April 30, 2025

फिल्म : ब्रह्मास्त्र
निर्देशक : अयान मुखर्जी
कलाकार : अमिताभ बच्चन, नागार्जुन, रणबीर कपूर, आलिया भट्ट, मौनी रॉय आदि।
रेटिंग : १.५/५

फिल्म देखने के बाद का पहला रिएक्शन…

क्यूं बनाई यह फिल्म ?
क्या जरूरत थी बनाने की ??
किसके लिए बनाई फिल्म ???

इससे पहले ‘कृष’ सीरीज को छोड़कर तीन बार हम सुपरहीरो वाली फिल्म देख चुके हैं, जो अपनी कहानी को लेकर आज भी असमंजस में हैं और उसे अधूरी छोड़ चुके हैं। इनमें पहले नंबर पर ‘द्रोणा’ (अभिषेक बच्चन), दूसरे पर ‘रा वन’ (शाहरुख खान) और तीसरे पर ‘फ्लाइंग जट’ (टाइगर श्राफ) है। ये तीनों ही फिल्में अगली फिल्म का हिंट देकर खत्म होते हैं, मगर इन फिल्मों ने अपने निर्माताओं की ऐसी मट्टी पलीद करा रखी है कि बेचारे अगली सीरीज लाने के बारे में सोच भी नहीं पा रहे हैं। कहीं ऐसा ही हाल ब्रह्मास्त्र का ना हो, क्योंकि पहले भाग में दुनिया बचाने के लिए निकले सुपरहीरो को दुनिया से कहीं ज्यादा हीरोइन के साथ गाना गाने की चिंता है और यही हालत कहीं दूसरे भाग में ना हो क्योंकि सुपर विलेन भी प्यार के चक्कर में ही पत्थर बने खड़ा है।

परिचय मजाक में…

वर्ष २०१४ में अनाउंस हुआ कि अयान मुखर्जी (निर्देशक) अपनी कोई बड़ी फिल्म लाने वाले हैं। अयान मुखर्जी (स्वदेश के सह निर्देशक और वेक अप सिड के निर्देशक) जैसा कोई बड़ा नाम, जब इतने बड़े लेवल की फिल्म का सपना दिखाता है तो बीतते वक्त के साथ इंतजार की तीव्रता बढ़ती जाती है, जैसे अच्छे भोजन को बनते देख भूख और बेचैनी बढ़ जाती है। और सही मायनों में कहें तो यह प्रतीक्षा एक बुखार सा बढ़ता है। और फिर एक दिन वह समय आता है, जब आप बड़े से अंधेरे हॉल में गद्दीदार कुर्सी पर बैठते हैं और तीन घंटे बाद अपने आपको स्वयं अपने हाथों से ‘ब्रह्मास्त्र’ द्वारा भस्म हुआ पाते हैं।

कहानी भी जान लें…

कहानी शुरू होती है शिव नाम के एक लड़के से, दशहरा और दीपावली पर हुई कुछ अनहोनी घटनाओं के चलते उसे स्वयं पर कुछ शक होने लगता है। कहानी जब कुछ आगे बढ़ती है तो उसे (हमें तो मालूम था) मालूम होता है कि उसके पास कुछ विशेष शक्तियां हैं और उस शक्तियों के माध्यम से उसे यह भी ज्ञात होता है कि उसके विपरीत सुपर पावर वाला नेगेटिव कैरेक्टर कौन है और उसका मकसद क्या है? ब्रह्मास्त्र! जी हां ब्रह्मास्त्र पाना सुपर विलेन का मकसद है, जो तीन हिस्सों में बंटा हुआ है और उसके करिंदो को ब्रह्मास्त्र के तीनों टुकड़ों को लाकर जोड़ना है। ब्रह्मास्त्र को हासिल करने और उसकी रक्षा करने के मध्य की कहानी है ब्रह्मास्त्र की यह पहली किस्त ‘शिव’।

काम करने वाले…

ब्रह्मास्त्र की पहली किस्त शिव में, शिव की भूमिका में रणबीर कपूर हैं। उनके साथ आलिया भट्ट ईशा के किरदार में हैं। गुरु रघु महानायक अमिताभ बच्चन जी बने हैं। शाहरुख खान और नागार्जुन अहम किरदारों में हैं। अयान मुखर्जी और शाहरुख खान ‘स्वदेश’ फिल्म में साथ थे, तो उसी कनेक्शन को दोनो ने कैमियो के आधार पर आगे बढ़ाया है। इसके अलावा मौनी रॉय और सौरव गुर्जर पूरी फिल्म में धमाल मचाते हुए दिखते तो हैं मगर कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाते। क्योंकि दोनों सुपर विलेन हैं और पूरी फिल्म में किसी भी समय अपनी एंट्री पर दहशत पैदा नहीं कर पाते। इसके अलावा डिम्पल कपाड़िया भी दिखायी देती हैं, मगर क्यों, यह पता नहीं चल पाया है।

