April 29, 2024

नरेन्द्र कोहली हिन्दी के उपन्यासकार, कहानीकार, नाटककार एवं व्यंग्यकार थे। नरेन्द्र कोहली ने साहित्य की सभी प्रमुख विधाओं (यथा उपन्यास, व्यंग्य, नाटक, कहानी) एवं गौण विधाओं (यथा संस्मरण, निबंध, पत्र आदि) और आलोचनात्मक साहित्य में अपनी लेखनी चलाई। हिन्दी साहित्य में ‘महाकाव्यात्मक उपन्यास’ की विधा को प्रारंभ करने का श्रेय नरेंद्र कोहली को ही जाता है। पौराणिक एवं ऐतिहासिक चरित्रों की गुत्थियों को सुलझाते हुए उनके माध्यम से आधुनिक सामाज की समस्याओं एवं उनके समाधान को समाज के समक्ष प्रस्तुत करना कोहली की अन्यतम विशेषता थी।

 

जीवन परिचय…

नरेन्द्र कोहली का जन्म ६ जनवरी, १९४० को सियालकोट में हुआ था। अब यह नगर पाकिस्तान में है। इनकी माता विद्यावंती जी गृहणी थीं और इनके पिता, परमानन्द कोहली, सियालकोट के मध्यम वर्गीय नौकरी पेशा वाले परिवार में जन्मे थे। आंखों के रोग के कारण आठवीं कक्षा में ही स्कूल से उठा लिए गए। पढ़ने और लिखने का शौक होते हुए भी, आगे पढ़ नहीं सके। उर्दू में लिखे अपने तीन चार उपन्यासों की पांडुलिपियां अपने लेखक पुत्र के लिए उत्‍तराधिकार स्वरूप छोड़ गए। अविभाजित पंजाब के वन विभाग में अस्थाई क्लर्क के पद पर काम करते रहे। देश के विभाजन के पश्चात् पूंजी, डिग्री तथा अन्य किसी कौशल के अभाव के कारण जमशेदपुर में पटरी पर बैठ कर फल बेचने को बाध्य हुए। बाद में एक छोटी सी दुकान की।

 

शिक्षा…

नरेन्द्र कोहली की शिक्षा का आरंभ पांच-छह वर्ष की अवस्था में देवसमाज हाई स्कूल, लाहौर में हुआ। उसके पश्चात् कुछ महीने स्यालकोट के गंडासिंह हाई स्कूल में भी शिक्षा पाई। १९४७ ई. में भारत के विभाजन के पश्चात् परिवार जमशेदपुर, बिहार चला आया। यहां तीसरी कक्षा से पढ़ाई आरंभ हुई, धतकिडीह लोअर प्राइमरी स्कूल में। चौथी से सातवीं कक्षा तक की शिक्षा, न्यू मिडिल इंग्लिश स्कूल में हुई। आठवीं से ग्यारहवीं कक्षा की पढ़ाई मिसिज़ के. एम. पी. एम. हाई स्कूल, जमशेदपुर में हुई। हाई स्कूल में विज्ञान संबंधी विषयों का अध्ययन किया। अब तक की सारी शिक्षा का माध्यम उर्दू भाषा ही थी। उच्च शिक्षा के लिए जमशेदपुर को-ऑपरेटिव कॉलेज में प्रवेश किया। विषय थे, अनिवार्य अंग्रेज़ी तथा अनिवार्य हिन्दी के साथ मनोविज्ञान, तर्कशास्त्र और विशिष्ट हिंदी। आई.ए. की परीक्षा बिहार विश्वविद्यालय से दी। बी. ए. में अनिवार्य अंग्रेज़ी के साथ दर्शनशास्त्र और हिन्दी साहित्य (ऑनर्स) का चुनाव किया। १९६१ ई. में जमशेदपुर को-ऑपरेटिव कॉलेज (रांची विश्वविद्यालय) से बी. ए. ऑनर्स (हिंदी) कर एम. ए. की शिक्षा के लिए दिल्ली चले आए। १९६३ ई. में रामजस कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) से हिंदी साहित्य में एम.ए. की परीक्षा उत्‍तीर्ण की। इसी विश्वविद्यालय से १९७० ई. में पी-एच.डी. (विद्या वाचस्पति) की उपाधि प्राप्त की।

