December 4, 2024

श्रीमंत पेशवा नारायणराव भट अपने मझले भाई माधवराव के बाद पेशवा बने थे। जबकि माधवराव से पूर्व उनके सबसे बड़े भाई विश्वासराव, पेशवा की उपाधि के उत्तराधिकारी थे, परंतु पानीपत की तीसरी लड़ाई के दौरान वे मारे गए थे अतः वर्ष १७६१ में माधवराव अपने पिता की मृत्यु के बाद पेशवा पद के उत्तराधिकारी बने थे।

परिचय…

श्रीमंत पेशवा नारायणराव भट का जन्म १० अगस्त, १७५५ को पेशवा बालाजी बाजीराव उर्फ नाना साहेब और उनकी पत्नी गोपिकाबाई के तीसरे पुत्र के रूप में हुआ था। उन्हें बचपन में पढ़ने, लिखने और अंकगणित में पारंपरिक शिक्षा के साथ ही साथ संस्कृत शास्त्रों की भी शिक्षा दिलाई गई। उनका विवाह गंगाबाई साठे से उनके आठवें जन्मदिवस के पूर्व यानी १८ अप्रैल, १७६३ को हुआ था।

पेशवाई…

पेशवा माधवराव ने अपनी मृत्यु से पूर्व, एक दरबार आयोजित करवाया, जिसमें उन्होंने अपने स्वर्गारोहण के मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की गई और अंत में, गणेश जी की प्रतिमा के सामने अपने छोटे भाई नारायणराव को अगले पेशवा के रूप में नामित किया। इतना ही नहीं, उन्होंने सखाराम बापू और नाना की सलाह से नारायणराव को अपना प्रशासन चलाने की सलाह दी।

हत्या…

३० अगस्त, १७७३ यानी अनंत चतुर्दशी के दिन सुमेर सिंह गर्दी अपने कुछ सैनिकों के साथ रघुनाथराव को रिहा करने के उद्देश्य से महल में घुस गया। गर्दियों ने रघुनाथराव और उनकी पत्नी आनंदीबाई से वादा किया था कि वे नारायणराव के साथ उनके विवाद में साथ देंगे। इस बात की जानकारी नारायणराव को नहीं थी, अतः गर्दियों के महल में घुस आने पर वह अपने चाचा रघुनाथराव के पास यह कहते हुए भागा कि काका मुझे बचाओ। उसे यह आशा थी कि उनके चाचा उन्हें नुकसान नहीं पहुँचाएंगे। परंतु उस बेचारे बालक पेशवा को क्या पता था कि इस कांड के पीछे उसका चाचा और चाची ही हैं। गर्दियों ने नारायणराव का पीछा किया। पेशवा को उसके चाचा रघुनाथराव के पास से तुलजी पवार ने खींच लिया और सुमेर सिंह गर्दी ने उन्हें कई टुकड़ों में काट दिया। उस समय घटनास्थल पर, कुल ११ लोग मारे गए थे।

इतिहासकार सरदेसाई लिखते हैं, “इन ११ पीड़ितों में नारायणराव सहित सात ब्राह्मण, दो मराठा नौकर और दो नौकरानियां शामिल थीं। यह विनाश आधे घंटे के भीतर हुआ। यह लगभग एक बजे हुआ। नारायणराव के शव को गुप्त रूप से शनीवर वाडा के नारायण द्वार के माध्यम से ले जाया गया और मुथा नदी के तट पर लक्डी पूल के पास अंतिम संस्कार किया गया। हत्या में कुल ४९ लोग शामिल थे।”

न्यायिक प्रक्रिया…

यह घटना पेशवाई पर सवाल उठाने लगा, जिसे सम्हालने के लिए नाना फड़नवीस आगे आए। उन्होंने प्रशासन के मुख्य न्यायाधीश राम शास्त्री प्रभु को घटना की जांच करने के लिए कहा। जांच में रघुनाथराव, आनंदीबाई और सुमेर सिंह गर्दी का नाम सामने आया, उनपर उनकी अनुपस्थिति में मुकदमा चलाया गया। रघुनाथ राव ने स्वयं को न्यायिक जांच के समक्ष समर्पण कर दिया। जांच के बाद आनंदीबाई को अपराधी घोषित कर दिया गया और सुमेर सिंह गार्दी को आरोपी, मगर वर्ष १७७५ को सुमेर सिंह गर्दी का बिहार के पटना में रहस्यमय तरीके से मृत पाया गया। इस वजह से आनंदीबाई पर जो आरोप लगे थे, वह सिद्ध ना हो सका। मगर फिर भी उसने अपने आप को जीवन पर्यन्त माफ नहीं किया, उसने अपने पापों से छुटकारा पाने के लिए अनेकों धार्मिक अनुष्ठान किए। खड़ग सिंह और तुलजी पवार, जो भाग कर हैदर अली के पास चले गए थे, उन्हें हैदर अली ने पकड़वाकर वापस मराठा सरकार को सुपूर्द कर दिया और उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया। इस तरह हत्या कांड में शामिल सभी आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा दी गई।

प्रशासन…

हत्या के समय नारायणराव की पत्नी गंगाबाई गर्भवती थी, इसलिए राज्य के मामलों का संचालन करने के लिए मराठा संघ के वरिष्ठ मंत्रियों और जनरलों ने आपसी सहमति से एक रीजेंसी काउंसिल का गठन किया, जिसे “बारभाई परिषद” के रूप में जाना जाता था। इस परिषद ने यह निर्णय लिया की यदि गंगाबाई एक नर बच्चे को जन्म देती, तो वह राज्य की उत्तराधिकारी बन जाएगा। कालांतर में परिषद ने नारायण राव के मरणोपरांत जन्में उनके बेटे सवाई माधव राव को नए “पेशवा” के रूप में घोषित कर दिया। नए पेशवा का नाम सुनते ही रघुनाथ राव (राघोबा) घटनास्थल से भाग गया। इस बार बाराभाई परिषद ने राज्य के मामलों को सवाई माधव राव द्वितीय के नाम से संचालित करना शुरू कर दिया क्योंकि वह अभी नाबालिग था। नया पेशवा सवाई माधव राव मात्र २१ वर्षों तक जीवित रहा और वर्ष १७९५ में उसकी भी मृत्यु हो गई। चूंकि उसका अपना कोई पुत्र नहीं था, अतः रघुनाथराव का पुत्र बाजी राव द्वितीय अगला पेशवा बन गया।

रघोबा

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