लेकर आए। जो भी उनके संपर्क में आया, वही उनके परिवार का सदस्य और उनकी लेखनी का विषय बन गया।

लेखन विषय…

रचना दृष्टि से गुलाबराय जी ने दो प्रकार की रचनाएँ की हैं, दार्शनिक और साहित्यिक।

बाबू गुलाबराय की दार्शनिक रचनाएँ उनके गंभीर अध्ययन और चिंतन का परिणाम हैं। उन्होंने सर्वप्रथम हिन्दी को अपने दार्शनिक विचारों का दान दिया। उनसे पूर्व हिन्दी में इस विषय का सर्वथा अभाव था। गुलाबराय की साहित्यिक रचनाओं के अंतर्गत उनके आलोचनात्मक निबंध आते हैं। ये आलोचनात्मक निबंध सैद्धांतिक और व्यावहारिक दोनों ही प्रकार के हैं। उन्होंने सामाजिक, सांस्कृतिक, मनोवैज्ञानिक आदि विविध विषयों पर भी अपनी लेखनी चलाकर हिन्दी साहित्य की अभिवृद्धि की है।

भाषा…

बाबू गुलाबराय की भाषा शुद्ध तथा परिष्कृत खड़ी बोली है। उसके मुख्यतः दो रूप देखने को मिलते हैं – क्लिष्ट तथा सरल। विचारात्मक निबंधों की भाषा क्लिष्ट और परिष्कृत हैं। उसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों की प्रधानता है, भावात्मक निबंधों की भाषा सरल है। उसमें हिंदी के प्रचलित शब्दों की प्रधानता है साथ उर्दू और अंग्रेज़ी के शब्दों का भी प्रयोग मिलता है। कहावतों और मुहावरों को भी अपनाया है। गुलाबराय जी की भाषा आडंबर शून्य है। संस्कृत के प्रकांड पंडित होते हुए भी गुलाबराय जी ने अपनी भाषा में कहीं भी पांडित्य-प्रदर्शन का प्रयत्न नहीं किया। संक्षेप में गुलाब राय जी का भाषा संयत, गंभीर और प्रवाहपूर्ण है।

शैली…

गुलाब राय जी की रचनाओं में हमें निम्नलिखित शैलियों के दर्शन होते हैं-

विवेचनात्मक शैली : यह शैली बाबू गुलाबराय के आलोचनात्मक तथा विचारात्मक निबंधों में मिलती है। इस शैली में साहित्यिक तथा दार्शनिक विषयों पर गंभीरता से विचार करते समय वाक्य अपेक्षाकृत लंबे और दुरुह हो जाते हैं, किंतु जहाँ वर्तमान समस्याएँ, प्राचीन सिद्धांतों की व्याख्याएँ अथवा कवियों की व्याख्यात्मक आलोचनाएँ प्रस्तुत की गई हैं, वहाँ वाक्य सरल और भावपूर्ण हैं। इस शैली का एक उदाहरण- ‘राष्ट्रीय पर्व’ का मनाना कोरी भावुकता नहीं है। इस भावुकता का मूल्य है। भावुकता में संक्रामकता होती है और फिर शक्ति का संचार करती है। विचार हमारी दशा का निदर्शन कर सकते हैं किंतु कार्य संपादन की प्रबल प्रेरणा और शक्ति भावों में ही निहित रहती है।

भावात्मक शैली : बाबू गुलाबराय की इस शैली में विचारों और भावों का सुंदर समन्वय है। यह शैली प्रभावशालीन है और इसमें गद्य काव्य का सा आनंद आता है। इसकी भाषा अत्यंत सरल है। वाक्य छोटे-छोटे हैं और कहीं-कहीं उर्दू के प्रचलित शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। ‘नर से नारायण’ नामक निबंध से इस शैली का एक उदाहरण- ‘सितंबर के महीने में आगरे में पानी की त्राहि-त्राहि मची थी। मैंने भी वैश्य धर्म के पालने के लिए पास के एक खेत में चरी ‘बो’ रखी थी। ज्वार की पत्तियाँ ऐंठ-ऐंठ कर बत्तियाँ बन गई थीं।

