November 9, 2024

बाजीराव द्वितीय मराठा साम्राज्य का तेरहवां व अंतिम पेशवा थे। इनके समय में मराठा साम्राज्य का पतन शुरू हो गया।

परिचय…

वर्ष १७७५ में जन्में बाजीराव द्वितीय, रघुनाथराव (राघोवा) का पुत्र था। वह अपने प्रधानमंत्री नाना फड़नवीस से बाजीराव सदा नफ़रत करता रहा। जब नाना फड़नवीस की मृत्यु हुई तो वह स्वतंत्र रूप से स्वयं ही मराठा साम्राज्य की सत्ता सम्भालना चाहता था, जबकि वह एक क़ायर और विश्वासघाती व्यक्ति था। उसने अपने निजी स्वार्थ के लिए अंग्रेज़ों की सहायता प्राप्त कर पेशवा का पद प्राप्त कर लिया। वह अपने राष्ट्र के साथ ही साथ अंग्रेज़ों के साथ भी ईमानदार नहीं रहा। उसकी धोखेबाज़ी और बेइमानी के कारण अंग्रेज़ों ने उसे बंदी बनाकर बिठूर भेज दिया, जहाँ 1 जनवरी, १८५१ अथवा १८५३ में उसकी मृत्यु हो गई।

होल्करों से पराजय…

वर्ष १८०० में नाना फड़नवीस की मृत्यु के बाद उसके रिक्त पद के लिए दौलतराव शिन्दे और जसवन्तराव होल्कर में प्रतिद्वन्द्विता शुरू हो गई। इधर बाजीराव द्वितीय छल कपट से इन दोनों को ही अपने नियंत्रण में रखना चाहता था, जिसकी वजह से मामला और उलझ गया। अब मामला उल्टा हो गया, शिन्दे और होल्कर अब पेशवा को अपने नियंत्रण में लेना चाहते थे उसके लिए एक दिन पूना के फाटकों के बाहर युद्ध शुरू हो गया। अपनी पेशवाई जाता देख, बाजीराव द्वितीय ने शिन्दे का साथ देना उचित समझा। लेकिन होल्कर की सेना ने उन दोनों की संयुक्त सेना को पराजित कर दिया।

अंग्रेज़ों से सन्धि…

भयभीत पेशवा बाजीराव द्वितीय ने वर्ष १८०१ में बसई भागकर अंग्रेज़ों की शरण ली और वहीं ३१ दिसंबर, १८०२ को एक अंग्रेज़ी जहाज़ के ऊपर संधि पर हस्ताक्षर कर दिये, जिसे ‘बसई की सन्धि’ कहा जाता है। संधि के अंतर्गत उसने ईस्ट इंडिया कम्पनी का आश्रित होना स्वीकार कर लिया। अंग्रेज़ों ने बाजीराव द्वितीय को राजधानी पूना में पुन: सत्तासीन करने का वचन दिया और पेशवा की रक्षा के लिए उसने राज्य में पर्याप्त सेना रखने की ज़िम्मेदारी ली। इसके बदले में पेशवा ने कम्पनी को इतना मराठा क्षेत्र देना स्वीकार कर लिया, जिससे कम्पनी की सेना का खर्च निकल आए। उसने यह भी वायदा किया कि वह अपने यहाँ अंग्रेज़ों से शत्रुता रखने वाले अन्य यूरोपीय देश के लोगों को नौकरी पर नहीं रखेगा। इस प्रकार बाजीराव द्वितीय ने अपनी रक्षा के लिए अंग्रेज़ों के हाथ अपनी स्वतंत्रता बेच दी। मराठा सरदारों ने बसई की संधि के प्रति अपना रोष प्रकट करना शुरू कर दिया, क्योंकि उन्हें लगा कि पेशवा ने अपनी क़ायरता के कारण उन सभी की स्वतंत्रता बेच दी है। अत: उन लोगों ने इस आपत्तिजनक संधि को समाप्त कराने के लिए युद्ध की तैयारी की। परिणामस्वरूप द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध, जो वर्ष १८०३ से वर्ष १८०६ तक चला, जिसमें अंग्रेज़ों की जीत हुई और मराठा क्षेत्रों पर उनकी प्रभुसत्ता पूरी तरह से स्थापित हो गई।

इस बार संधि के द्वारा लगाये गये प्रतिबन्ध पेशवा बाजीराव द्वितीय को अच्छे नहीं लगे। उसने मराठा सरदारों में व्याप्त रोष और असंतोष का फ़ायदा उठाकर उन्हें अंग्रेज़ों के विरुद्ध दुबारा संगठित किया।

और अंत में…

नवम्बर, 1817 को बाजीराव द्वितीय के नेतृत्व में संगठित मराठा सेना ने पूना की ‘अंग्रेज़ी रेजीडेन्सी’ को लूटकर जला दिया और खड़की स्थिति अंग्रेज़ी सेना पर हमला कर दिया, लेकिन वहां वह पराजित हो गया। इसके बाद उसने दो और लड़ाइयां लड़ी…

१. जनवरी, १८१८ में, भीमा कोरेगाव की लडाई : अंग्रेजो ने ५०० महार सैनिकों के साथ अपनी एक छोटी टुकड़ी के बल पर पेशवा के २७,००० मराठा सैनिकों को पराजित कर दिया।

२. आष्टी की लड़ाई : पहली लड़ाई के एक महीने के बाद आष्टी की लड़ाई में भी पेशवा पराजित हुआ। इस बार उसने भागने की कोशिश की, लेकिन ३ जून, १८१८ को उसे अंग्रेज़ों के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा। अंग्रेज़ों ने इस बार पेशवा का पद ही समाप्त कर दिया और बाजीराव द्वितीय को अपदस्थ करके बंदी के रूप में कानपुर के निकट बिठूर भेज दिया जहाँ १ जनवरी, १८५१ अथवा १८५३ ईस्वी में उसकी मृत्यु हो गई।

मराठों की स्वतंत्रता नष्ट करने के लिए बाजीराव द्वितीय सबसे अधिक जिम्मेदार था।

अमृत राव 

नाना फड़नवीस

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