 

विवाह…

नरेन्द्र कोहली ने १९६५ ई. में डॉ. मधुरिमा कोहली से विवाह किया। मधुरिमा दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में एम. ए.; पी-एच.डी. हैं। वे दिल्ली के कमला नेहरू कॉलेज के हिंदी विभाग से १९६४ ई. से संबद्ध हैं। दिसंबर, १९६७ ई. में जुड़वां संतान पुत्र कार्त्तिकेय और पुत्री सुरभि का जन्म हुआ। सुरभि केवल चौबीस दिनों की आयु लेकर आई थी। कार्त्तिकेय अब दिल्ली विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम.ए.; एम.फिल्; पी-एच.डी. कर रामलाल आनंद (सांध्य) कॉलेज, दिल्ली में अर्थशास्त्र पढ़ा रहे हैं। छोटे पुत्र अगस्त्य का जन्म १९७५ ई. में हुआ। वे दिल्ली के सरदार पटेल विद्यालय से उच्चतर माध्यमिक शिक्षा प्राप्त कर इलिनॉय इंस्टिट्यूट ऑफ टैक्नॉलॉजी, शिकागो में यांत्रिकी की शिक्षा के लिए चले गए। अब सियैटल (संयुक्त राज्य अमरीका) में टेलिकंयूनिकेशन सिस्‍टम्‍स में नेटवर्क अभियंता के रूप में कार्यरत हैं।

 

अध्यापन…

नरेन्द्र कोहली ने अपनी पहली नौकरी दिल्ली के पी.जी.डी.ए.वी. (सांध्य) कॉलेज में हिंदी के अध्यापक (१९६३-६५) के रूप में की। दूसरी नौकरी दिल्ली के मोतीलाल नेहरू कॉलेज में १९६५ ई. में आरंभ की और १ नवंबर १९९५ ई. को पचपन वर्ष की अवस्था में स्वैच्छिक अवकाश लेकर नौकरियों का सिलसिला समाप्त कर दिया।

 

प्रथम प्रकाशित रचना…

नरेन्द्र कोहली को लिखने और छपने की इच्छा बचपन से ही थी। छठी में कक्षा की हस्तलिखित पत्रिका में पहली रचना प्रकाशित हुई। आठवीं कक्षा में स्कूल की मुद्रित पत्रिका में एक कहानी ‘हिंदोस्तां : जन्नत निशां’ उर्दू में प्रकाशित हुई। हाई स्कूल के ही दिनों में हिंदी में लिखना आरंभ हुआ। ‘किशोर’ (पटना), ‘आवाज़’ (धनबाद) इत्यादि में कुछ आरंभिक रचनाएं, बाल लेखक के रूप में प्रकाशित हुईं। आई.ए. की पढ़ाई के दिनों में एक कहानी ‘पानी का जग, गिलास और केतली’, ‘सरिता’ (दिल्ली) के ‘नए अंकुर’ स्तंभ में प्रकाशित हुई थी। नियमित प्रकाशन का आरंभ फरवरी १९६० ई. से आरंभ हुआ। इनकी प्रथम प्रकाशित रचना ‘दो हाथ’ (कहानी, इलाहाबाद, फ़रवरी १९६० ई.) मानी जाती है।

 

