April 26, 2024

गुरुदेव

अपनी किस्मत पर हमें आज गुमान हो रहा है, कारण की हम वहां जा सके हैं, जहाँ गुरुदेव का जन्मस्थान है। कोलकाता के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी।

पता :- गणेश टाकीज, २६७, रवीन्द्र सारणी, सिघी बगान, जोड़ासाँको, राजा कटरा, कोलकाता, पश्चिम बंगाल ७००००७

औऱ क़िस्मत देखिये हमारी, हमे वहां भी जाने का मौका मिला जहाँ गुरू आश्रम है, अर्थात

शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय

पश्चिम बंगाल मे बीरभूम जिले के अंतर्गत बोलपुर के समीप छोटा-सा शहर है। नोबेल पुरस्कार विजयी कवि गुरुजी के द्बारा विश्व-भारती विश्वविद्यालय की स्थापना के कारण यह नगर प्रसिद्ध हो गया। यह स्थान पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि गुरुदेव ने यहाँ कई कालजयी साहित्यिक कृतियों का सृजन किया।

रचना
बचपन से ही उनकी कविता, छन्द और भाषा में अद्भुत प्रतिभा का आभास लोगों को मिलने लगा था। उन्होंने पहली कविता आठ साल की उम्र में लिखी थी और सन् १८७७ में केवल सोलह साल की उम्र में उनकी प्रथम लघुकथा प्रकाशित हुई थी। भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान फूँकने वाले युगदृष्टा टैगोर के सृजन संसार में गीतांजलि, पूरबी प्रवाहिनी, शिशु भोलानाथ, महुआ, वनवाणी, परिशेष, पुनश्च, वीथिका शेषलेखा, चोखेरबाली, कणिका, नैवेद्य मायेर खेला और क्षणिका आदि शामिल हैं। देश और विदेश के सारे साहित्य, दर्शन, संस्कृति आदि उन्होंने आहरण करके अपने अन्दर समेट लिए थे। पिता के ब्रह्म-समाजी के होने के कारण वे भी ब्रह्म-समाजी थे। पर अपनी रचनाओं व कर्म के द्वारा उन्होंने सनातन धर्म को भी आगे बढ़ाया।

टैगोर ने करीब २२३० गीतों की रचना की।

रवींद्रसंगीत…
बाँग्ला संस्कृति का अभिन्न अंग है। टैगोर के संगीत को उनके साहित्य से अलग नहीं किया जा सकता। उनकी अधिकतर रचनाएँ तो अब उनके गीतों में शामिल हो चुकी हैं। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की ठुमरी शैली से प्रभावित ये गीत मानवीय भावनाओं के अलग-अलग रंग प्रस्तुत करते हैं।

अलग-अलग रागों में गुरुदेव के गीत यह आभास कराते हैं मानो उनकी रचना उस राग विशेष के लिए ही की गई थी। प्रकृति के प्रति गहरा लगाव रखने वाला यह प्रकृति प्रेमी ऐसा एकमात्र व्यक्ति है जिसने दो देशों के लिए राष्ट्रगान लिखा।भारत का राष्ट्र-गान जन गण मन और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान आमार सोनार बाँग्ला गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं।

गुरुदेव ने जीवन के अंतिम दिनों में चित्र बनाना शुरू किया। इसमें युग का संशय, मोह, क्लान्ति और निराशा के स्वर प्रकट हुए हैं। मनुष्य और ईश्वर के बीच जो चिरस्थायी सम्पर्क है उनकी रचनाओं में वह अलग-अलग रूपों में उभरकर सामने आया।

जीवन के अन्तिम समय…

७ अगस्त, १९४१ से कुछ समय पहले इलाज के लिए जब उन्हें शान्तिनिकेतन से कोलकाता ले जाया जा रहा था तो उनकी नातिन ने कहा कि आपको मालूम है हमारे यहाँ नया पावर हाउस बन रहा है। इसके जवाब में उन्होंने कहा कि हाँ पुराना आलोक चला जाएगा और नए का आगमन होगा।

गुरुदेव.. रबीन्द्रनाथ टैगोर

जोदी तोर डाक सुने केउ ना आसे
तोबे एकला चलो रे
तोबे एकला चलो, एकला चलो
एकला चलो, एकला चलो रे

About Author

Leave a Reply