April 30, 2024

१३ अप्रैल, १९२५ को पंजाब के फिरोजपुर में जन्में बरकतराय मलिक ने बॉलीवुड के लिए अपने पूरे करियर में लगभग ५०० से भी अधिक फिल्मी गीत लिखे हैं। मगर आज के समय में शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने यह नाम कभी सुना हो। मैं ऐसा नहीं कहता की किसी ने ना सुना हो मगर उनकी गिनती नगण्य में ही होगी तो चलिए आप की आसानी के लिए हम उनके फिल्मी नाम को आप के जानकारी में लाते हैं।

वर्मा मलिक बनने से पहले बरकतराय ब्रिटिश राज के विरुद्ध सक्रिय स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ गीत लिखकर कांग्रेस के जलसों और सभाओं में सुनाया करते थे। इसलिए वे कांग्रेस पार्टी के सक्रिय सदस्य बन गए। इसी कारण से उन्हें गिरफ़्तार कर जेल में डाल दिया गया था।

अभी तक वे सिर्फ शौकिया गीत लिखते और गाते थे। बेचारे बरकत राय अपने गीतों की प्रशंसा और सराहना में मग्न ही थे कि देश का विभाजन हो गया। ख़ौफनाक परिस्थितियों में वर्मा ज़ख्मी हालत में फ़िरोज़पुर से जान बचाकर भागे। विभाजन के हंगामे में उन्हें पैर में गोली लगी थी। भागकर उन्होंने दिल्ली में शरण ली। दिल्ली आकर उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि पेट पालने के लिए वो क्या करें। संगीत निर्देशक हंसराज बहल के भाई, वर्मा मलिक के दोस्त थे उनके कहने पर वर्मा ने मुंबई की राह पकड़ी। हंसराज बहल ने वर्मा को पंजाबी फ़िल्म ‘लच्छी’ में गीत लिखने का काम दिया और देखते देखते वर्मा पंजाबी फ़िल्मों के प्रसिद्ध गीतकार बन गए। इसी समय उनके मित्रों ने उन्हें नाम बदलने की सलाह दी और बरकत राय मलिक, वर्मा मलिक के नाम से फ़िल्मी दुनिया में पहचाने जाने लगे और आप भी अब उन्हें पहचान ही गए होंगे। हंसराज बहल की निकटता में वर्मा ने संगीत की समझ भी विकसित की और यमला जट सहित तीन पंजाबी फ़िल्मों में संगीत भी दिया। उन्होंने तकरीबन ४० पंजाबी फ़िल्मों के गीत लिखे, दो तीन फ़िल्मों के संवाद लिखे और तीन फ़िल्मों का निर्देशन भी उन्होंने किया। लेकिन छठा दशक शुरू होते होते मुंबई में पंजाबी फ़िल्मों का बाज़ार ठप्प पड़ गया। नतीजा यह हुआ कि पंजाबी फ़िल्मों के सबसे लोकप्रिय गीतकार वर्मा मलिक एक बार फिर से बेरोज़ग़ार हो गए। हालांकि उन्होंने १९४९ में हिन्दी फिल्म चकोरी के लिए गीत लिखे, तत्पश्चात १९५२ में जग्गू, १९५५ में श्री नगद नारायण, १९५७ में मिर्जा साहिबान, CID 909 सहित अन्य फिल्मों के लिए भी गीत लिखे थे, मगर उसके बाद उन्हें हिन्दी फिल्मों में मौका नहीं मिल पाया था। १९६१ के बाद लगभग ७ वर्षों तक वे फिल्म उद्योग से दूर हो गए। इसके बाद १९६७ में दिल और मोहब्बत के लिए उन्होंने गीत लिखा मगर उनके हाँथ सफलता नहीं आई थी।

