April 26, 2024

 

सुबह हो गई,
मोर्निग वॉक नहीं,
दूध लेने जाना है।
कहीं देरी हो गई तो…
ग्वाला पानी मिला देगा।

रोड पर खड़े खड़े ही
पास वाले के अखबार से
वह अक्षर चुरा लेगा।

घर आते ही बाथरूम में वह भागा
एक पथ दो काम जो करना है।

एक काम पर जाने की जल्दी है
दूजा परिजन के तगादों से बचना है।

फीस के पैसे, ट्यूसन के भी।
खर्ची के पैसे, सिलेंडर के भी।
बिजली बिल बाकी है,
किराया भी तो देना है,
आदि आदि या आधी आधी।

घर के खीच खिच से निकल
रास्ते के पोंपों पर आया
एक से जैसे तैसे बचा
आ दूसरे से टकराया

जैसे तैसे ऑफिस आया
देरी हो गई तो बड़ा घबराया
ऊपर वाले से जो भी सुना
अपने नीचे वाले को वही सुनाया

पूरे दिन काम किया बैल की तरह
या गदहे की तरह पता नहीं
मगर शाम को घर जाने से पहले
पगार खातिर कुत्ता बन
बड़े प्यार से जीभ लपलपाया

कभी मिली दिलासा
तो कभी ताने मिले,
कभी झिड़की पड़ी
तो कभी गाली भी मिले।

फिर वही पोंपों, वही धकम धो
फिर से वही गढ्ढे, वही किंचड़

मगर मन में बड़ी शांति है,
इस बात की कि
आज भारत क्रिकेट मैच जीत गया।
किंतु चिंता इस बात की भी है,
कि मेरी पार्टी इस बार
चुनाव जीतेगी की नहीं।

आज खुशी इस बात की है
कि बेटा पास हो गया,
मगर दुख इस बात का भी है
कि पड़ोसी का बेटा
फर्स्ट आ गया।

लो सोचते विचारते घर आ गया
बड़ा बोझिल भरा दिन था आज
बहुत थक गया हूं,
जल्दी खा पीकर सो जाऊंगा
सुबह जल्दी उठना है,
दूध लाना है,
सब्जी भी लाना है।

वो कह रही थी
कि राशन भी खत्म हो गया है।
बच्चों की फीस भी देनी है।
बिजली बिल, किराया, ट्यूसन,
शायद उसकी दवाई भी।
मां को डॉक्टर के तो,
बाबू जी का भी तो
आंख दिखाना है।

त्योहार भी नजदीक आ रहे हैं…
कपड़े भी दिलाने पड़ सकते हैं।
मिठाईयां भी लानी पड़ेगी

अजी सुनते हो!
इस बीच वह चिल्लाई,
खाते क्यूं नहीं।
किस बात की सोच में हो,
कुछ बताते क्यूं नहीं।

ऑफिस में कुछ हुआ है
या तबियत ठीक नहीं।
कोई और बात है क्या? या
खाना ही ठीक नहीं बना।

क्या करूं…
मशाले खत्म हो गए हैं,
तेल भी तो खत्म होने को है।
इसीलिए कम डाला है,
आप से तो पहले ही
कहा था मैंने…

नहीं नहीं!
ऐसी कोई बात नहीं है।
खाना ठीक है।
कल सामान ला दूंगा,
लिस्ट बना देना।

तो क्या सोच रहे थे? बड़ी देर से..
सोच रहा हूं, त्योहार आ रही है,
खर्चे कुछ बढ़ जाएंगे,
महंगाई जो बुलेट ट्रेन बन गई है
और वेतन है कि
बैलगाड़ी बना हुआ है।

अरे! इतनी से बात पर चिंता करते हो,
वह सारे काम निपटा कर
बिस्तर लगाते हुए बोली।
इस बार कपड़े नहीं लेने हैं,
पिछली बार जो लिए हैं,
वह बस एक बार ही तो पहना हुआ है।
रही बात मिठाईयां तो
मैं कुछ घर पर ही बना दूंगी।

जरूरी सामान की लिस्ट बना दिया है,
वह भी अपने हिसाब से ले आना,
मैं सम्हाल लूंगी।
और हां! अपने लिए इस बार
कपड़े जरूर ले लेना,
चार सालों से रगड़े जा रहे हो।
वह कुछ गुस्से से तो
कुछ मुस्कुराते हुए बोली।

पूरे दिन की चिंता को
उसने एक ही बार में उड़ा दिया।
अब सोने को बोलकर
बत्ती भी बुझा दिया।
सुबह जिससे छुपा था
बाथरूम में,
बिना कुछ बोले ही
उसने एकबार फिर
अपने पास बुला लिया। 

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