हास्य और विनोदपूर्ण शैली : बाबू गुलाबराय ने अपने निबंधों की नीरसता को दूर करने के लिए गंभीर विषयों के वर्णन में हास्य और व्यंग्य का पुट भी दिया है। इस विषय में उन्होंने लिखा है- ‘अब मैं प्रायः गंभीर विषयों में भी हास्य का समावेश करने लगा हूँ। जहाँ हास्य के कारण अर्थ का अनर्थ होने की संभावना हो अथवा अत्यंत करुण प्रसंग हो तो हास्य से बचूँगा अन्यथा मैं प्रसंग गत हास्य का उतना ही स्वागत करता हूँ जितना कि कृपण या कोई भी अनायास आए हुए धन का।’ इस शैली में हास्य का समावेश करने के लिए गुबाब राय जी या तो मुहावरों का सहारा लेते हैं या श्लेष का। इस शैली के वाक्य कुछ बड़े हैं। इसमें उर्दू, फ़ारसी के शब्दों और मुहावरों का भी प्रयोग हुआ है।

रचनाएँ…

‘ठलुआ क्लब’, ‘कुछ उथले-कुछ गहरे’, ‘फिर निराश क्यों’ उनकी चर्चित रचनाएँ हैं। उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘मेरी असफलताएँ’ नाम से लिखी। आनंदप्रियता बाबू गुलाबराय के परिवार की एक ख़ास विशेषता रही थी। वह सभी त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाते थे। उम्र के साठ वर्ष बीतने पर उन्होंने इन उत्सवों में अपना जन्मदिन मनाने का एक उत्सव और जोड़ लिया था। इस दिन आगरा में उनके घर ‘गोमती निवास’ पर एक साहित्यिक गोष्ठी होती थी। इसमें अनेक साहित्यकार आते थे। बाबू गुलाबराय ने मौलिक ग्रंथों की रचना के साथ-साथ अनेक ग्रंथों का संपादन भी किया है। इनकी रचनाएँ इस प्रकार हैं-

१. आलोचनात्मक रचनाएँ : नवरस, हिंदी साहित्य का सुबोध इतिहास, हिंदी नाट्य विमर्श, आलोचना, कुसुमांजलि, काव्य के रूप, सिद्धांत अध्ययन

२. दर्शनसंबंधी : कर्तव्य शास्त्र, तर्क शास्त्र, बौद्ध धर्म, पाश्चात्य दर्शनों का इतिहास, भारतीय संस्कृति की रूपरेखा

३. बाल साहित्य : विज्ञान वार्ता, बाल प्रबोध

४. निबंध संग्रह : प्रकार प्रभाकर, जीवन-पशु-ठलुआ क्लब, मेरी असफलताएँ, मेरे मानसिक उपादान

५. संपादन ग्रंथ : सत्य हरिश्चंद्र, भाषा-भूषण, कादंबरी कथा-सार।

सम्मान और पुरस्कार…

बाबू गुलाबराय को साहित्यिक सेवाओं के फलस्वरूप ‘आगरा विश्वविद्यालय’ ने उन्हें ‘डी. लिट.’ की उपाधि से सम्मानित किया था। उनके सम्मान में भारतीय डाकतार विभाग ने २२ जून, २००२ को एक डाक टिकट जारी किया जिसका मूल्य ५ रुपये था और जिस पर बाबू गुलाबराय के चित्र के साथ उनकी तीन प्रमुख पुस्तकों को भी प्रदर्शित किया गया था।

निधन..

बाबू गुलाबराय ने अपने जीवन के अंतिम काल तक साहित्य की सेवा की। सन १९६३ में आगरा में उनका स्वर्गवास हुआ।

About Author

Leave a Reply

RocketplayRocketplay casinoCasibom GirişJojobet GirişCasibom Giriş GüncelCasibom Giriş AdresiCandySpinzDafabet AppJeetwinRedbet SverigeViggoslotsCrazyBuzzer casinoCasibomJettbetKmsauto DownloadKmspico ActivatorSweet BonanzaCrazy TimeCrazy Time AppPlinko AppSugar rush