December 4, 2024

एक सच्ची कहानी…

यह कहानी है पंजाब के तरनतारन जिले के भिखीविंड गांव के रहने वाले सरबजीत की। सच्चाई जो भी हो, जैसा हमने सुना अथवा पढ़ा है कि २८ अगस्त, १९९० को शराब के नशे में सरबजीत सीमा पार कर गया जहां उसे पाकिस्तानी सेना ने गिरफ्तार कर लिया। और रॉ का एजेंट बताते हुए उसे लाहौर, मुल्तान और फैसलाबाद बम धमाकों का आरोपी बताया जाने लगा। इतना ही नहीं उसे दोषी करार कर अक्टूबर १९९१ में फांसी की सजा सुना दी गई। मगर भारत में सरबजीत के पक्ष में उसके परिवार वालों के साथ साथ मानवाधिकार संगठन भी उठ खड़े हुए। तब जाके दुनिया को पता चला कि सरबजीत के मामले में पाकिस्तान सरकार ने ना जाने कितने फर्जीवाड़े किए हैं। पाकिस्तान की अदालत में जो पासपोर्ट पेश किया गया था उस पर नाम लिखा था खुशी मोहम्मद और तस्वीर थी सरबजीत की। इसी तरह २००५ में पाकिस्तान में एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें यह दावा किया गया था कि सरबजीत ने अपना जुर्म कबूल लिया है, और वह मानता है कि वह रॉ का जासूस है, लेकिन इसके उलट २००५ तक पाकिस्तान सरबजीत को मंजीत सिंह कहता था। मगर वर्ष २००५ में ही वह गवाह मीडिया के सामने आया जिसने सरबजीत की पहचान की थी, उसने मीडिया से साफ साफ कहा कि उस पर दबाव डालकर सरबजीत के खिलाफ बयान दिलवाया गया था। लेकिन इतना होने के बावजूद ०१ अप्रैल, २००८ को सरबजीत को फांसी दिए जाने की तारीख तय कर दी गई। हालांकि कूटनीतिक प्रयासों के बाद फांसी अनिश्चितकाल के लिए टल भी गई। इतना ही नहीं जून २०१२ में पाकिस्तानी मीडिया में खबर आय़ी कि सरबजीत को रिहा किया जा रहा है लेकिन यह खबर अफवाह साबित हुई। जबकि सच्चाई यह थी कि पाकिस्तान सरकार ने सरबजीत के बदले सुरजीत सिंह की रिहाई का आदेश दिया था। तब भारत सहित पुरे विश्व में यह उम्मीद जागी कि सरबजीत अब अवश्य रिहा हो जाएगा, लेकिन सरबजीत के बदले उसकी आत्मा उसके शरीर से आजाद हो गई।

हुआ यह कि २६ अप्रैल को लाहौर के कोट लखपत जेल में सरबजीत पर हमला हुआ वह हमला जानलेवा साबित हुआ।

यह कहानी आप को किसी फिल्म की लगती होगी या कहीं सुनी सुनाई सी लगती होगी। लेकिन यह कहानी सच्ची है और भारत पाकिस्तान सहित पूरे विश्व में चर्चा का विषय बनी हुई थी। आइए आज हम इन्हीं सरबजीत के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं…

परिचय…

१८ दिसंबर, १९६३/१९६४ को पंजाब के तरनतारन जिला अंतर्गत भीखीविंद नामक गांव में सरबजीत का जन्म हुआ था। उसके पिता श्री सुलक्षण सिंह ढिल्लों उत्तरप्रदेश रोडवेज में नौकरी करते थे। कबड्डी का बेहतरीन खिलाड़ी सरबजीत मैट्रिक तक की पढ़ाई करने के बाद अपने परिवार की सहायता के लिए खेती किसानी करने लगा था। वर्ष १९८४ में उसकी शादी सुखप्रीत कौर से हो गई। जिससे उसे दो बेटियां पूनमदीप और स्वपनदीप हुई।

