#UBIContest - 77
विषय : उड़ान संख्या २०२२
विधा : कविता
शीर्षक : हौसलों की उड़ान
हौसलों के धागों को
थाम अभी
कटी नहीं, ढील पड़ी है
पहचान अभी
उड़ान अभी बाकी है
आसमान अभी बाकी है
परिंदों को देख कर
अपने पर...
सोने के लिए जागना
घर की अटारी पर
किताबें भरी हुई हैं
मेरी रातों की नींद
हराम करने को
कई रातों से
सोने के लिए वे
मुझे जगा रहे हैं
मैं पढ़ता हूँ उनको
वो पढ़ते हैं मुझको
पूरी रात जागते हैं
सुबह...
आंखो से बहते स्याही को
जज़्बात की कलम में ढाल कर
अपने धड़कन की कागज पर
बिखरे ख्वाब हर बार लिखता हूँ
पसंद या नापसंद की बात नहीं
हर सच को बार बार लिखता हूँ।
टूट जाते हैं...
नफरत से देखने लगे
अथवा छूत मान लिए हैं।
घर परिवार वाले अथवा
गांव जवार वाले।
मौके की नजाकत देखे बगैर
हालत का जायजा लिए बगैर
पति की हत्यारिन मान लिया,
पापिन, चांडालीन तक कह कर
मौके का फायदा भी...
एक दिन मेरी
गांधी से भेंट हो गई
चीरपरीचीत भाव से
यूं ही मुस्कुरा रहे थे
पहले से ही भड़का था
मुस्कुराता देख
मेरी तो आज हट गई...
मैंने गांधी से पूछ डाला
बापू बने फिरते हो
बाप का कौन सा...
आधी अधूरी आजादी
हिंद सिसक सिसक कहता है,
क्या ये जश्न इतना जरूरी है।
सपने कहां हुए हैं अपने,
आजादी अभी आधी अधूरी है॥
इसको पाने को गिरे जो कटकर,
उनको आओ आज याद करें।
आज़ादी किस कीमत पर...
एक पाति पत्नी के नाम
तुम जब नहीं होती...
ये हवाएं थम जाती हैं
ये जहां रुक जाती है
फूलों से खुश्बू रहती गायब
रौशनी मध्यम सी हो जाती हैं
ये तो सच है...
आज मैं जो हूँ
कब था...
नगाड़े बज उठे
दुंदुभी भी बज पड़ी है
कुछ तो होने वाला है
सच में कुछ तो होने वाला है
चहूँ ओर घटा छाई है
ऋतु बदलने वाला है
चित्कार में भी कोई सार है
समय बदलने वाला है
वार...