मामले से कुछ पर्दा हटाते हैं…

सही कहें तो, हमें भी कोई मामला समझ में नहीं आया। शुरू के दस मिनट में फिल्म ने समां बांधने की पूरी कोशिश की और उसके बाद बड़े बम का फुस्स धमाका साबित हुई। हुआ यूं कि… जाने भी दो हम नहीं बताएंगे क्योंकि स्पॉइलर की श्रेणी में आ जायेगा।

जस्ट इमैजिन, आप छप्पन भोग थाली लेकर बैठे हैं जिसमें बढ़िया से बढ़िया व्यंजन परोसे गए हैं, उनमें से कुछ मीठे तो कुछ तीखे और नमकीन हैं। आप ने मीठे खीर को मुंह में डाला और ये क्या?? पूरा मुंह कसैला हो गया, नमक ही नमक। जैसे तैसे पानी पी कर स्वाद को हटाया और मंचूरियन को मुंह में डाला तो मुंह मीठा हो गया। अब क्या करें आगे खाएं या यहीं से इतिश्री कह उठ जाएं? ब्रह्मास्त्र की असल सुपर-हीरो वाली कहानी वही छप्पन भोग वालिवहै और स्वाद आपको मजबूरन शिव-ईशा की लव-स्टोरी वाली है।

फिल्म की शुरुआत काफी थ्रिलिंग है और आप एक अच्छे फास्ट बॉलर ‘ब्रेट ली’ के पेस वाली सुपर-हीरो कहानी की अपेक्षा करने लग जाते हैं। लेकिन फिर वाइड पर वाइड यानी ‘मैं प्रेम की दीवानी हूं’ वाला प्लॉट कथा शुरू। वहीं दूसरी तरफ ‘डांस इंडिया डांस’ के ऑडिसन में जितनी भीड़ नहीं जुटी होगी उससे अधिक भीड़ को लेकर बीच बीच में हीरो नाचने निकल पड़ता है।

हीरो को सुपरहीरो के रूप में स्थापित करने के क्रम में इतनी ज्यादा मेहनत की गई है कि बाकी की फिल्म हल्की लगने लगती है और हल्के लगने लगते हैं बाकी के किरदार। यह समस्या पूरी फिल्म में लगातार चलती रहती है और फिर अंत में वीएफएक्स के जरिए फिल्म का हीरो सुपरहीरो के रूप में दिखाई पड़ता है। फिल्म को हाइवे पर चलाने की जिम्मेदारी सुपरहीरो को दी गई है, मगर बेचारा स्पीड ब्रेकर के रूप में हीरोइन से कभी भी बच नहीं पाता। और बच नहीं पाते दर्शक इसके भयानक क्रिंज डायलॉग्स, अटपटी बातें, गैर-जरूरी सिचुएशन और गानों से। फिल्म में असल काम की चीज महज १० से १५ प्रतिशत है। फिल्म अमिताभ बच्चन के माध्यम से अंत में यह समझाती है कि प्रेम से बड़ी ताकत इस दुनिया में और कोई है ही नहीं, जो कि हमने ‘ओम जय जगदीश’ के माध्यम से पहले से ही जान लिया है। शिव और ईशा की प्रेम-कथा सहज नहीं है बल्कि हम पर जबरन थोपी गयी है और इसके लिये अयान मुखर्जी सबसे बड़े दोषी हैं या निर्माता महोदय।

