November 15, 2024

आईए आज एक सच्ची घटना से आपको रूबरू कराते हैं, इस घटना के पीछे की सच्चाई क्या थी अथवा किसने किसके विरुद्ध षड्यंत्र रचा था अथवा किसने इसकी पठकथा लिखी थी अथवा किसने इसकी सच्चाई को अब तक छुपाई है ??? यह तो आप जैसे सुधि पाठको को अथवा यूं कहें इसके रहस्य को समझना और सुलझाना होगा, तो आईए हम आपको जोड़ते हैं उस घटना से…आपरेशन ब्लू स्टार, हां! यही नाम है उस घटना का जिसे भारतीय सेना द्वारा ३ जून से ६ जून, १९८४ को अमृतसर स्थित हरिमंदिर साहिब परिसर को ख़ालिस्तान समर्थक जनरैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों से मुक्त कराने के लिए चलाया गया अभियान था।

इस घटना की शुरुआत वर्ष १९७० से कही जा सकती है, पंजाब समस्या की शुरुआत अकाली राजनीति में खींचतान और अकालियों की पंजाब संबंधित माँगों के रूप में हुई थी। १९७३ और १९७८ में अकाली दल ने आनंदपुर साहिब प्रस्ताव पारित किया। मूल प्रस्ताव में सुझाया गया था कि भारत की केंद्र सरकार का केवल रक्षा, विदेश नीति, संचार और मुद्रा पर अधिकार हो जबकि अन्य विषयों पर राज्यों को पूर्ण अधिकार हों। वे भारत के उत्तरी क्षेत्र में स्वायत्तता चाहते थे। उनकी माँग थी की चंडीगढ़ केवल पंजाब की ही राजधानी हो, पंजाबी भाषी क्षेत्र पंजाब में शामिल किए जाएँ, नदियों के पानी के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय की राय ली जाए, ‘नहरों के हेडवर्क्स’ और पन-बिजली बनाने के मूलभूत ढाँचे का प्रबंधन पंजाब के पास हो, फ़ौज में भर्ती काबिलियत के आधार पर हो और इसमें सिखों की भर्ती पर लगी कथित सीमा हटाई जाए, तथा अखिल भारतीय गुरुद्वारा क़ानून बनाया जाए। इससे अकालियों का समर्थन और प्रभाव बढ़ने लगा। इसी बीच अमृतसर में १३ अप्रैल, १९७८ को अकाली कार्यकर्ताओं और निरंकारियों के बीच हिंसक झड़प हुई। इसमें १३ अकाली कार्यकर्ता मारे गए। रोष दिवस में सिख धर्म प्रचार की संस्था के प्रमुख जरनैल सिंह भिंडरांवाले ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। अनेक पर्यवेक्षक इस घटना को पंजाब में चरमपंथ की शुरुआत के रूप में देखने लगे और आज भी देखते हैं। भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी पर सिख समुदाय में अकाली दल के जनाधार को घटाने के लिए जरनैल सिंह भिंडरांवाले को परोक्ष रूप से प्रोत्साहन देने का आरोप लगाया जाता है, इसकी सच्चाई जो भी हो…

जबकि अकाली दल भारत की राजनीतिक मुख्यधारा में रहकर पंजाब और सिखों की माँगों की बात कर रहा था लेकिन उसका रवैया ढुलमुल माना जाता था। जरनैल सिंह भिंडरांवाले ने इनपर कड़ा रुख़ अपनाया और केंद्र सरकार को दोषी ठहराना शुरु कर दिया। उसने विवादास्पद राजनीतिक मुद्दों, धर्म और उसकी मर्यादा पर नियमित तौर पर भाषण देना शुरू कर दिया। जिससे उसे(उन्हें) एक तबके का समर्थन भी मिलने लगा, तो दूसरी ओर पंजाब में हिंसक घटनाएँ बढ़ने लगी। सितंबर १९८१ में हिंदी समाचार पत्र – पंजाब केसरी समूह के संपादक लाला जगत नारायण की हत्या कर दी गई। जालंधर, तरन तारन, अमृतसर, फ़रीदकोट और गुरदासपुर में हुई हिंसक घटनाओं में कई जानें भी गईं। भिंडरांवाले पर हिंसक गतिविधियों को बढ़ावा देने के आरोप लगे। किन्तु पुलिस पर्याप्त सबूत नहीं होने की बात कहकर उसके खिलाफ कार्यवाई करने से बचती रही। सितंबर १९८१ में भिंडरांवाले के महता चौक गुरुद्वारे के सामने गिरफ़्तार होने पर वहाँ एकत्र भीड़ और पुलिस के बीच गोलीबारी हुई और ग्यारह व्यक्तियों की मौत हो गई। पंजाब में हिंसा का दौर शुरु हो गया। बात इतनी बढ़ गई की कुछ ही दिन बाद सिख छात्र संघ के सदस्यों ने एयर इंडिया के विमान का अपहरण भी कर लिया।

