October 9, 2024

१३ मार्च १९४० के दिन रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की बैठक लंदन के काक्सटन हाल में थी। जहां माइकल ओ डायर को अपनी बात रखने के लिए निमंत्रित किया गया था। उस दिन उधम भी बैठक स्थल पर पहुंच गए। उन्होंने अपनी रिवॉल्वर को एक मोटी किताब में छिपा रखी थी। इसके लिए उन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में उस तरह से काट दिया था, जिसमें डायर की जान लेने वाला हथियार आसानी से छिपाया जा सके। बैठक के बाद दीवार के पीछे से छुपकर उधम ने मोर्चा संभालते हुए माइकल ओ डायर पर गोलियां चला दीं। दो गोलियां माइकल ओ डायर को लगी जिससे वहीं उसकी तत्काल मृत्यु हो गई।

अब आप यह सोच रहे होंगे की यह उधम कौन है? डायर कौन है? और उधम ने डायर को क्यूँ मारा? तो हम कहानी के कुछ पीछे चलते हैं, जिससे दूध और पानी के अंतर को आप स्वयं समझ सकें।

उधम का जन्म आज ही के दिन यानी २६ दिसम्बर १८९९ को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गाँव में काम्बोज जाटव परिवार में हुआ था। सन १९०१ में उधम की माता और १९०७ में उनके पिता का निधन हो गया। इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। उधम का बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्ता सिंह था, जिन्हें अनाथालय में क्रमश: उधम सिंह और साधु सिंह के रूप में नए नाम मिले थे।

इतिहासकार मालती मलिक जी के अनुसार उधम सिंह देश में सर्वधर्म समभाव के प्रतीक थे और इसीलिए उन्होंने अपना नाम को बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है।

बात १३ अप्रैल १९१९ की है, जब जालियाँवाला बाग का नरसंहार हुआ था। उधम सिंह उसके प्रत्यक्षदर्शी थे। राजनीतिक कारणों से जलियाँवाला बाग में मारे गए लोगों की सही संख्या कभी सामने नहीं आ पाई अथवा दबा दी गई। इस घटना से वीर उधम सिंह तिलमिला गए और उन्होंने जलियाँवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर मुख्य कर्ता अथवा हत्यारा माइकल ओ डायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ले ली। अपने मिशन को अंजाम देने के लिए उधम सिंह ने विभिन्न नामों से अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा की। सन् १९३४ में उधम सिंह लंदन पहुंचे और वहां ९ एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे। वहां उन्होंने यात्रा के उद्देश्य से एक कार खरीदी और साथ में अपना मिशन पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीद ली। भारत का यह वीर क्रांतिकारी माइकल ओ डायर को ठिकाने लगाने के लिए उचित वक्त का इंतजार करने लगा।

और वह उचित समय १३ मार्च १९४० को आया, जब उन्होंने अपने जीवन के प्रथम और आखिरी लक्ष्य को पा लिया था। डायर को मारने के बाद उन्होंने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और अपनी गिरफ्तारी दे दी। उन पर मुकदमा चला। ४ जून १९४० को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और ३१ जुलाई १९४० को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई।

आज ही के दिन यानी २६ दिसंबर को जन्में ऐसे वीर और भारत माता के सपूत को उसकी देशभक्ति के लिए मैं अश्विनी राय ‘अरूण’ तहे दिल से बारम्बार नमन करता है।

धन्यवाद!

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