साहित्यिक परिचय…

नरेन्द्र कोहली उपन्यासकार, कहानीकार, नाटककार तथा व्यंग्यकार हैं। ये सब होते हुए भी, वे अपने समकालीन साहित्यकारों से पर्याप्त भिन्न हैं। साहित्य की समृद्धि तथा समाज की प्रगति में उनका योगदान प्रत्यक्ष है। उन्होंने प्रख्यात् कथाएं लिखी हैं; किंतु वे सर्वथा मौलिक हैं। वे आधुनिक हैं; किंतु पश्चिम का अनुकरण नहीं करते। भारतीयता की जड़ों तक पहुंचते हैं, किंतु पुरातनपंथी नहीं हैं। १०६० ई. में नरेन्द्र कोहली की कहानियां प्रकाशित होनी आरंभ हुई थीं, जिनमें वे साधारण पारिवारिक चित्रों और घटनाओं के माध्यम से समाज की विडंबनाओं को रेखांकित कर रहे थे। १९६५ ई.के आस-पास वे व्यंग्य लिखने लगे थे। उनकी भाषा वक्र हो गई थी, और देश तथा राजनीति की विडंबनाएं सामने आने लगी थीं। उन दिनों लिखी गई अपनी रचनाओं में उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक जीवन की अमानवीयता, क्रूरता तथा तर्कशून्यता के दर्शन कराए। हिंदी का सारा व्यंग्य साहित्य इस बात का साक्षी है कि अपनी पीढ़ी में उनकी सी प्रयोगशीलता, विविधता तथा प्रखरता कहीं और नहीं है। नरेन्द्र कोहली ने रामकथा से सामग्री लेकर चार खंडों में १८०० पृष्ठों का एक बृहदाकार उपन्यास लिखा। कदाचित् संपूर्ण रामकथा को लेकर, किसी भी भाषा में लिखा गया, यह प्रथम उपन्यास है। उपन्यास है, इसलिए समकालीन, प्रगतिशील, आधुनिक तथा तर्काश्रित है। इसकी आधारभूत सामग्री भारत की सांस्कृतिक परंपरा से ली गई, इसलिए इसमें जीवन के उदात्‍त मूल्यों का चित्रण है, मनुष्य की महानता तथा जीवन की अबाधता का प्रतिपादन है। हिंदी का पाठक जैसे चौंक कर, किसी गहरी नींद से जाग उठा। वह अपने संस्कारों और बौद्धिकता के द्वंद्व से मुक्त हुआ। उसे अपने उद्दंड प्रश्नों के उत्‍तर मिले, शंकाओं का समाधान हुआ।

नरेन्द्र कोहली ने एक उपन्यास- ‘अभिज्ञान’ कृष्णकथा को लेकर लिखा। कथा राजनीतिक है। निर्धन और अकिंचन सुदामा को सामर्थ्यवान श्रीकृष्ण, सार्वजनिक रूप से अपना मित्र स्वीकार करते हैं, तो सामाजिक, व्यावसायिक और राजनीतिक क्षेत्रों में सुदामा की साख तत्काल बढ़ जाती है। किंतु इस कृति का मेरुदंड भगवद्गीता का ‘कर्म सिद्धांत’ है। इस कृति में न परलोक है, न स्वर्ग और नरक, न जन्मांतरवाद। ‘कर्म सिद्धांत’ को इसी पृथ्वी पर एक ही जीवन के अंतर्गत, ज्ञानेन्द्रियों और बुद्धि के आधार पर, वैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुरूप व्याख्यायित किया गया है। वह भी एक सरस उपन्यास के एक रोचक खंड के रूप में। नरेन्द्र कोहली ने महाभारत-कथा के आधार पर, अपने नए उपन्यास ‘महासमर’ की रचना की। ‘महाभारत’ एक विराट कृति है, जो भारतीय जीवन, चिंतन, दर्शन तथा व्यवहार को मूर्तिमंत रूप में प्रस्तुत करती है। नरेन्द्र कोहली ने इस कृति को अपने युग में पूर्णत: जीवंत कर दिया है। उन्होंने अपने इस उपन्यास में जीवन को उसकी संपूर्ण विराटता के साथ अत्यंत मौलिक ढंग से प्रस्तुत किया है। जीवन के वास्तविक रूप से संबंधित प्रश्नों का समाधान वे अनुभूति और तर्क के आधार पर देते हैं। युधिष्ठिर, कृष्ण, कुंती, द्रौपदी, बलराम, अर्जुन, भीम तथा कर्ण आदि चरित्रों को अत्यंत नवीन रूप में पेश किया।

 

