April 28, 2024

 

जीवन चलने का नाम है,
इसमें कितने विचार पल रहे हैं।
वे विचार ही जीने के उद्देश्य हैं,
बाकी सब यहां शेष है।

खुली आखों ने देखे जो,
ये सपने बन सोने नहीं देते।
बंद होती जब ये आखें,
ये जागने भी नहीं देते।

ये सपने एक चिन्तन हैं,
सोच की परिभाषा हैं,
ये अंतर्मन की तलाश हैं।
जब तलक उसे पाओ ना,
मन तब तलक प्यासा प्यासा है।

मन ही मानक, मन ही चिंतन है,
पाने की छटपटाहट ही स्वप्न है।
खुली आंखों से देखे सपने,
पाना ही अंतस का प्रयत्न है।

ये स्वप्न तब तक जारी रहेंगे,
जब तलक उसे पा ना लूं
ये प्रयत्न जारी रहेंगे,
यत्न भी जारी रहेंगे।

अश्विनी राय ‘अरुण’

About Author

Leave a Reply