October 12, 2024

आज हम बात करने वाले हैं, हिन्दी भाषा में सूफ़ी प्रेमाख्यानों की परम्परा को प्रारम्भ करने वाले मुल्ला दाउद के बारे में। जिन्होंने वर्ष १३७९ में ‘चन्दायन’ को लिखा था और जो मुल्ला दाउद की पहचान बन गया। वैसे तो इतिहास उनके बारे में कुछ भी नहीं बताता, जिससे हम उनके बारे में कुछ जानकारी दे पाएं।मगर जितनी जानकारी हम उनके बारे में इकट्ठा कर पाए उसके अनुसार….

परिचय…

मुल्ला दाउद का जन्म के बारे में जानने के लिए हमें प्रसिद्ध इतिहासकार अल् बदायूनी को आधार बनाना होगा, जिनके अनुसार सन् ७७२ हिजरी के आसपास मुल्ला दाउद की प्रसिद्धि का उल्लेख मिलता है। यानी ई. सन् की १३२० से १३२५ के मध्य में कभी उनका जन्म हुआ होगा। क्योंकि अंतिम दशकों में यानी १३७९ ई. में इनकी रचना का अनुमान किया जाता है। अगर उनके जन्म स्थान के बारे में बात की जाए तो उसके बारे में विद्वानों का कहना है कि वे डलमऊ के रहने वाले थे। डलमऊ, उत्तरप्रदेश के रायबरेली ज़िले में स्थित एक नगर है, जो गंगा नदी के किनारे बसा हुआ एक ऐतिहासिक शहर है।

रचना…

चंदायन, मुल्ला दाऊद कृत हिंदी का ज्ञात प्रथम सूफी प्रेमकाव्य। इसमें नायक लोर, लारा, लोरक, लोरिक अथवा नूरक और नायिका चाँदा या चंदा की प्रेमकथा वर्णित है। इसके नामकरण तथा पाठों में एकतानता नहीं है। प्राचीन उल्लेखों में विशेष रूप से ‘चंदायन’ और सामान्यत: ‘नूरक चंदा’ नाम मिलता है।लोकगाथा के रूप में इस काव्य की मौखिक परंपरा भी है। उत्तर प्रदेश और बिहार के अंचलों में, कथावस्तु में हेरफेर के साथ लोकप्रचलित छंदों में ‘लोरिकायन’, ‘लोरिकी’ और ‘चनैनी’ नाम से इस प्रेमगाथा के अनेक संस्करण प्राप्त हैं। प्राचीन काल से ही इस कथा की ख्याति इतिहासकारों और कवियों के उल्लेखों से सिद्ध है। कुछ विद्वान् इसकी भाषा ठेठ अवधी मानते हैं और कुछ हिंदी की बोलियों के मिश्रण से बनी किसी ‘सांस्कृतिक भाषा’ की कल्पना करते हैं, जैसे; भोजपुरी। अन्य सूफी काव्यों की भाँति इसमें भी रहस्यभावना की प्रतिष्ठा है। इसमें आए कतिपय सौंदर्यचित्र और प्रसंग मर्मस्पर्शी हैं। कथा दोहा, चौपाई शैली में वर्णित है। राजस्थान, उत्तरप्रदेश, बिहार तथा मध्यप्रदेश में इस कथा के अनेक संस्करण लोकगाथा के रूप में प्रचलित हैं।

चन्दायन…

चन्दायन की रचना मुल्ला दाऊद ने १३७९ ई. में की थी। माताप्रसाद गुप्त इसका मूलनाम ‘लोर कहा’ या ‘लोर कथा’ मानते हैं। परंतु अब चन्दायन माताप्रसाद के नाम पर या चन्दायन परमेश्वरी लाल गुप्त के नाम से ही प्रसिद्ध है। नायक (लोरिक) तथा नायिका (चन्दा) का प्रणय वर्णन इसका कथ्य है।’चन्दायन’ आलोच्यकाल के अंतर्गत नहीं आता तथापि उसका परिचय प्रस्तुत अध्याय में इसलिए किया गया है क्योंकि वह हिन्दी के प्राप्त सूफ़ी प्रेमाख्यानों में पहला समझा जाता है और आलोच्यकाल से केवल २० वर्ष पूर्व का है। दक्खिनी के प्रेमाख्यानों में जहां ‘कुतुबमुश्तरी’, ‘सबरस’, ‘सैफुलमुलूक व वदीउलजमाल’ तथा ‘चंदरबदन-माहियार’ के कथानक विस्तार से दिये गये हैं, वहीं ‘गुलशने इश्क़’, फूलबदन’, आदि का रचनाकाल तथा उनके रचियताओं का उल्लेख कर उनके कथानकों को अति संक्षेप में दिया गया है।

पात्र…

नायिका – चंदा

नायक – लोर

उपनायिका – मैना (लोरिक की पहली पत्नी)

अन्य पात्र – गोवरगढ़ के राजा सहदेव (चंदा के पिता), बाबन (जिससे चंदा का ४ वर्ष की अवस्था में विवाह हुआ था) बाजुर (भिक्षुक) चंदा पर मोहित, राव रूपचंद (राजापुर के राव), वृहस्पति (चंदा की सखी) आदि।

इसकी कथा लोर और चंदा के उन्मुक्त प्रेम पर आधारित है।

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