उपन्यास श्रृंखला…

नरेन्द्र कोहली ने एक ओर उपन्यास श्रृंखला आरंभ कर पाठकों को चकित कर दिया। यह है, ‘तोड़ो कारा तोड़ो’। यह शीर्षक रवीन्द्रनाथ ठाकुर के एक गीत की एक पंक्ति का अनुवाद है; किंतु उपन्यास का संबंध स्वामी विवेकानन्द की जीवनकथा से है। स्वामी जी का जीवन निकट अतीत की घटना है। उनके जीवन की सारी घटनाएं सप्रमाण इतिहासांकित हैं। इसमें उपन्यासकार की अपनी कल्पना अथवा चिंतन के लिए कोई विशेष अवकाश नहीं है। अपने नायक के व्यक्तित्व और चिंतन से तादात्म्य ही उनके लिए एक मात्र मार्ग है। नरेन्द्र कोहली के इस सरस उपन्यास के प्रत्येक पृष्ठ पर, उपन्यासकार के अपने नायक के साथ तादात्म्य को देख कर पाठक चकित रह जाता है। स्वामी विवेकानन्द का जीवन बंधनों तथा सीमाओं के अतिक्रमण के लिए सार्थक संघर्ष था। बंधन चाहे प्रकृति के हों, समाज के हों, राजनीति के हों, धर्म के हों अथवा अध्यात्म के हों। नरेन्द्र कोहली के शब्दों में,

 

“स्वामी विवेकानन्द के व्यक्तित्व का आकर्षण, आकर्षण नहीं, जादू… जादू जो सिर चढ़ कर बोलता है। कोई संवेदनशील व्यक्ति उनके निकट जाकर, सम्मोहित हुए बिना नहीं रह सकता और युवा मन तो उत्साह से पागल ही हो जाता है। कौन सा गुण था, जो स्वामी जी में नहीं था। मानव के चरम विकास की साक्षात् मूर्ति थे वे। भारत की आत्मा और वे एकाकार हो गए थे। उन्हें किसी एक युग, प्रदेश, संप्रदाय अथवा संगठन के साथ बांध देना, अज्ञान भी है और अन्याय भी।”

 

प्रकाशित रचनाएँ…

१. प्रेमचंद के साहित्य सिद्धांत (शोध-निबंध) १९६६ ई.

२. कुछ प्रसिद्ध कहानियों के विषय में (समीक्षा)- १९६७ ई.

३. परिणति (कहानियाँ) – १९६९/२००० ई.

४. एक और लाल तिकोन- (व्यंग्य)-१९७०/ २००० ई.

५. पुनरारंभ (उपन्यास)- १९७२ /१९९४ ई.

६. आतंक (उपन्यास)- १९७२ ई.

७. पांच एब्सर्ड उपन्यास (व्यंग्य) – १९७२ /१९९४ ई.

८. आश्रितों का विद्रोह (व्यंग्य)- १९७३ / १९९१ ई.

९. जगाने का अपराध (व्यंग्य)- १९७३ ई.

१०. साथ सहा गया दु:ख (उपन्यास)- १९७४ ई.

११. मेरा अपना संसार (लघु उपन्यास) – १९७५ ई.

१२. शंबूक की हत्या (नाटक)- १९७५ ई.

१३. दीक्षा (उपन्यास) – १९७५ ई.

१४. अवसर (उपन्यास)- १९७६ ई.

१५. प्रेमचंद (आलोचना)- १९७६ ई.

१६. जंगल की कहानी (उपन्यास) – १९७७ / २००० ई.

१७. मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएं (व्यंग्य) – १९७७ ई.

१८. कहानी का अभाव (कहानियाँ)- १९७७ / २००० ई.

१९. हिंदी उपन्यास : सृजन और सिद्धांत (शोधप्रबंध)- १९७७ /१९८९ ई.

२१. संघर्ष की ओर (उपन्यास)-१९७८ ई.

२२. गणित का प्रश्न (बाल कथाएं) – १९७८ ई.

२३. आधुनिक लड़की की पीड़ा (व्यंग्य)-१९७८ / २००० ई.

२४. युद्ध (दो भाग), उपन्यास – १९७९ ई.

२५. दृष्टि देश में एकाएक (कहानियाँ)- १९७९/२००० ई.

२६. अभिज्ञान (उपन्यास)- १९८१ ई.

२७. शटल (कहानियाँ)- १९८२/२०००

२८. त्रासदियाँ (व्यंग्य)-१९८२ ई.

२९. नेपथ्य (आत्मपरक निबंध) -१९८३ ई.

३०. नमक का कैदी (कहानियाँ) -१९८३ /२००० ई.

३१. आत्मदान (उपन्यास) -१९८३ ई.