२८ अगस्त,१९९० का वो मनहूस दिन जब वाहवशराब के नशे में पाकिस्तान की सीमा में घुस गया।(तब तार के बाड़े नहीं होते थे) और एक पाकिस्तानी कर्नल ने उसे पकड़कर सात दिन तक रखा, फिर अदालत में पेश कर दिया। अदालत में उसे मंजीत सिंह के नाम से पेश किया गया। कारण की इसी नाम से उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज किया गया। उस पर भारत के लिए जासूसी करने के आरोप लगे।

सरबजीत की चिठ्ठी…

सरबजीत पाकिस्तान के कोट लखपत जेल में बंद हो गया। वर्ष २०१० में एक बार सरबजीत ने अपने साथ बन्द कैदियों के बुरे व्यवहार के बारे में जेल प्रशासन को बताया था। लेकिन इसके बावजूद जेल प्रशासन ने उसकी सुरक्षा पर कोई कदम नहीं उठाए। उसने अपने वकील अवैस शेख को इस संबंध में एक मार्मिक चिट्ठी भी लिखी। पत्र में उसने अपनी आपबीती बयां की थी। उसने लिखा था कि पाकिस्तान के सरकारी संस्थान (पुलिस और कोर्ट) उसे सरबजीत से मंजीत सिंह बनाने पर तुले हुए हैं, जबकि वह खुद मंजीत सिंह के बारे में जानता भी नहीं है और उसने पाकिस्तान में क्या किया है, इसका भी इल्म उसे नहीं है। उसने लिखा था, “जेल का स्टाफ और पुलिस और यहां तक कि जेल में बंद कैदी भी मुझे हिकारत भरी नजरों से देखते हैं। वे मुझे धमाके करने वाला मानते हैं।” सरबजीत ने पाकिस्तानी वकील अवैस शेख का धन्यवाद देते हुए लिखा कि उन्होंने असली मंजीत सिंह को ढूंढ निकाला। जब सरबजीत को पकड़कर मंजीत सिंह बनाया तो उस वक्त असली मंजीत सिंह इंग्लैंड और कनाडा की सैर कर रहा था। लेकिन बाद में वह पकड़ा गया।

सरबजीत के परिवार के अनुसार वह सीमा पर स्थित अपने गांव से पाकिस्तान में भटक जाने के बाद वह गलत पहचान का शिकार बन गया।

उसने लिखा था, “जेल का स्टाफ और पुलिस और यहां तक कि जेल में बंद कैदी भी मुझे हिकारत भरी नजरों से देखते हैं। वे मुझे धमाके करने वाला मानते हैं। मैं पाकिस्तान में गलती से दाखिल हो गया था। लेकिन मुझे लगता है कि मैं जल्द ही छूट जाऊंगा। मैंने कोई जुर्म नहीं किया है, सिर्फ बॉर्डर ही तो पार किया था, वो भी गलती से।”

हकीकत पर एक नज़र…

सच्चाई हम नहीं जानते, हमें अखबारों से जो मिला, टीवी पर जो देखा सुना उसी से कुछ अंदाजा लगा रहे हैं।

सरबजीत के पाकिस्तानी वकील ओवैस शेख़ ने असली आरोपी मनजीत सिंह के खिलाफ जुटाए तमाम सबूत पेश कर मामला फिर से खोलने की अपील की। वकील ओवैस शेख़ ने कोर्ट में दावा किया कि उनका मुवक्किल सरबजीत बेगुनाह है और वो मनजीत सिंह के किए की सजा काट रहा है। ओवैस शेख़ का कहना था सरबजीत को १९९० में मई-जून में कराची बम धमाकों का अभियुक्त बनाया गया है, जबकि वास्तविकता में २७ जुलाई, १९९० को दर्ज एफआईआर में मनजीत सिंह को इन धमाकों का अभियुक्त बताया गया है।

अब देखने और सोचने वाली बात यह है कि क्या सरबजीत रॉ का जासूस था या भोला भाला साधारण किसान जो गलती से फंस गया था। या सरबजीत ही मंजीत था, जैसा कि पाकिस्तानी सरकार और उसकी पुलिस कह रही थी। या कोई और, जो सिर्फ हम आप कायस लगा सकते हैं।

मृत्यु…

जैसा की हमने ऊपर कहानी में सरबजीत की मौत के बारे में लिखा है, आइए एक बार फिर से इस विषय पर गहन अध्ययन करते हैं…

