April 26, 2024

भारत के प्रथम दलित उप-प्रधानमंत्री जगजीवन राम का जन्म ५ अप्रैल, १९०८ को बिहार के भोजपुर जिला अन्तर्गत चांदवा में हुआ था। जिन्हें सहपूर्ण भाव से लोग बाबूजी भी कहा करते थे। राजनीतिक ओहदे के अनुसार २८ वर्ष की अल्प आयु में ही वे बिहार विधान परिषद् के सदस्य के रूप में नामांकित हो गाए। जब गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट १९३५ के अनुसार १९३७ में जब चुनाव हुआ तब बाबूजी डिप्रेस्ड क्लास लीग के उम्मीदवार बने, और निर्विरोध विधायक चुन लिए गए। अब आप सोच रहे होंगे की इसमें ऐसा खास क्या है जो हमने इस विषय को यहाँ उठाया, तो अब हम आते हैं मुख्य मुद्दे पर।

अंग्रेजो ने यहाँ एक चाल चली थी, चुनाव करा कर वे भारतीय जनमानस में यह संदेश देना चाहते थे की, अंग्रेजी सरकार अब भारतीयों के हाँथ में सत्ता देने जा रही है और दूसरी ओर बिहार में वे अपनी पिट्ठू सरकार बनाने के प्रयास में थे। उन्होंने मोहम्मद युनुस के नेतृत्व में कठपुतली सरकार बनाने का निष्फल प्रयत्न किया, साथ ही उनकी कोशिश थी कि जगजीवन राम को लालच देकर अपने साथ मिला लिया जाए। अतः उन्होंने उन्हे मंत्री पद और पैसे का लालच दिया, लेकिन बाबूजी ने अंग्रेजों का साथ देने से साफ मना कर दिया। और उसके बाद बिहार में काँग्रेस की सरकार बनी, जिसमें वे मंत्री बने। मगर अंग्रेजों के गैरजिम्मेदार रुख के कारण साल भर के अंदर ही गांधी जी की सलाह पर काग्रेस सरकार ने इस्तीफा दे दिया। बाद में बाबूजी गांधी जी के सविनय अवज्ञा आन्दोलन में जेल गए। जब मुंबई में ९ अगस्त, १९४२ को गांधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की तो जगजीवन राम भी वहीं उनके साथ थे। तय योजना के अनुसार उन्हें बिहार में आंदोलन को तेज करना था, लेकिन दस दिन बाद ही उन्हे फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। १९४३ में रिहा होने के पश्चात् बाबूजी ने भारत को आज़ाद करने के लिए पूरा ज़ोर लगाया। बाबूजी उन बारह राष्ट्रीय नेताओं में से एक थे जिन्हें अंतरिम सरकार के गठन के लिए लार्ड वावेल ने अगस्त १९४६ को आमंत्रित किया। सितम्बर १९४६ में जेनेवा में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मलेन में हिस्सा लेने के उपरांत जब वे स्वदेश लौट रहे थे तभी बाबूजी का विमान इराक स्थित बसरा के रेगिस्तान में दुर्घटनाग्रस्त हो गया, मगर वे बच गाए। इसी वर्ष नेहरू जी के नेतृत्व में गठित प्रथम लोकसभा में बाबूजी ने श्रम मंत्री के रूप में देश की सेवा की व अगले तीन दशकों तक कांग्रेस मंत्रिमंडल की शोभा बढ़ाते रहे।

जगजीवन बाबू को श्रम, रेलवे, कृषि, संचार व रक्षा, जिस भी मंत्रालय का दायित्व दिया गया उसका सदैव कल्याण ही हुआ। बाबूजी ने हर मंत्रालय से देश को तरक्की पहुँचाने का अथक प्रयास किया है। स्वतंत्र देश घोषित होने के उपरान्त भारत के निर्माण की पूरी ज़िम्मेदारी नयी सरकार पर थी और इस ज़िम्मेदारी को पूरा करने में अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान बाबूजी का रहा। उनके द्वारा किए गाए कार्यों की संक्षिप्त जानकारी हम नीचे दे रहे हैं…

बाबूजी के मंत्रालय एवं उनके कार्य…

श्रम मंत्री के रूप में

श्रम मंत्रालय शुरु से ही उनका प्रिय विषय रहा क्योंकि चांदवा की माटी में पले-बढ़े बाबूजी का जन्म एक खेतिहर मजदूर के घर हुआ था जहाँ उन्होंने उन विलक्षण भरी परिस्तिथियों को स्वयं झेला है व कलकत्ता में वे मिल-मजदूरों की परिस्तिथि से भी वाकिफ़ थे। अतः श्रम मंत्री के रूप में बाबूजी ने समय द्वारा जांचे-परखे कुछ महत्त्वपूर्ण कानूनों को लागू करने का अहम फैसला लिया। ये कानून मजदूर वर्ग की सबसे बड़ी उम्मीद व आज के युग में सबसे बड़े हथियार के रूप में देखे जाते हैं।