भिंडरांवाले को जनसमर्थन मिलता देख अकाली दल के नेता भी उनके समर्थन में बयान देने लगे। वर्ष १९८२ में भिंडरांवाले चौक महता गुरुद्वारा छोड़ पहले स्वर्ण मंदिर परिसर में गुरु नानक निवास और इसके कुछ महीने बाद सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था अकाल तख्त से अपने विचार व्यक्त करने लगा। अकाली दल ने सतलुज-यमुना लिंक नहर बनाने के ख़िलाफ़ जुलाई १९८२ में अपना ‘नहर रोको मोर्चा’ छेड़ रखा था जिसके तहत अकाली कार्यकर्ता लगातार गिरफ़्तारियाँ दे रहे थे। इसी बीच स्वर्ण मंदिर परिसर से भिंडरांवाले ने अपने साथी अखिल भारतीय सिख छात्र संघ के प्रमुख अमरीक सिंह की रिहाई के लिए नया अभियान शुरु किया। अकालियों ने अपने मोर्चे का भिंडरांवाले के मोर्चे में विलय कर दिया और इसे धर्म युद्ध मोर्चा कहकर गिरफ़्तारियाँ देने लगे, जिससे हिंसक घटनाएं और बढ़ीं। बात इतनी बढ़ गई की पटियाला के पुलिस उपमहानिरीक्षक के दफ़्तर में बम विस्फोट के साथ ही साथ पंजाब के उस समय के मुख्यमंत्री दरबारा सिंह पर भी हमला हुआ। अप्रैल १९८३ में पंजाब पुलिस के उपमहानिरीक्षक एएस अटवाल की दिन दहाड़े हरिमंदिर साहब परिसर में गोली मार दी गई। पुलिस का मनोबल लगातार गिरता चला गया। कुछ महीने बाद पंजाब रोडवेज़ की एक बस में घुसे बंदूकधारियों ने जालंधर के पास कई हिंदुओं को मार डाला।

इन सब से तंग आकर इंदिरा गाँधी सरकार ने पंजाब में दरबारा सिंह की काँग्रेस सरकार को बर्खास्त कर दिया और वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया। लेकिन पंजाब की स्थिति सुधरने के बजाय और बिगड़ती गई। मार्च १९८४ तक हिंसक घटनाओं में आकड़ों के अनुसार २९८ लोग मारे जा चुके थे। इंदिरा गाँधी सरकार की अकाली नेताओं के साथ तीन बार बातचीत भी हुई। किन्तु आख़िरी चरण की बातचीत फरवरी १९८४ में तब टूट गई जब हरियाणा में सिखों के खिलाफ भी हिंसा शुरू हुई। १ जून को स्वर्ण मंदिर परिसर और उसके बाहर तैनात केंद्रीय रिज़र्व आरक्षी बल के बीच गोलीबारी हुई। संत जरनैल सिंह, कोर्ट मार्शल किए गए मेजर जनरल सुभेग सिंह और सिख स्टूूडेंट्स फ़ेडरेशन ने स्वर्ण मंदिर परिसर को चारों तरफ से घेर कर खासी मोर्चाबंदी कर ली। उन्होंने भारी मात्रा में आधुनिक हथियार औ्र गोला-बारूद भी जमा कर लिए।

अब तक आपने भिंडरावाले और अकाली दल के राजनीतिक महत्वाकांक्षा को जाना, तो अब आप आगे दिए जा रहे विषय पर भी जरा गौर फरमाईयेगा… वर्ष १९८५ में होने वाले आम चुनाव से ठीक पहले इंदिरा गाँधी इस समस्या को सुलझाना चाहती थीं। अतः उन्होने सेना को ऑपरेशन ब्लू स्टार करने का आदेश दे दिया।