३२. निचले फ्लैट में (कहानियाँ) -१९८४ /२००० ई.

३३. नरेन्द्र कोहली की कहानियाँ (कहानियाँ) -१९८४ ई.

३४. संचित भूख (कहानियाँ) -१९८५/२००० ई.

३५. आसान रास्ता (बाल कथाएं) -१९८५

३६. निर्णय रुका हुआ(नाटक) -१९८५ ई.

३७. हत्यारे(नाटक)- १९८५ ई.

३८. गारे की दीवार(नाटक) -१९८६ ई.

३९. प्रीतिकथा(उपन्यास) -१९८६ ई.

४०. परेशानियाँ (व्यंग्य) -१९८६/२००० ई.

४१. बाबा नागार्जन (संस्मरण) -१९८७ ई.

४२. महासमर- १ (बंधन)उपन्यास – १९८८ ई.

४३. माजरा क्या है? (सर्जनात्मक, संस्मरणात्मक, विचारात्मक निबंध)-१९८९ ई.

४४. अभ्युदय (दो भाग) – उपन्यास – १९८९ /१९९८ ई.

४५. महासमर – २, (अधिकार) – उपन्यास – १९०० ई.

४६. नरेन्द्र कोहली: चुनी हुई रचनाएं (संकलन)- १९०० ई.

४७. समग्र नाटक (नाटक) -१९९० ई.

४८. समग्र व्यंग्य (व्यंग्य)- १९९१ ई.

४९. एक दिन मथुरा में (बाल उपन्यास) – १९९१ ई.

५०. समग्र कहानियाँ (कहानियाँ) भाग – १, १९९१ ई. भाग – २, १९९२ ई.

५१. प्रेमचंद (समीक्षा) – १९९१ ई.

५२. महासमर – ३, (कर्म), – उपन्यास – १९९१ ई.

५३. तोड़ो कारा तोड़ो -१, (निर्माण) – उपन्यास- १९९२ ई.

५४. जहां है धर्म, वहीं है जय (महाभारत का विवेचनात्मक अध्ययन) – १९९३ ई.

५५. महासमर – 4 (धर्म) – उपन्यास – १९९३ ई.

५६. तोड़ो कारा तोड़ो – २ (साधना) – उपन्यास – १९९३ ई.

५७. महासमर – ५ (अंतराल) – उपन्यास – १९९५ ई.

५८. क्षमा करना जीजी ! (उपन्यास) – १९९५ ई.

५९. अभी तुम बच्चे हो (बाल कथा) – १९९५ ई.

६०. प्रतिनाद (पत्र संकलन) – १९९६ ई.

६१. आत्मा की पवित्रता (व्यंग्य) – १९९६ ई.

६२. किसे जगाऊं ? (सांस्कृतिक निबंध) – १९९६ ई.

६३. महासमर – ६ (प्रच्छन्न) – उपन्यास – १९९७ ई.

६४. नरेन्द्र कोहली ने कहा (आत्मकथ्य तथा सूक्तियाँ) – १९९७ ई.

६५. मेरी इक्यावन व्यंग्य रचनाएं (व्यंग्य) – १९९७ ई.

६६. गणतंत्र का गणित (व्यंग्य) – १९९७ ई.

६७. कुकुर (बाल कथा) – १९९७ ई.

६८. समाधान (बाल कथा) – १९९७ ई.

६९. महासमर – ७ (प्रत्यक्ष) – उपन्यास – १९९८ ई.

७०. समग्र व्यंग्य – १ (देश के शुभचिंतक) – व्यंग्य – १९९८ ई.

७१. समग्र व्यंग्य – २ (त्राहि – त्राहि ) – व्यंग्य – १९९८ ई.

७२. समग्र व्यंग्य – ३ (इश्क एक शहर का) – व्यंग्य – १९९८ ई.

७३. मेरी तेरह कहानियाँ, ( कहानियाँ ) – १९९८ ई.

७४. संघर्ष की ओर ( नाटक ) – १९९८ ई.

७५. किष्किंधा (नाटक)-१९९८ ई.

७६. अगस्त्यकथा ( नाटक ) -१९९८ ई.

७७. हत्यारे ( नाटक ) – १९९९ ई.