२६ अप्रैल, २०१३ को तक़रीबन दोपहर के ४.३० पर सेंट्रल जेल, लाहौर में कुछ कैदियों ने ईंटो, लोहे की सलाखों और रॉड से सरबजीत पर हमला कर दिया। सीधी नजर से यह कैदियों के मध्य आपसी रंजिश दिखता है, मगर मामला इसके उलट है। मानवाधिकार आयोग का दबाव, भारत की कूटनीतिक दबाव, सरबजीत के परिवार वालों का दबाव, इसके अलावा सरबजीत के वकील द्वारा लिखित सबूत के कारण विदेशी मीडिया आदि का दबाव के कारण सरबजीत की फांसी धीरे धीरे आगे बढ़ती जा रही थी और साथ ही उसके छूटने की संभावना भी बढ़ती जा रही थी। पूरी दुनिया में शर्मिंदगी झेलता पाकिस्तान क्या सरबजीत को यूं ही जाने देता। (बस एक अनुमान) अच्छा छोड़िए अब बात को आगे बढ़ाते हैं।

नाजुक हालत में सरबजीत को जिन्नाह हॉस्पिटल, लाहौर में भर्ती करवाया गया, उस समय वह कोमा में चला गया था। उसकी रीढ़ की हड्डी भी टूट चुकी थी। फिर भी हॉस्पिटल में उसे वेंटीलेटर पर रखा गया था। लेकिन उसपर कितने हमले किये गये थे और क्यों किये गये थे इस बार में पकिस्तान सरकार ने बताने से इंकार कर दिया। सरबजीत की बहन का ऐसा मानना था की उसपर जो हमला किया गया था उसकी पहले से ही योजना बनाई गयी थी। उसकी पत्नी, बहन और 2 बेटियों को उसे हॉस्पिटल में देखने की इज़ाज़त दी गयी थी।

२९ अप्रैल, २०१३ को भारत ने पकिस्तान से सरबजीत सिंह को रिहा करने की अपील भी की लेकिन भारत की इस अपील को पकिस्तान सरकार ने ख़ारिज कर दिया। सरबजीत के वकील ने भी पकिस्तान कोर्ट में सरबजीत की रिहाई की अपील की लेकिन वे भी इसमें असफल हुए और पकिस्तान सरकार ने सरबजीत को मेडिकल जांच के लिये भारत भेजने की बजाये UK भेज दिया।

१ मई, २०१३ को जिन्नाह हॉस्पिटल के डॉक्टरो ने सरबजीत को ब्रेनडेड घोषित किया लेकिन पाकिस्तानी अधिकारियो ने इसे मानने से इंकार कर दिया। और उसकी बहन और उसके परिवार को भी भारत वापिस भेज दिया। लेकिन भारत आने के बाद सरबजीत की बहन ने दावा किया की डॉक्टर इमानदारी से उसके भाई का इलाज नहीं कर रहे हैं। बहन का ऐसा कहना है की उन्होंने उसके भाई के अंगूठे पर स्याही का निशान देखा था और जब उन्होंने डॉक्टरो से इस विषय में पूछा था तो उन्होंने इसका जवाब देने से इंकार कर दिया था।

२ मई, २०१३ को, रात १२.४५ पर लाहौर में ही उसकी मृत्यु हो गयी थी। और उस वेंटिलेटर से भी निकाल लिया गया। बाद में उसके शव को भारत भेजा गया और पोस्टमार्टम में भारतीय डॉक्टरो ने यह बताया की उसके शरीर के मुख्य अंग निकाल दिए गये थे। और उन्होंने बताया की पकिस्तान में किये गये पोस्टमार्टम में उसके शरीर के साथ छेड़खानी की गयी थी।

सरबजीत तो मर गया, पंजाब सरकार ने तीन दिन का शोक दिवस मनाया और परिवार को एक करोड़ रुपए का अनुदान देने को घोषणा भी किया। फिल्मकारों ने फिल्म भी बनाई। हमनें भी दुःख जताया आहें भरी। जिम्मेदारी खत्म। क्या सरबजीत को न्याय मिला यह प्रश्न कालजयी बनकर हमारे सामने हमेशा खड़ा रहेगा।

About Author

Leave a Reply