दो जून को हर मंदिर साहिब परिसर में हज़ारों की तादाद में श्रद्धालुओं ने आना शुरु कर दिया था क्योंकि तीन जून को गुरु अर्जुन देव जी का शहीदी दिवस था। उधर जब प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने देश को संबोधित किया तो यह स्पष्ट हो गया कि सरकार इस स्थिति को गंभीरता से देख रही है और भारत सरकार कोई बड़ी कार्रवाई कर सकती है। पंजाब से आने-जाने वाली रेलगाड़ियों और बस सेवाओं पर रोक लग गई, फ़ोन कनेक्शन काट दिए गए और विदेशी मीडिया को राज्य से बाहर कर दिया गया।

तीन जून को भारतीय सेना ने अमृतसर पहुँचकर स्वर्ण मंदिर परिसर को घेर लिया। शाम में शहर में कर्फ़्यू लगा दिया गया। चार जून को सेना ने गोलीबारी शुरु कर दी ताकि मंदिर में मौजूद मोर्चाबंद चरमपंथियों के हथियारों और असलहों का अंदाज़ा लगाया जा सके। चरमपंथियों की ओर से इसका इतना तीखा जवाब मिला कि पांच जून को बख़तरबंद गाड़ियों और टैंकों को इस्तेमाल करने का निर्णय किया गया। पांच जून की रात को सेना और सिख लड़ाकों के बीच असली भिड़ंत शुरु हुई। भीषण ख़ून-ख़राबा हुआ। अकाल तख़्त पूरी तरह तबाह हो गया। अकाल तख्त धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण था, क्योंकि उसे मुगल तख्त से भी ऊंचा बनवाया गया था। स्वर्ण मंदिर पर भी गोलियाँ चलीं। कई सदियों में पहली बार वहाँ से पाठ छह, सात और आठ जून को नहीं हो पाया। ऐतिहासिक दृष्टि से इसे देखा जाए तो महत्वपूर्ण सिख पुस्तकालय जल गया।

भारत सरकार के श्वेतपत्र के अनुसार ८३ सैनिक मारे गए और २४९ घायल हुए। ४९३ चरमपंथी या आम नागरिक मारे गए, ८६ घायल हुए और १५९२ लोगों को गिरफ़्तार भी किया गया। लेकिन ये आंकड़े आज भी विवादित माने जाते हैं।

इस कार्रवाई से सिख समुदाय की भावनाओं को जबरदस्त ठेस पहुँची थी, स्वर्ण मंदिर पर हमला करने को सिक्खों ने अपने धर्म पर हमला करने के समान माना। कई प्रमुख सिखों ने या तो अपने पदों से इस्तीफ़ा दे दिया या फिर सरकार द्वारा दिए गए सम्मान को लौटा दिया। राजनीतिक अथवा सामाजिक रूप से भले ही आपरेशन ब्लू स्टार को सफल मान लिया जाए परन्तु धार्मिक रूप से यह इंदिरा गांधी की सबसे बड़ी हारो में से एक साबित हुई। (अगर हम अपना नजरिया यहाँ रखें तो श्रीमती इंदिरा गांधी की राजनीतिक हारो में यह भी एक हार ही थी) इसके बाद सिखों और काँग्रेस पार्टी के बीच दरार पैदा हो गई जो उस समय और गहरा गई जब दो सिख सुरक्षाकर्मियों ने कुछ ही महीने बाद ३१ अक्टूबर को इंदिरा गाँधी की हत्या कर दी। भड़के सिख विरोधी दंगों से काँग्रेस और सिखों की बीच की खाई और बड़ी हो गई।

ऑपरेशन ब्लू स्टार के कारण आहत सिखो की धार्मिक भावनाओं का दुष्परिणाम यह निकला की ३१ अक्टूबर, १९८४ को इंदिरा गाँधी की नृशंस हत्या हो गई। उनके ही दो सिक्ख सुरक्षा प्रहरियों ने उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया, जिसके कारण इंदिरा गाँधी की मौके पर ही मृत्यु हो गई। लेकिन अपराह्न ३ बजे के आस-पास उनकी मृत्यु की सूचना प्रसारित की गई।

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