अयान के सहयोगी…

फिल्म का संवाद हुसैन दलाल ने लिखा है, जिन्होंने ‘ये जवानी है दिवानी’ के संवाद लिखे थे। उसी फिल्म के संवाद को, जो उनके डायरी में बाकी रह गए होंग, उनको ब्रह्मास्त्र में डाल दिया है, जैसे; ‘लाइट एक ऐसी रोशनी है जो…’ ईशा का अलग-अलग मौकों पर ‘कौन हो तुम?’ पूछना हो। आप स्वयं देखेंगे तो पाएंगे कि बगैर किसी विशेष मेहनत किए आपका हाथ आपके सर को छूने लगेगा। यह सिर्फ संवाद के साथ ही नहीं है, रणबीर और आलिया जिस तरह से मिलते हैं, उनकी दोस्ती बढ़ती है और पूजा पंडाल को छोड़कर ईशा, एक दिन पुराने पहचान वाले लड़के के साथ सीधे काशी चली जाती है, यह अपचनीय है। दूसरा, किसी सीरियस सिचुएशन में ‘तुम अमीर हो, मैं गरीब’, ‘भरोसा करना आता है?’ और ‘मेरे बिना तुम ठीक से रह लोगे?’ टाइप्स संवाद गले से कतई नहीं उतरते। ना तो सही तरह से ‘विलेन’ के संवाद गढ़े गए हैं और ना ही ‘हीरो’ के संवाद। उन दोनों के बीच की बातचीत ‘छोटा भीम’ टाइप बचकानी लगती है। सेंसर बोर्ड को चाहिए था कि इस फिल्म को ‘सिर्फ पंद्रह साल के बच्चे देखें’ का पाबंदी लगानी चाहिए थी।

गाना बजाना…

बड़े बड़े दावे ठोंके जाते हैं कि भारतीय फिल्म इंडस्ट्री अब वैश्विक हो गई है। मगर क्या विदेशी फिल्मों में दौड़ते हुए कहानी के बीच में गाने टंगड़ी मारते हैं? क्या आयरन मैन चित्तौरी सेना से लड़ने के दौरान अपनी गर्ल फ्रेंड के साथ डांस फ्लोर पर चला जाता है? या फिर सुपर मैन दुनिया बचाने के समय अपनी प्रेमिका को ‘नच बलिए’ कहता है? नहीं, कदापि नहीं। यह काम हमारे यहां के फिल्मकार करते हैं जो उस बीमारी से निकलना ही नहीं चाहते। उनकी फिल्मों में हीरो-हीरोइन को गानों में अनिवार्य रूप से नाचना ही होता है। उनमें से विशेष हैं धर्मा प्रोडक्शन और यशराज बैनर जैसे बैनर अभी भी पुरातन पद्धति को छाती से चिपकाए हुए हैं। क्या आप या हम यह सोच सकते हैं कि जब आयरन मैन की गोद में स्पाइडर मैन मर रहा हो तो पीछे उदित नारायण की आवाज़ में ‘मुसाफ़िर जाने वाले, नहीं फिर आने वाले…’ बजने लगे? नहीं न? लेकिन ब्रह्मास्त्र में जब दुनिया नष्ट हो रही थी, अरिजीत सिंह की आवाज़ में ‘केसरिया’ का एक वर्ज़न चल रहा होता है। लेकिन हां, गानों से इतर, बैकग्राउंड म्यूजिक अच्छा है जिसके पीछे अंग्रेज़ी कम्पोजर साइमन फ्रैन्ग्लेन का हाथ है। जहां-जहां मौका बन पाया, रोमांच पैदा करने में बैकग्राउंड म्यूजिक ने अच्छा काम किया है।

वीएफएक्स…

विजुअल इफेक्ट्स का काम अच्छा है। हिंदी फिल्मों में, इक्का-दुक्का फिल्मों को छोड़ दें तो जिनमें ग्राफिक्स की गुंजाइश न के बराबर रही, अब तक का सबसे अच्छा ग्राफिक्स देखने को इस फिल्म में मिलता है। इसके विजुअल इफेक्ट्स पर डीएनईजी नाम की कम्पनी ने काम किया है जिन्होंने फ़िल्म ड्यून को ऑस्कर दिलाया था।

और अंत में…

मार्वल यूनिवर्स की भांति ब्रह्मास्त्र ने भी अपना अस्त्रवर्स निकला है, जो कि पहली और नाकाम किस्त है। फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है जो दर्शकों ने पहले देखा न हो। ऐसे कैरेक्टर्स, ऐसी कहानियां, ऐसी परिस्थितियां, ऐसे एक्शन सीक्वेंस आदि यह सब ओटीटी पर पहले से ही दिखाए जा रहे हैं। ब्रह्मास्त्र में जो देखने को मिलता है वो आप पहले ही हैरी पॉटर, मार्वेल और डीसी सीरीज में देख चुके हैं। इसपर बात करने पर आ जाएं तो लम्बी लिस्ट बन सकती है। हां अगर इस फिल्म में कुछ नया है, तो वो है पौराणिक नाम। यानी नई बोतल में पुरानी शराब।

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