कुछ इस प्रकार के कानून थे…

१. इंडस्ट्रियल डिसप्यूट्स एक्ट, १९४७
२. मिनिमम वेजेज़ एक्ट, १९४८
३. इंडियन ट्रेड यूनियन (संशोधन) एक्ट, १९६०
४. पेयमेंट ऑफ़ बोनस एक्ट, १९६५।
५. एम्प्लाइज स्टेट इंश्योरेंस एक्ट, १९४८
६. प्रोविडेंट फण्ड एक्ट, १९५२।

संचार मंत्री के रूप में

संसद भवन को अपना दूसरा घर मानने वाले बाबूजी वर्ष १९५२ में सासाराम से निर्वाचित होकर संचार मंत्री की उपाधि से अलंकृत हुए। उस समय संचार मंत्रालय में ही विमानन विभाग भी शामिल था। बाबूजी ने निजी विमान कम्पनियों के राष्ट्रीयकरण की ओर कदम बढ़ाया। अतः वायु सेना निगम, एयर इंडिया व इंडियन एयरलाइन्स की स्थापना हुई। इस राष्ट्रीयकरण योजना के प्रबल विरोध होने के कारण लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल भी इसे स्थगित करने के पक्ष में खड़े हो गए थे। परन्तु बाबूजी के समझाने पर वे मान गए व विरोध भी लगभग ख़त्म हो गया। गाँवों में डाकखानों का जाल बिछाने की बात भी उन्होंने कही व नेटवर्क के विस्तार का चुनौतीपूर्ण कार्य आरम्भ किया। बाबूजी के इस मेहनती अंदाज़ को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद जी ने कुछ इस प्रकार बयान किया है, ‘बाबू जगजीवन राम दृढ़ संकल्प कार्यकर्ता तो हैं ही, साथ ही त्याग में भी वे किसी से पीछे नहीं रहे हैं। इनमें धर्मोपासकों का सा उत्साह और लगन है’।

रेल मंत्री के रूप में

सासाराम से पुनर्निर्वाचित बाबूजी को वर्ष १९५६-६२ तक रेल मंत्रालय की ज़िम्मेदारी उठाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन्होंने रेल मंत्री के रूप में भारतीय रेलवेज़ का काया पलट ही कर दिया। बाबूजी ने भारतीय रेलवेज़ को आधुनिक दुनिया के सन्दर्भ में आधुनिक रेलवेज़ के निर्माण की बात कही। उन्होंने पांच सालों तक रेलवे किराया एक रुपया भी नहीं बढाया जो कि एक ऐतिहासिक घटना थी। उन्होने रेलवे अधिकारियों, अफसरों व कर्मचारियों के विकास पर अधिक बल दिया। और भारतीय रेलवे के इतिहास का सबसे बड़ा रेल जाल इन्ही के कार्यकाल में बुना गया।

