December 4, 2024

काशी के ऐतिहासिक कुण्ड एवं तालाबों की वर्तमान समय में स्थिति यह है कि अधिकांश कुण्ड मानव आवश्यकता की बलि चढ़ गये और इन्हें पाटकर उँची-उँची इमारतों और आलीशान कालोनियों ने अपना अस्तित्व कायम कर लिया है। इसके बावजूद काशी की धर्म परायण निवासियों और सैलानियों के लिये ये आज भी उतना ही महत्व रखते हैं, जो कभी प्राचीन काल में रहे थे। इन कुण्डों पर विशेष अवसरों पर मेले लगते हैं और श्रद्धालु वहाँ जाकर अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिये पूजा अर्चना करते हैं। अपनी जानकारी के अनुसार, उनमें से कुछ के नाम हम यहां दे रहे हैं…

लोलार्क कुण्ड…

लोलार्क कुण्ड बनारस के भदैनी मुहल्ले में है। यहाँ भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को एक विशाल मेला लगता है, जो लोलार्क छठ के नाम से प्रचलित है। कुण्ड की अनेक मान्यताओं में यह भी शामिल है कि इसमें स्नान करने से संतानोत्पत्ति में असमर्थ महिलाओं को भी संतानोत्पत्ति होती है और चर्म रोगियों को लाभ मिलता है।

दुर्गाकुण्ड…

काशी के सभी महत्वपूर्ण कुण्डों में ‘दुर्गाकुण्ड’ का नाम लोक जन की मस्तिस्क में सर्वप्रथम आता है, क्योंकि दुर्गाकुण्ड ही अब तक शेष बचे कुण्डों में सर्वाधिक सुरक्षित व अस्तित्व में है। लंका, बीएचयू से आगे जाने पर रविदास गेट के पास से बाईं ओर जाने वाले मार्ग पर दुर्गाकुण्ड है, वहीं कुंड के मुहाने पर माँ दुर्गा का भव्य मंदिर स्थित है। नवरात्रि माह में इस मंदिर में दर्शनार्थियों की भीड़ बढ़ जाती है।

बेनिया कुण्ड…

हजारों वर्ष पूर्व कभी काशी का बेणी तीर्थ हुआ करता था। जो अब बेनिया बाग के विशाल मैदान के एक छोर का कूड़ा-करकट व बड़ी-बड़ी जंगली घास से युक्त छोटी से गंदी झील में तब्दील हो चुका है।

बकरिया कुण्ड…

बकरिया कुण्ड हिन्दुओं का पवित्र सूर्य तीर्थ है। यह कुण्ड अलईपुर क्षेत्र में स्थित है। बकरिया कुण्ड के नाम से ही आज यह एक मोहल्ला है। जानकारी के लिए यह बताते चलें कि इसको उत्तरार्क या बर्करी कुण्ड भी कहा जाता है।

लक्ष्मीकुण्ड…

लक्सा थाना से सौ मीटर की दूरी पर औरंगाबाद मार्ग पर स्थित है। इसके तट पर स्थित माँ लक्ष्मी के मंदिर में भाद्रपद शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि से १६ दिन का मेला लगता है जो सोरहिया मेला के नाम से प्रसिद्ध है। लक्ष्मी कुण्ड के बारे में प्राचीन मान्यता रही है कि ये कुण्ड पहले लक्ष्मण कुण्ड के नाम से भी जाना जाता था।

कुरुक्षेत्र कुण्ड…

अस्सी से पंच मंदिर होते हुए रवीन्द्रपुरी कालोनी जाने वाले मार्ग पर दाहिनी ओर स्थित है कुरुक्षेत्र कुण्ड। इसके बारे में ऐसी मान्यता रही है कि यह कुण्ड हरियाणा राज्य के पानीपत स्थित कुरुक्षेत्र का ही एक स्वरूप है।

क्रीं-कुण्ड…

क्रीं-कुण्ड काशी में यह अघोर साधना का केन्द्र माना जाता है। यह शिवाला मुहल्ले में स्थित है तथा इसका मुख्य द्वार रवीन्द्रपुरी कालोनी मार्ग की तरफ है। यह तपोभूमि अधोरपीठ किनाराम बाबा स्थल के नाम से प्रसिद्ध है।

पितृकुण्ड…

पितृकुण्ड की प्रधानता पितरों के जलांजलि देने की प्रथा को दर्शाता है। महाभारत में जलदान की महिमा का जो विस्तृत वर्णन किया गया है, वह इसी स्थान की महिमा को दर्शाता है। जो यह बताता है कि जल के दान से बड़ा कोई दान नहीं है।

विमल कुण्ड…

विमल कुण्ड पिशाचमोचन तालाब के नाम से भी प्रसिद्ध है। पिशाचमोचन पर पिशाचेश्वर का मंदिर है। उनके दक्षिण में पित्रीश्वर पितरकुण्डा (पितृकुण्ड) है और वहीं पर छागलेश्वर भी है।

राम कुण्ड…

लक्सा क्षेत्र के अयोध्यापुरी में राम कुण्ड स्थित है।

सूरज कुण्ड…

गोदौलिया से नई सड़क की ओर जाने वाले रास्ते पर सनातन धर्म इंटर कालेज के बगल से अंदर जाने पर सूरज कुण्ड स्थित है।

कर्णघण्टा सरोवर…

कर्णघण्टा सरोवर, नीचीबाग से बुलानाला जाने वाले मार्ग में स्थित है। इस समय यह विलुप्त होने की कगार पर है।

मातृ कुण्ड…

मातृ कुण्ड लल्लापुरा में पितृकुण्ड के पहले स्थित था। इस कुण्ड को क्षेत्रीय लोगों ने कूड़ा डालकर धीरे-धीरे पाट दिया है।

रामकटोरा कुण्ड…

जगतगंज क्षेत्र में सड़क किनारे रामकटोरा कुण्ड स्थित है। इसी कुण्ड के नाम पर ही मोहल्ले का नाम रामकटोरा पड़ा है।

मत्स्योदरी तालाब…

विश्वेश्वरगंज से प्रह्लाद घाट की ओर जाने वाले रास्ते पर मत्स्योदरी तालाब (मच्छोदरी) स्थित है।

कपालमोचन तालाब…

कपालमोचन तालाब कज्जाकपुरा से पुराना पुल जाने वाले रास्ते पर है। इस तालाब को रानी भवानी ने पक्का कराया था।

ऐतरनी-वैतरणी तालाब…

ऐतरनी-वैतरणी तालाब, कज्जाकपुरा से कोनिया जाने वाले रास्ते पर है। रेलवे लाइन के निर्माण होने के बाद यह तालाब दो भागों में बंट गया है।

बृद्धकाल कूप…

बृद्धकाल कूप, मैदागिन चौमुहानी के पास दारानगर मुहल्ले में स्थित है।

काशी की नदियां

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