७८. महासमर – ८( निबंध ) – उपन्यास – २००० ई.

७९. स्मरामि (संस्मरण)-२००० ई.

८०. समग्र व्यंग्य – ४ ( रामलुभाया कहता है ) – व्यंग्य – २००० ई.

८१. मेरे मुहल्ले के फूल ( व्यंग्य ) -२००० ई.

८२. समग्र व्यंलग्यं – ५ ( व्यंग्य ) -२००२ ई.

८३. सब से बड़ा सत्य ( व्यंग्य संग्रह ) – २००२ और २००३

८४. वह कहां है ( व्यंग्य संग्रह ) -२००३ ई.

८५. तोड़ो कारा तोड़ो – ३ ( परिव्राजक ) – २००३ ई.

८६. तोड़ो कारा तोड़ो – ४ (निर्देश) -२००४ ई.

८७. न भूतो न भविष्यति – उपन्यास – २००४ ई.

८८. स्वामी विवेकानन्द – जीवनी -२००४ ई.

८९. दस प्रतिनिधि कहानियाँ – कहानियाँ – २००६ ई.

९०. कुकुर तथा अन्य कहानियाँ ( बाल कथाएं ) – २००६

 

सम्मान एवं पुरस्कार…

१. राज्य साहित्य पुरस्कार १९७५-७६ ई. (साथ सहा गया दुख) शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश शासन, लखनऊ।

२. उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान पुरस्कार १९७७-७८ ई. (मेरा अपना संसार), उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ।

३. इलाहाबाद नाट्य संघ पुरस्कार, १९७८ ई. (शंबूक की हत्या), इलाहाबाद नाट्य संगम, इलाहाबाद।

४. उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान पुरस्कार, १९७९-८० ई. (संघर्ष की ओर) उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ।

५. मानस संगम साहित्य पुरस्कार, १९७८ ई. (समग्र रामकथा), मानस संगम, कानपुर।

६. साहित्य सम्मान १९८५-८६ ई. (समग्र साहित्य), हिंदी अकादमी, दिल्ली।

७. साहित्यिक कृति पुरस्कार, १९८७- ८८ ई. (महासमर-1, बंधन), हिंदी अकादमी, दिल्ली।

८. डॉ. कामिल बुल्के पुरस्कार १९८९-९० ई. (समग्र साहित्य), राजभाषा विभाग, बिहार सरकार, पटना।

९. शलाका सम्मान १९९५- ९६ ई. (समग्र साहित्य), हिंदी अकादमी, दिल्ली।

१०. साहित्य भूषण – १९९८ (समग्र साहित्य), उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ।

११. पंडित दीनदयाल उपाध्याय सम्मान – २००४ ई. (समग्र साहित्य), उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ।

१२. व्यास सम्मान (२०१२)

१३. पद्म भूषण (२०१७)

 

मृत्यु…

राम कथा पर लिखे गए अपने उपन्यासों से आधुनिक पीढ़ी के अपने समर्थकों के बीच ‘आधुनिक तुलसीदास’ के रूप में लोकप्रिय वरिष्ठ साहित्यकार नरेंद्र कोहली की मृत्यु १७ अप्रैल, २०२१ को दिल्ली में हुई। कोरोना संक्रमण के चलते पिछले कुछ दिनों से वह गंभीर रूप से बीमार थे। केंद्र सरकार के निर्देश पर उन्हें उच्च स्तरीय स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराई गई थी, जहाँ उनका इलाज भी चल रहा था। वह वेंटिलेटर पर रखे गये थे। पर तमाम चिकित्सकीय प्रयासों के बावजूद अंततः उन्होंने इहलोक से विदा ले लिया।

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुप्रसिद्ध साहित्यकार नरेंद्र कोहली के निधन पर शोक जताते हुए उनके परिजनों के प्रति संवेदना जताई। उन्‍होने ट्वीट कर कहा, ‘सुप्रसिद्ध साहित्यकार नरेंद्र कोहली जी के निधन से अत्यंत दुख पहुंचा है। साहित्य में पौराणिक और ऐतिहासिक चरित्रों के जीवंत चित्रण के लिए वे हमेशा याद किए जाएंगे। शोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिजनों और प्रशंसकों के साथ हैं। ओम शांति!

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