November 15, 2024

बात स्वाधीनता संग्राम के दौरान की है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार जी ने वर्ष १९३०-३१ के दौरान जंगल सत्याग्रह में भाग ले रहे थे। और उन दिनों संघ अभी अपने शुरूआती अवस्था में यानि शिशु अवस्था में ही था। उन दिनों शाखाओं में लोग कम ही आते थे और शाखाओं की संख्या भी कम थी। डॉ. साहब यह नहीं चाहते थे कि उनके सत्याग्रह में भाग लेने के कारण जब जेल जाना पड़े तो संघ कार्य में कोई बाधा उत्पन्न हो। अतः उन्होंने अपने मित्र तथा संघ के कर्मठ कार्यकर्ता डॉ. परांजपे को अपने अनुपस्थिति काल के लिए सरसंघचालक की जिम्मेदारी सौंप दी।

डॉ. परांजपे ने अपने इस नए दायित्व को आत्मीयता से निभाया। उन्होंने इस दौरान शाखाओं को दुगना करने का लक्ष्य कार्यकर्ताओं के सम्मुख रखा। डा. साहब जब वापस आए, तो उन्होंने यह दायित्व फिर से डॉ. साहब को वापस दे दिया।

परिचय…

लक्ष्मण वासुदेव परांजपे का परिवार मूलतः कोंकण क्षेत्र के आड़ा गांव का निवासी था। उनका जन्म २० नवम्बर, १८७७ को नागपुर में हुआ था तथा बचपन वर्धा में बीता। जहां से वे अंग्रेज़ी भाषा में कक्षा चार तक की पढ़ाई करने के बाद आगे की शिक्षा के लिए वे नागपुर आ गये। नागपुर के प्रसिद्ध स्कूल नीलसिटी हाईस्कूल में पढ़ने के बाद उन्होंने मुंबई के ग्रांट मैडिकल कॉलिज से एलएमएंडएस की उपाधि प्राप्त कर वर्ष १९०४ से नागपुर में ही चिकित्सकीय कार्य प्रारम्भ कर दिया।

डॉ. परांजपे के बचपन का एक खास सौख व्यायाम करना भी था। अतः प्रतिदिन मित्रों के साथ अखाड़े जाते। वर्ष १९२० में नागपुर में हुए कांग्रेस अधिवेशन के व्यवस्थापकों में डॉ. साहब के साथ डॉ परांजपे भी थे और जो डॉ. हेडगेवार एवं उनकी गहरी मित्रता का गवाह बना।

देव कार्य…

जैसा कि हम लोगों ने देखा है कि बाजे-गाजे के साथ धार्मिक जुलूस निकाले जाते हैं, वैसी ही प्रथा नागपुर में भी मनाई जाती है और वर्ष १९२३ में ऐसी ही जुलूस निकली थी; मगर मुसलमान मस्जिद के सामने से इसके निकलने पर आपत्ति करने लगे। अतः स्थानीय हिन्दू पांच-पांच की टोली में ढोल-मंजीरे के साथ वारकरी पद्धति से ‘दिण्डी’ भजन गाते हुए वहां से निकलने लगे। यही वह दिन था जो एक नए सत्याग्रह की शुरूवात थी। इस जुलूस में राजे लक्ष्मणराव भोंसले जी भी शामिल थे। इस घटना के उपरांत हिन्दुओं को लगा कि हमारा भी कोई संगठन होना चाहिए। अतः नागपुर में श्रीमंत राजे लक्ष्मणराव भोंसले के नेतृत्व में हिन्दू महासभा की स्थापना हुई। डॉ. परांजपे के नेतृत्व में नागपुर कांग्रेस में लोकमान्य तिलक और हिन्दुत्व के समर्थक १६ युवकों का एक ‘राष्ट्रीय मंडल’ था। वर्ष १९२५ में जब संघ की स्थापना हुई, तो उसके बाद डॉ. परांजपे संघ के साथ जुड़ गए और डॉ हेडगेवार के परम सहयोगी बन गये।

जब कभी वे नागपुर में होते तो संघ के सभी कार्यक्रमों में पूर्ण गणवेश पहन कर शामिल होते थे। मोहिते संघस्थान पर लगे पहले संघ शिक्षा वर्ग की चिकित्सा व्यवस्था उन्होंने ही संभाली थी।आगे भी वे कई वर्ष तक इन वर्गों में चिकित्सा विभाग के प्रमुख रहे। जब भाग्यनगर (हैदराबाद) की स्वाधीनता के लिए सत्याग्रह हुआ, तो उसमें भी उन्होंने सक्रियता से भाग लिया।

संघ के सभी देव कार्यों में बिना रुके बिना थके, २२ फरवरी, १९५८ को नागपुर से अनन्त पथ निकल गए।

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