विविध मंत्रालयों में बाबूजी के कार्य

१९६२ के चुनाव में सासाराम की जनता ने बाबूजी को पुनः विजयी बनाया। इस बार उन्हें परिवहन एवं संचार मंत्रालय का दायित्व दिया गया। परन्तु बाबूजी ने कामराज योजना के तहत इस्तीफ़ा दे दिया व कांग्रेस पार्टी को मज़बूत करने में लग गए।१९६६-६७ के चुनाव में विजयी बाबू जगजीवन राम को उस सरकार में एक बार फिर श्रम मंत्रालय दिया गया। किन्तु एक वर्ष उपरांत ही उन्हें कृषि एवं खाद्य मंत्रालय का दायित्व दे दिया गया, क्योकि चीन व पाकिस्तान से जंग के पश्चात भारत में गरीबी व भुखमरी के हालात पैदा हो गई थी तथा अमेरिका से पी.एल.४८० के तहत मिलने वाला गेहूं व ज्वार खाद्य आपूर्ति का मुख्य स्रोत था।ऐसी कठिन परिस्थिति में भी बाबूजी ने डॉ॰ नॉर्मन बोरलाग की सहायता से हरित क्रान्ति की बुनियाद रखी व मात्र दो वर्षों के उपरान्त ही भारत फ़ूड सरप्लस देश बन कर उभरा ही नहीं अपितु आत्मनिर्भर बन गया। कृषि एवं खाद्य मंत्रालय में रहते हुए बाबूजी ने देश को भीषण बाढ़ से भी राहत पहुंचाई व भारत को खाद्य संसाधनों में आत्मनिर्भर बनाया। १९७० में एक बार फिर बाबूजी की जीत हुई व उन्हें इंदिरा गाँधी की सरकार में इस बार रक्षा मंत्रालय मिला। बाबूजी ने सर्वप्रथम भारत के राजनैतिक मानचित्र को पूर्णतया परिवर्तित कर दिया। भारत-पाकिस्तान की उस अभूतपूर्व जंग में बाबूजी ने देश की जनता से वायदा किया कि ये जंग भारतभूमि के एक सूई की नोक के बराबर तक भाग पर भी नहीं लड़ी जायेगी, और वे इस वायदे पर कायम रहे। ‘देश को अनाज की दृष्टी से आत्म-निर्भर बनाने तथा बांग्लादेश की मुक्ति के युद्ध में उनका योगदान हमेशा याद रखा जायेगा’ वर्ष १९७४ में बाबूजी ने कृषि एवं सिंचाई विभाग की ज़िम्मेदारी ली व एक नयी प्रणाली ‘सार्वजनिक वितरण प्रणाली’ की नींव रखी जिसके द्वारा यह सुनिश्चित किया गया कि देश की आम जनता को पर्याप्त मात्रा व कम दाम में खाद्य पदार्थ उपलब्ध हो सके।

वर्ष १९६६ में माननीय डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद जी के निधनोपरांत कांग्रेस पार्टी का आपसी मतभेदों व सत्ता की लड़ाई के कारण बंटवारा हो गया। जहां एक तरफ नीलम संजीवा रेड्डी, मोरारजी देसाई व कुमारसामी कामराज जैसे दिग्गज नेताओं ने अपनी अलग पार्टी की रचना की वहीं श्रीमती इंदिरा गाँधी, बाबू जगजीवन राम व फकरुद्दीन अली जैसे व्यक्ति कांग्रेस पार्टी के साथ खड़े रहे। वर्ष १९६९ में बाबूजी निर्विरोध कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के रूप में स्वीकार कर लिए गए व बाबूजी ने पूरे देश में कांग्रेस पार्टी को मज़बूती प्रदान करने व उसकी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए पूर्ण प्रयास किया जिसके कारण कांग्रेस १९७१ के चुनाव में प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में लौट आई। बाबूजी १९३७-७७ तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य रहे। २५ जून, १९७५ को इंदिरा गाँधी द्वारा देश में आपातकाल की घोषणा कर दी। इस आपातकाल ने संविधान के मौलिक अधिकारों को सवालों के घेरे में ला दिया। इंदिरा गाँधी ने १८ जनवरी, १९७७ को चुनाव की घोषणा तो कर दी थी किन्तु देश को आपातकाल का डर था। अतः इस परिस्थिति से निपटने के लिए बाबूजी ने अपने पद का त्याग कर दिया व कांग्रेस पार्टी से भी इस्तीफ़ा दे दिया। उन्होंने उसी दिन ‘कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी’ नामक एक नयी पार्टी की स्थापना की। १९७७ के चुनाव में फिर से बाबूजी की विजय हुई व उन्हें रक्षा मंत्रालय का दायित्व दिया गया। २५ मार्च, १९७७ को कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी, जनता पार्टी में सम्मिलित कर ली गयी। जनवरी १९७९ में बाबूजी भारत वर्ष के उपप्रधानमंत्री के रूप में घोषित किये गए। मगर १९८० में जनता पार्टी का आपसी मनमुटावों के कारण बंटवारा हो गया एवं बाबूजी ने मार्च १९८० में अंततः कांग्रेस (जे) का निर्माण किया। वर्ष १९८४ के चुनाव में सासाराम की जनता ने अपने विश्वनीय प्रतिनिधि बाबू जगजीवन राम के लिए एक बार पुनः लोकसभा के द्वार खोल दिए।

६ जुलाई, १९८६ को बाबूजी ने अपनी अंतिम साँस ली। सदा एक ही चुनाव क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले बाबूजी सदा अपराजित ही रहे। बाबू जगजीवन रामजी ने १९३६ से १९८६ तक यानी आधी शताब्दी तक राजनीति में सक्रिय रहने व विजित रहने का विश्व कीर्तिमान स्थापित किया।

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