अब सवाल यह था कि वे क्या काम करें इसी उधेड़ बुन में भटकते हुए एक दिन वर्मा फेमस स्टूडियो के सामने से गुज़रे तो उन्हें अपने मित्र मोहन सहगल की याद आयी। उनसे मिलने के दौरान ही कल्याणजी आनंदजी का ज़िक्र आया और गीत लिखने के मौके की तलाश में वर्मा कल्याणजी के घर जा पहुंचे। उस समय मनोज कुमार कल्याणजी के साथ बैठे हुए थे। मनोज कुमार वर्मा मलिक को जानते थे और उनके पंजाबी गीतों के प्रशंसक भी थे। मनोज कुमार ने वर्मा मलिक से पूछा कि क्या नया लिखा है ? वर्मा ने तुरंत उन्हें तीन चार गीत सुना डाले। जिसमें एक गीत यह भी था “रात अकेली, साए दो हुस्न भी हो और इश्क भी हो तो फिर उसके बाद इकतारा बोले तुन तुन” मनोज कुमार को यह गीत बेहद पसंद आया और उन्होंने अपनी फ़िल्म ‘उपकार’ के लिये उस गीत को चुन लिया, लेकिन बदकिस्मती से उपकार में इस गीत के लिए सिचुएशन ही नहीं मिल पाया। मगर मनोज कुमार न ये गीत भूले न ही वर्मा मलिक को भूल पाए। उन्होंने अपनी अगली फ़िल्म ‘यादगार’ के लिये इस गाने को सामाजिक परिप्रेक्ष्य में लिखने को कहा तो वर्मा मलिक ने गीत को इस तरह बदल दिया, “बातें लंबीं मतलब गोल, खोल न दे कहीं सबकी पोल, तो फिर उसके बाद इकतारा बोले तुन तुन” फ़िल्म यादगार हिट हुई और ये गाना भी। फ़िल्मों में एक हिट से किस्मत बदल जाती है। वर्मा मलिक के साथ भी ऐसा ही हुआ। इसके बाद वर्मा मलिक जी के हाथ में काम ही काम आ गया।

गर आप अब भी वर्मा मलिक को नहीं पहचान पाए तो भी कोई बात नहीं, उनकी फिल्मों के नाम से आप उन्हें जरूर पहचान जाएंगे…

पंजाबी फिल्मे…

छाई, भांगड़ा, दो लच्छे, गुड्डी, दोस्त, मिर्ज़ा साहिबान, तकदीर, पिंड दी कुड़ी, दिल और मोहब्बत आदि।

हिन्दी फिल्मे…

यादगार, पहचान, सावन भादो, पारस, हम तुम और वो, पूरब और पश्चिम, शोर, बेईमान, अनहोनी, रोटी कपड़ा और मकान, एक से बढ़कर एक, नागिन, जानी दुश्मन, शक, दो उस्ताद आदि।

वर्मा मलिक से आपका परिचय कराने का मेरा अंतिम प्रयास उनके गानों से…

रेखा की पहली फ़िल्म ‘सावन भादों’ में वर्मा के लिखे इस गीत ने कई साल तक धूम मचाए रखी ‘कान में झुमका चाल में ठुमका कमर पे चोटी लटके हो गया दिल का पुर्जा पुर्जा लगे पचासी झटके’ तथा ‘हो तेरा रंग है नशीला अंग-अंग है नशीला’। ये गीत बेहद लोकप्रिय रहे थे।

‘हम तुम और वो’ का यह गाना, “प्रिये प्राणेश्वरी.. हृदयेश्वरी, यदि आप हमें आदेश करें तो प्रेम का हम श्रीगणेश करें…”। यह इकलौता ऐसा गाना था जिसमें गूढ़ हिंदी शब्दों का प्रयोग किया गया और गाना भी बेहद हिट रहा था।

आज मेरे यार कि शादी है, लगता है जैसे सारे संसार की शादी है। आज मेरे यार कि…

आदमी सड़क का,
आईए हुजूर आईए बैठिए,
ऐसी आई है बरखा सुहानी,
क्या है ये मजबूरी,
बलमा हमार मोटरकार लेके,
बोलो बैइमान की जय,
चलो रे डोली उठाओ कहार आदि ५०० से अधिक सुप्रसिद्ध गानों को आप यहाँ सुन सकते हैं…

https://m.hindigeetmala.net/lyricist/verma_malik.php

वर्मा मलिक ने १५ मार्च, २००९ को मुम्बई में बहुत ख़ामोशी पूर्वक दुनिया से विदाई ले ली और वो भी इतनी ख़ामोशी से कि उनके मरने का ज़िक्र तक अगले दिन किसी भी अखबार में नहीं हुआ।

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