November 9, 2024

एक वकील, लेखक, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक आदि ना जानें क्या क्या थे राजाजी। वे स्वतन्त्र भारत के द्वितीय गवर्नर जनरल और प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल थे। इतना ही नहीं, आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि वे गांधीजी के समधी भी थे। राजाजी की पुत्री लक्ष्मी का विवाह गांधीजी के सबसे छोटे पुत्र देवदास गांधी से हुआ था। इतना कुछ कह गया, क्या आपने अब भी नहीं पहचाना, जी हां सही पहचाना वे चक्रवर्ती राजगोपालाचारी जी ही थे।

परिचय…

उनका जन्म १० दिसंबर, १८७८ को दक्षिण भारत के सलेम जिले में थोरापल्ली नामक गांव के तमिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था। आज वो गांव यानी थोरापली कृष्णागिरि जनपद में है। उनकी आरम्भिक शिक्षा होसूर में हुई थी। कालेज की शिक्षा मद्रास (चेन्नई) एवं बंगलुरू में हुई।

राजनीति…

वर्ष १९३७ में हुए काउन्सिलों के चुनावों में चक्रवर्ती के नेतृत्व में कांग्रेस ने मद्रास प्रांत में विजय प्राप्त की। उन्हें मद्रास का मुख्यमंत्री बनाया गया। वर्ष १९३९ में ब्रिटिश सरकार और कांग्रेस के बीच मतभेद के चलते कांग्रेस की सभी सरकारें भंग कर दी गयी थीं। राजाजी ने भी अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। इसी समय दूसरे विश्व युद्ध का आरम्भ हुआ, कांग्रेस और राजाजी के बीच पुनः ठन गयी। इस बार वह गांधीजी के भी विरोध में खड़े थे। गांधी जी का विचार था कि ब्रिटिश सरकार को इस युद्ध में मात्र नैतिक समर्थन दिया जाए, वहीं राजाजी का कहना था कि भारत को पूर्ण स्वतंत्रता देने की शर्त पर ब्रिटिश सरकार को हर प्रकार का सहयोग दिया जाए। यह मतभेद इतने बढ़ गये कि राजाजी ने कांग्रेस की कार्यकारिणी की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद वर्ष १९४२ में ‘भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ हुआ, तब भी वह अन्य कांग्रेसी नेताओं के साथ गिरफ्तार होकर जेल नहीं गये। इस का अर्थ यह नहीं कि वह देश के स्वतंत्रता संग्राम या कांग्रेस से विमुख हो गये थे। अपने सिद्धान्तों और कार्यशैली के अनुसार वह इन दोनों से निरन्तर जुड़े रहे। उनकी राजनीति पर गहरी पकड़ थी। वर्ष १९४२ के इलाहाबाद कांग्रेस अधिवेशन में उन्होंने देश के विभाजन को स्पष्ट सहमति प्रदान की। यद्यपि अपने इस मत पर उन्हें आम जनता और कांग्रेस का बहुत विरोध सहना पड़ा, किन्तु उन्होंने इसकी चिन्ता नहीं की। यही कारण है कि कांग्रेस के सभी नेता उनकी दूरदर्शिता और बुद्धिमत्ता का लोहा मानते रहे। कांग्रेस से अलग होने पर भी यह अनुभव नहीं किया गया कि वह उससे अलग हैं।

वर्ष १९४६ में भारत की जब अंतरिम सरकार बनी। उन्हें केन्द्र सरकार ने उद्योग मंत्री बनाया। वर्ष १९४७ में देश के पूर्ण स्वतंत्र होने पर उन्हें पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया। इसके अगले ही वर्ष वह स्वतंत्र भारत के प्रथम ‘गवर्नर जनरल’ जैसे अति महत्त्वपूर्ण पद पर नियुक्त हुए। वर्ष १९५० में वे पुन: केन्द्रीय मंत्रिमंडल में आ गये। यही वह वर्ष था जब सरदार वल्लभ भाई पटेल की मृत्यु हुई थी। अतः उन्हें केन्द्रीय गृहमंत्री बनाया गया। वर्ष १९५२ के आम चुनावों में वह लोकसभा सदस्य बने और मद्रास के मुख्यमंत्री निर्वाचित हुए। इसके कुछ वर्षों के बाद ही कांग्रेस की तत्कालीन नीतियों के विरोध में उन्होंने मुख्यमंत्री पद और कांग्रेस दोनों को ही छोड़ दिया और अपनी पृथक स्वतंत्र पार्टी की स्थापना की।

सम्मान…

भारतीय राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले राजाजी को वर्ष १९५४ में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। भारत रत्न पाने वाले वे पहले व्यक्ति थे। वह विद्वान और अद्भुत लेखन प्रतिभा के भी धनी थे। जो गहराई और तीखापन उनके बुद्धिचातुर्य में था, वही उनकी लेखनी में भी था। उन्होंने तमिल और अंग्रेज़ी में अपनी लेखनी को चलाया है। ‘गीता’ और ‘उपनिषदों’ पर उनकी टीकाएं प्रसिद्ध हैं। इनके द्वारा रचित चक्रवर्ति तिरुमगन के लिये उन्हें वर्ष १९५८ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (तमिल) से सम्मानित किया गया। यह गद्य में रामायण कथा है। उनकी लिखी अनेक कहानियाँ उच्च स्तरीय थीं। ‘स्वराज्य’ नामक पत्र में उनके लेख निरंतर प्रकाशित होते रहते थे।

अपनी बात…

वे दक्षिण भारत कांग्रेस के प्रमुख नायक थे, किन्तु कालांतर में उन्होंने कांग्रेस की नीति का प्रखर विरोधी किया तथा उन्होंने स्वतंत्र पार्टी नाम से एक नई पार्टी की स्थापना की। उन्होंने हिन्दी के लिए दक्षिण भारत में बृहद तौर पर प्रचार-प्रसार किया। इसके अतिरिक्त नशाबंदी और स्वदेशी वस्तुओं विशेषकर खादी के प्रचार प्रसार में उनका योगदान महत्त्वपूर्ण माना जाता है। अपनी वेशभूषा से भी भारतीयता के दर्शन कराने वाला यह महापुरुष २८ दिसम्बर, १९७२ को इस लोक से उस लोक की यात्रा पर निकल गया।

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